नक्सलवाद का सच

छत्तीसगढ़ के सिलगेर में आंदोलन जारी है। पुलिस कैंप के विरोध में ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं। पूरे बस्तर में इस आंदोलन का असर दिखाई दे रहा है।

सुकमा में नक्सलियों ने सड़क निर्माण के दौरान पाइप बम के जरिए IED भी प्लांट किया, जिससे जवानों को नुकसान पहुंचे और दंतेवाड़ा में कई जगह सड़कें काट दीं।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन में प्रशासन को लगातार सफलता मिल रही है। नक्सली आए दिन सरेंडर (Surrender) कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नारायणपुर जिले में पांच नक्सलियों ने 4 जून को सरेंडर (Naxalites Surrender) कर दिया। इन नक्सलियों ने नारायणपुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है।

झारखंड (Jharkhand) के नक्सल प्रभावित गढ़वा जिले में दो महिला नक्सलियों (Women Naxalites) ने सरेंडर (Surrender) किया है। वे नक्सलवाद (Naxalism) का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौट आई हैं।

पुलिस ने गुरुवार को 2 नकली AK-47 बरामद की हैं। एसपी ने कहा है कि छोटे कैडर के नक्सलियों (Naxalites) का इसके लिए इस्तेमाल हो रहा है।

Chhattisgarh: ये सिलगेर और दरभा के ग्रामीणों के नजरिए का ही फर्क है। क्योंकि सिलगेर के ग्रामीण जवानों को अपना दुश्मन मान रहे हैं।

नक्सली कोरोना संक्रमण को लेकर झूठ बोल रहे हैं। इसका असर ये हुआ है कि नक्सल प्रभाव वाले अंदरूनी इलाकों में कोरोना तेजी से फैल रहा है।

तेलंगाना में कोरोना से मरने वाले नक्सली (Naxalites) कमांडर कोरसा गंगा उर्फ आयतु से जुड़ा है। इस नक्सली का अंतिम संस्कार सुकमा जिले की पुलिस ने किया है।

अपनी बढ़ती मांग की वजह से नुनूचंद को घमंड होने लगा और वह नक्सली (Naxalites) संगठन की महिलाओं के साथ संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती करने लगा।

सुकमा में नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले सिलगेर के जंगल में पुलिस कैंप खुलने का ग्रामीण आदिवासी पिछले 14 दिनों से विरोध कर रहे हैं।

नुनूचंद 5 लाख का इनामी नक्सली है और उसने पीरटांड थाने में शुक्रवार दोपहर सरेंडर किया। उसके सरेंडर करने से दोनों जिलों की पुलिस ने राहत की सांस ली है।

इस नक्सली (Naxalites) के खिलाफ सुकमा और बीजापुर जिले की सीमा में सुरक्षाबलों पर हमला करने का आरोप है। ये नक्सली बीते महीने घटी उस नक्सली घटना में शामिल था।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों का असर दिख रहा है। बस्तर (Bastar) में नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने से उनमें खौफ आ गया है।

आदिवासी, नक्सलियों (Naxalites)  की बातों में आ जाते हैं और उनके मददगार बन जाते हैं। नक्सलियों की ताकत जंगलों के भीतर और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग ही हैं, जिनसे उन्हें सबसे अधिक सहयोग मिलता है।

खबर है कि कोरोना की वजह से कई नक्सलियों (Naxalites) की हालत गंभीर है। ऐसे में इन संक्रमित नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर करना शुरू कर दिया है।

Naxalites: इस शख्स का नाम नरेश दास है और वह बीते साल नक्सलवाद को छोड़कर मुख्यधारा में लौट आए थे। अब वह मुख्यमंत्री अनुदान पर ऑटो चलाते हैं।

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