Indian Army के इस जवान की कहानी कर देगी इमोशनल, करना पड़ रहा ये काम

सेना (Army) का एक जवान आज मजदूरी करने को मजबूर है। जी हां, ओडिशा के रहने वाले चंदूराम माझी सेना में हवलदार थे। वे गोंड आदिवासी समाज से आते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान वे जम्मू-कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल और राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में तैनात रहे।

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बेटियों के साथ चंदूराम माझी।

ओडिशा (Odisha) के नुआपाड़ा जिले के परसखोल गांव के रहने वाले 51 साल के चंदूराम ने साल 1988 में सेना (Army) ज्वॉइन किया था। वे आर्मी सर्विस कार्प्स में हवलदार थे।

सेना (Army) का एक जवान आज मजदूरी करने को मजबूर है। जी हां, ओडिशा (Odisha) के रहने वाले चंदूराम माझी सेना में हवलदार थे। वे गोंड आदिवासी समाज से आते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान वे जम्मू-कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल और राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में तैनात रहे।

उन्होंने सोचा था कि जब वह सेना (Army) की वर्दी उतारेंगे तो उनको एक सुकून और आराम की जिंदगी मिलेगी। लेकिन माझी को क्या पता था कि जिंदगी ऐसे मुश्किल हालातों में लाकर खड़ी कर देगी कि उन्हें अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए मजदूरी करनी पड़ेगी। यहां तक कि सेना में सेवा दे चुके इस जवान ने गुजारा करने के लिए साइकिल रिपेयरिंग का काम भी किया।

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ओडिशा के नुआपाड़ा जिले के परसखोल गांव के रहने वाले 51 साल के चंदूराम ने साल 1988 में सेना (Army) ज्वॉइन किया था। वे आर्मी सर्विस कार्प्स में हवलदार थे। चंदूराम जैसे रिटायरमेंट के करीब पहुंचे ही थे कि परिवार पर संकट आ गया। उनकी पत्नी को कमर के नीचे किसी तरह का पक्षाघात आ गया था।

पक्षाघात से हो गई पत्नी की मौत

जब उन्होंने अपनी बीमार पत्नी के साथ-साथ एक नवजात शिशु सहित उनकी 4 बेटियों की देखभाल करने के लिए अपनी छुट्टी को और बढ़ाने की मांग की। पर, उन्हें अनुमति नहीं मिली और ड्यूटी पर लौटने का निर्देश दिया गया।

माझी कहते हैं, “मैं अगस्त 2012 में सेवानिवृत्त होने वाला था और अपने पैतृक गांव में अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए बहुत खुश था। इसी बीच मेरी पत्नी के कमर के नीचे किसी तरह का पक्षाघात सामने आया। मैंने उसे जम्मू-कश्मीर के अस्पताल में दिखाया, जहां पर मेरी पोस्टिंग थी। लेकिन एक महीने के इलाज के बाद मुझे बताया गया कि बीमारी अनुवांशिक है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। मैं उसे नुआपाड़ा में अपने गांव ले आया। जहां नवंबर, 2012 में उसकी मौत हो गई।”

भटकते रहे एक जगह से दूसरी जगह 

इसके बाद तो माझी पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इन हालातों में वे ड्यूटी ज्वॉइन नहीं कर पाए। इस बीच उनकी रिटायरमेंट की डेट भी निकल गई। सेवानिवृत्ति की निर्धारित तिथि के बाद उन्होंने सेना से अपनी सेवानिवृत्ति की बकाया राशि प्राप्त करने की भी कोशिश की। उन्होंने बैंगलोर के एएससी रिकॉर्ड रूम को कई पत्र लिखे।

उन्हें जम्मू-कश्मीर में अपनी अंतिम इकाई में फिर से शामिल होने की सलाह दी गई थी। लेकिन जब वे वहां गए तो उन्हें बैंगलोर में रिकॉर्ड रूम में जाने के लिए कहा गया। इन सब से कुछ नहीं हुआ। वे एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे। ट्रेन से लगभग एक पखवाड़े तक यात्रा करने की वजह से वे बीमार हो गए और फिर थक हार कर घर वापस आ गए।

माझी बताते हैं कि कुछ समय बाद उन्हें फिर से जम्मू-कश्मीर में अपनी आखिरी इकाई में शामिल होने के लिए कहा गया। साल 2017 में वहां पहुंचने के बाद 89 दिनों तक क्वार्टरगार्ड के रूप में रखा गया और हवलदार से सिपाही के पद पर डिमोट कर दिया गया। वे आगे बताते हैं कि वहां लगभग एक साल तक रहने के बाद भी उन्हें कोई वेतन नहीं मिला, जिसके बाद वे जनवरी, 2019 में घर लौट आए।

सेना से मिली बकाया राशि, लेकिन…

माझी कहते हैं कि उन्हें रिटायरमेंट की बकाया राशि मिलने की एक उम्मीद तब जगी, जब पिछले साल दिसंबर में 5271 एएससी बटालियन ने पत्र लिखकर सभी दस्तावेज बैंगलोर में ASC रिकॉर्ड रूम भेजने की बात कही।

हालांकि, माझी को इस साल की शुरुआत में थोड़ी राहत तब मिली जब सेना (Army) की ओर से उनकी बकाया राशि के 3.14 लाख रुपए मिले। लेकिन इससे उनका ज्यादा भला नहीं हुआ, क्योंकि पिछले कुछ सालों में माझी ने काफी कर्ज भी ले रखा था। जिसको चुकाने में ही यह सारी राशि खत्म हो गई। माझी की चार बेटियां हैं। इसमें एक 22 साल की, दूसरी 19 साल की, तीसरी 17 साल की और चौथी बेटी 9 साल की है।

24 साल बिताया देश की सेवा में

माझी बताते हैं कि बेटियों को पढ़ाने के लिए पूरी कोशिश की है। स्कूल और कॉलेज जाती हैं। लेकिन अब अगर उनकी बकाया राशि नहीं मिलती है तो आगे परिवार चलाना मुश्किल होगा। माझी ने कहा कि सरकार ने सभी गरीब परिवारों को सहायता का प्रावधान किया है, लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसने अपना जिंदगी के 24 सालों से अधिक का वक्त देश की सेवा में बीता दिया, उसे कोई लाभ नहीं मिला।

आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी

गुडफुला ग्रामपंचायत के सरपंच हरि माझी बताते हैं कि पूर्व आर्मीमैन (Army Man) ने अपने परिवार के भरण पोषण के लिए साइकिल रिपेयरिंग का काम किया है और चिकेन तक बेचे हैं। सरपंच कहते हैं कि कई दिनों तक उन्होंने दैनिक मजदूर के रूप में किया है। यहां तक कि कुछ दिन पहले उन्होंने आत्महत्या की भी कोशिश की थी।

जिला कलेक्टर ने की पहल

इस बारे में नुआपाड़ा के जिला कलेक्टर स्वधा सिंह ने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ से बात करते हुए कहा कि उन्हें 2 दिन पहले ही इस मामले के बारे में जानकारी मिली है। उन्होंने संबंधित अधिकारी से इस बाबत जानकारी मांगी है कि माझी को किस आधार पर भगोड़ा घोषित किया गया था। कलेक्टर ने कहा कि हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें सम्मानित तरीके से सेवा से रिटायर किया गया या नहीं।

कलेक्टर स्वधा सिंह ने कहा, “मैंने अपने अधिकारियों से कहा है कि वह अंतिम सेवारत इकाई के कमांडिंग ऑफिसर से बात करें। अगर कोई वास्तविक आधार है तो हम उसकी मदद करने की कोशिश करेंगे। हम कोशिश कर रहे हैं कि उनकी बेटियां स्कूल और कॉलेजों में अपनी पढ़ाई जारी रखें। कलेक्टर ने कहा कि जैसे ही हमें उनके रिकॉर्ड के बारे में पता चलता है, हम जिला रेडक्रॉस फंड से उनकी मदद करेंगे।”

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