
नक्सलियों के दिन लद गए हैं और इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस साल पिछले 5 महीने में सुरक्षा बलों ने 18 नक्सलियों को मार गिराया है।
एक वक्त था जब नक्सलियों ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था। झारखंड के बीहड़ों में ‘लाल आतंक’ ने पुलिस को खूब छकाया और यहां प्रशासन तथा आम लोगों को काफी नुकसान भी पहुंचाया। लेकिन अब नक्सलियों की शामत आ चुकी है। जी हां, पिछले महीने के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड के जिन इलाकों को कभी घोर नक्सली प्रभावित माना जाता था और जहां कभी भाकपा माओवादी, टीपीसी और पीएलएफआई के खूंखार सदस्यों का बोलबाला होता था वहां अब हालात काफी बदल गए हैं। नक्सलियों के दिन लद गए हैं और इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस साल पिछले 5 महीने में सुरक्षा बलों ने 18 नक्सलियों को मार गिराया है। 65 से अधिक को गिरफ्तार भी किया है। इतना ही नहीं इन पांच महीनों में नक्सलियों के साथ पुलिस की 20 से अधिक मुठभेड़ हो चुकी है और आंकड़ों की मानें तो अब इस राज्य में महज 550 नक्सली ही बचे हैं।
बचे हुए नक्सलियों के सफाए के लिए यहां प्रशासन ने 250 नक्सलियों के सिर पर इनाम घोषित कर दिया है और 30 अन्य पर इनाम घोषित करने की प्रक्रिया चल रही है। साल 2010 तक आलम यह था कि झारखंड के घने जंगलों में नक्सली अक्सर पुलिस पर भारी पड़ते थे लेकिन अब नक्सली अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर छिपते फिरते हैं। दरअसल, यह सब कुछ संभव हो सका है सुरक्षाबलों की मुस्तैदी और सरकार द्वारा नक्सलियों के सरेंडर करने के लिए चलाई जा रही नीतियों से। आज पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियार हैं और पहले से मजबूत सूचनातंत्र भी मौजूद है। जिसकी वजह से प्रशासन इन नक्सलियों के खिलाफ एक मुकम्मल रणनीति बनाकर उन पर भारी पड़ रही है। राज्य के लगभग सभी थानों और पिकेटों की सुरक्षा पहले से और भी ज्यादा बढ़ा दी गई है। इसके चलते पुलिस नक्सलियों के किसी भी करतूत का मुंहतोड़ जवाब दे रही है।
पुलिस नक्सलियों के खिलाफ पहले से ज्यादा प्रहार कर रही है। शायद यही वजह है कि पिछले पांच महीने में खूंटी जिले में पुलिस के साथ अलग-अलग मुठभेड़ में PLFI के 6 नक्सली मारे गए। इनमें गुमला में 3 और रामगढ़ में 1 नक्सली मारा गया। इसके अलावा हजारीबाग में टीपीसी के 3 नक्सली मारे गए हैं। चतरा जिले में माओवादी संगठन के 1, दुमका में 1 और गिरिडीह में 3 नक्सली मारे गए हैं। नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन का असर यह हुआ है कि कई नक्सलियों ने डर के मारे पुलिस के सामने घुट टेक दिए हैं। नक्सली संगठन में शोषण और प्रताड़ना से तंग आकर भी हाल के महीनों में 4 नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है।
लोकसभा चुनाव से पहले नक्सलियों ने इस चुनाव का बहिष्कार भी किया था। नक्सलियों ने सुदूर गांवों में पोस्टर लगाकर लोगों को मतदान में हिस्सा ना लेने की धमकी भी दी थी। लेकिन सुरक्षाबल अब नक्सलियों से दो कदम आगे चल रहे हैं। यही वजह है कि इस लोकसभा चुनाव में उनकी धमकियों का कोई असर नहीं हुआ। झारखंड में जहां कहीं भी इन दहशतगर्दों ने खौफ फैलाने की कोशिश की सुरक्षाबलों ने उनके इरादों को नेस्तानाबूत कर दिया। पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के आगे नक्सली बेबस नजर आए।
जाहिर है झारखंड से नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं और वो अब अपनी मांद में ज्यादा दिनों तक महफूज नहीं रह सकते हैं। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए चलाई जा रही नीतियां और जागरुकता कार्यक्रम भी इस दिशा में कारगर पहल साबित हुई हैं। कई नामी नक्सली पहले ही मुख्यधारा में लौट चुके हैं और इन सरकारी नीतियों का लाभ भी उठा रहे हैं।
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