Article 370: पैदाइश से लेकर अब तक का इतिहास, इसलिए खत्म होना था जरूरी…

कहा जाता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल आर्टिकल 370 की कई शर्तों से सहमत नहीं थे, लेकिन जब नेहरू जी गैरमौजूदगी में इसे पास करने का दारोमदार उन पर आया तो वो चाहते थे कि ऐसा कुछ भी न किया जाए, जो नेहरू जी को नीचा दिखाने वाला प्रतीत हो।

article 370, 35a, Amit shah, Jammu Kashmir, Jammu Kashmir, kashmir, article 35a, jammu, jammu and kashmir, 35a in kashmir, sirf sach, sirfsach.in

भारत की आजादी के बाद अक्टूबर, 1947 में महाराजा हरि सिंह के भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करने के साथ ही भारतीय संविधान में आर्टिकल 370 को जुड़ गया था।

अनुच्छेद 370 (Article 370) पर लंबे समय तक विवाद चलने के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद इसमें अब सिर्फ खंड 1 रहेगा। आइए जानते हैं अनुच्छेद 370 का इतिहास। कब और कैसे पड़ी इसकी नींव? तो कहानी शुरू होती है महाराजा हरि सिंह से जो आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर के राजा थे। भारत की आजादी के बाद अक्टूबर, 1947 में महाराजा हरि सिंह के भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करने के साथ ही भारतीय संविधान में आर्टिकल 370 को जुड़ गया था। महाराजा हरि सिंह ने दो नोटिस जारी करके यह बताया था कि उनके राज्य की प्रजा किसे-किसे माना जाएगा? ये दो नोटिस उन्होंने 1927 और 1933 में जारी किए थे। इन दोनों में बताया गया था कि कौन लोग जम्मू-कश्मीर के नागरिक होंगे? यह आर्टिकल जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देता था।

इसके बाद केंद्र सरकार की शक्तियां जम्मू-कश्मीर में सीमित हो गई। केंद्र-सरकार, जम्मू-कश्मीर में केवल रक्षा, विदेश संबंध और संचार के मामलों में ही दखल दे सकती थी। इसके अलावा किसी कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती थी। इसके बाद 14 मई, 1954 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया। इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A (Article 35A) जोड़ दिया गया। राष्ट्रपति का यह आदेश 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच हुए ‘दिल्ली समझौते’ के बाद आया था। दिल्ली समझौते के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी। 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू होने के साथ ही इस व्यवस्था को लागू भी कर दिया गया।

कहा जाता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल आर्टिकल 370 की कई शर्तों से सहमत नहीं थे, लेकिन जब नेहरू गैरमौजूदगी में इसे पास करने का दारोमदार उन पर आया तो वो चाहते थे कि ऐसा कुछ भी न किया जाए, जो नेहरू को नीचा दिखाने वाला प्रतीत हो। उनके हस्तक्षेप के बाद संविधान सभा में इस पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हुई और न विरोध हुआ। इसकी ड्राफ्टिंग गोपाल अय्यंगार ने की थी। इन अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले। 1951 में राज्य को संविधान सभा अलग से बुलाने की अनुमति दी गई। नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। अनुच्छेद 370 के मुताबिक पहले जम्मू कश्मीर के पास विशेष अधिकार थे।

पढ़ें: Article 370 खत्म, जम्मू कश्मीर और लद्दाख बनेंगे केंद्र शासित प्रदेश

इसके तहत संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था। अन्य विषयों पर कानून लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। जम्मू-कश्मीर पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी और न ही शहरी भूमि कानून (1976) जम्मू-कश्मीर पर लागू होता था। धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार था। इसलिए जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे।

जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी। वहीं, यदि कोई कश्मीरी महिला, पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी। जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं था।

जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले चपरासी को अभी भी ढाई हजार रूपये ही वेतन मिल रहे थे। कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था। जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता था। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था। यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश मान्य नहीं होते थे। अनुच्छेद 370 के चलते सूचना का अधिकार (आरटीआई) लागू नहीं होता था और न ही शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू नहीं होता था। यहां सीएजी (CAG) भी लागू नहीं था।

पढ़ें: जानिए Article 370 और 35 A के बारे में, अब बदल जाएगी सूरत

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें