…जब अदालत ने इंदिरा गांधी को 6 साल के लिए राजनीति से कर दिया था बेदखल

इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में ‘भ्रष्ट तौर तरीके’ अपनाने के आरोप में चल रहे एक केस में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की इलाहाबाद खंडपीठ ने उन्हें सजा देकर छह वर्षों के लिए राजनीति से बेदखल कर दिया था।

emergency

1975 आपातकाल

आज 25 जून है। देश के इतिहास में काला दिन। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून, 1975 को उस समय एक काला अध्याय जुड़ गया, जब आज से 43 साल पहले देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपना राजनीतिक अस्तित्व और सत्ता बचाने के लिए देश में आपातकाल (Emergency) लगा दिया।

इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में ‘भ्रष्ट तौर तरीके’ अपनाने के आरोप में चल रहे एक केस में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की इलाहाबाद खंडपीठ ने इंदिरा जी को सजा देकर छह वर्षों के लिए राजनीति से बेदखल कर दिया था। इसके पीछे की कहानी यह है कि मार्च 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को जबरदस्त जीत मिली थी। कुल 518 सीटों में से कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा (352) सीटें हासिल हुई। इससे पहले कांग्रेस पार्टी के लगातार बंटते रहने से इसकी आंतरिक संरचना कमजोर हो गई थी। ऐसे में पार्टी के पास इंदिरा गांधी पर निर्भर होने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं रह गया था।

इंदिरा गांधी की छवि बैंकों के राष्ट्रीयकरण और ‘प्रिवी पर्स’ (राजपरिवारों को मिलने वाले भत्ते) खत्म करने जैसे फैसलों से गरीबों के समर्थक के रूप में बन गई थी। अपने सलाहकार और हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा रचे गए ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर वे आम चुनावों में उतरीं। जनता को उनकी नई छवि से काफी उम्मीद हो चली थी सो उसने इंदिरा गांधी को एक बार फिर प्रचंड बहुमत से देश का नेतृत्व सौंप दिया। इस चुनाव में इंदिरा गांधी लोकसभा की अपनी पुरानी सीट यानी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से एक लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनी गई थीं। लेकिन इस सीट पर उनके प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण ने उनकी इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।

राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दर्ज कराया था। यह मुकदमा ‘इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण’ के नाम से ​चर्चित हुआ। राजनारायण उत्तर प्रदेश के वाराणसी के प्रखर समाजवादी नेता थे। उनके इंदिरा गांधी से कई मसलों पर नीतिगत मतभेद थे। इसलिए वे कई बार उनके खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़े और हारे। 1971 में भी उन्हें यहां हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार और सरकारी मशीनरी एवं संसाधनों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। राजनारायण के वकील शांतिभूषण थे। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने चुनाव प्रचार में सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल किया।

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शांतिभूषण ने इसके लिए प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर का उदाहरण दिया जिन्होंने राष्ट्रपति से अपना इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए काम करना शुरू कर दिया था। अदालत ने इस आधार पर ही इंदिरा गांधी की सांसदी को ​खारिज कर दिया। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है। हालांकि, अदालत ने कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए ‘नई व्यवस्था’ बनाने के लिए तीन हफ्तों का वक्त दे दिया। साथ ही उसने इंदिरा गांधी को भ्रष्टाचार के आरोप से भी मुक्त कर दिया था। लेकिन कोर्ट के इस फैसले से बौखलाई इंदिरा गांधी ने बिना केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सहमति एवं कांग्रेस कार्यकारिणी की राय लिए सीधे तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से मिलकर पूरे देश में इमरजेंसी (Emergency) लागू करवा दी।

उस समय इंदिरा गांधी की अधिनायकवादी नीतियों, भ्रष्टाचार और सामाजिक अव्यवस्था के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ‘समग्र क्रांति आंदोलन’ चल रहा था। यही वह समय भी था जब गुजरात और बिहार में छात्रों के आंदोलन के बाद देश का विपक्ष कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हो चुका था। लोकनायक कहे जाने वाले जयप्रकाश नारायण यानी जेपी पूरे विपक्ष की अगुआई कर रहे थे। वे मांग कर रहे थे कि बिहार की कांग्रेस सरकार इस्तीफा दे दे। वे केंद्र सरकार पर भी हमलावर थे। ऐसे में कोर्ट के इस फैसले ने विपक्ष को और आक्रामक कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी की रैली थी। जेपी ने इंदिरा गांधी को स्वार्थी और महात्मा गांधी के आदर्शों से भटका हुआ बताते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की।

उस रैली में जेपी द्वारा कहा गया रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का अंश अपने आप में नारा बन गया। यह नारा था- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जेपी ने कहा कि अब समय आ गया है कि देश की सेना और पुलिस अपनी ड्यूटी निभाते हुए सरकार से असहयोग करे। उन्होंने कोर्ट के इस फैसले का हवाला देते हुए जवानों से आह्वान किया कि वे सरकार के उन आदेशों की अवहेलना करें जो उनकी आत्मा को कबूल न हों। इस एक तरफा तथा निरंकुश आपातकाल (Emergency) के सहारे देश के सभी गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों, कई सामाजिक संस्थाओं, राष्ट्रवादी शैक्षणिक संस्थाओं, सामाचार पत्रों, वरिष्ठ पत्रकारों/नेताओं को काले कानून के शिकंजे में जकड़ दिया गया। डीआईआर (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल) तथा मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) जैसे सख्त कानूनों के अंतर्गत लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल, सामाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन और संघ के हजारों अधिकारियों और कार्यकर्ताओं को 25 जून, 1975 की रात्रि को गिरफ्तार करके जेलों में बंद कर दिया गया।

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प्रचार के सभी माध्यमों पर सेंसरशिप की क्रूर चक्की चला दी गई। आम नागरिकों के सभी मौलिक अधिकारों को एक ही झटके में छीन लिया गया। जेलों में जगह नहीं बची थी। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थीं। प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। आपातकाल के दौरान एक और बात जो सबसे अधिक चर्चा में रहती है वो यह है कि संजय गांधी ने आपातकाल में जोर-शोर से नसबंदी अभियान चलाया था।

इस पर जोर इतना ज्यादा था कि कई जगह पुलिस द्वारा गांवों को घेरने और फिर पुरुषों को जबरन खींचकर उनकी नसबंदी करने की भी खबरें आईं। जानकारों के मुताबिक, संजय गांधी के इस अभियान में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी हुई थी। बताया जाता है कि इस दौरान गलत ऑपरेशनों से करीब दो हजार लोगों की मौत भी हुई। यह आपातकाल 21 मार्च, 1977 तक लगा रहा। आखिरकार, जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची। इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा। मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ। 1977 में फिर आम चुनाव हुए। चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी। इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई। 23 मार्च, 1977 को 81 वर्ष की उम्र में मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने। ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी।

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