नक्सलवाद का सच

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन फिर भी नक्सली अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।

अपराधियों ने PLFI सुप्रीमो दिनेश गोप के नाम पर आईएमए सचिव शंभू सिंह से 20 लाख रुपए और रांची के कपड़ा कारोबारी बबलू से 50 लाख रुपए की रंगदारी की मांग की थी।

गया जिले के बाराचट्टी वन क्षेत्र में बिहार पुलिस और कोबरा बटालियन की माओवादियों (Maoists) के साथ मुठभेड़ हुई है। इस मुठभेड़ में 3 लोग मारे गए हैं।

बीजापुर पुलिस ने बताया कि मनकेली-गोरना मार्ग पर बारूदी सुरंग में विस्फोट होने से बम निरोधक दस्ते के जवान निर्मल कुमार शाह घायल हुए हैं।

नक्सलियों के खिलाफ झारखंड में अभियान तेज है। इसी बीच तोरपा पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है। तोरपा पुलिस ने PLFI के 2 नक्सलियों को गिरफ्तार किया है।

नक्सलियों की पहचान जगरगुंडा सुकमा निवासी मुचाकी भीमा, मीडियम लखमा और माड़वी भीमे के रूप में हुई है। माड़वी प्लाटून नंबर 1 की सदस्य है।

पत्नी प्रमिला मेहरा समेत ग्रामीणों ने ये आरोप लगाया कि ये शव किसी नक्सली का नहीं, बल्कि पीरटांड के गम्हरा गांव निवासी 45 वर्षीय राजकुमार किस्कू का है।

झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, इसके बावजूद नक्सली अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।

नक्सली अख्तर अंसारी उर्फ बादल गिरिडीह जिले के बेंगाबाद थाना के लुप्पी गांव का रहने वाला है। उसके नक्सली बनने की वजह काफी अजीब है।

गिरफ्तार किए गए नक्सली में एरिया कमांडर तुलसी पहान भी है। पुलिस ने इन नक्सलियों के पास से कारबाइन भी बरामद किया है।

दरअसल पुलिस को खुफिया सूचना मिली थी, जिसके बाद ये कार्रवाई की गई। पकड़े गए नक्सली (Naxalite) का नाम अशोक यादव बताया गया है।

सरेंडर करने वाले नक्सलियों का नाम नंदा राम सोढ़ी, जटेल मरका और रंजिश मुचाकी है। इन नक्सलियों पर एक-एक लाख रुपए का इनाम घोषित था।

घटना लोहरदगा जिले के पेशरार थाना क्षेत्र के ओनेगढ़ा में करीब 5 बजे हुई। हथियारबंद नक्सलियों (Naxalites) ने मजदूरों को बंधक बना लिया।

जानकारी चतरा के एसपी ऋषभ झा ने दी है। गिरफ्तार नक्सली का नाम कृष्णा गंझु है और वह टीपीसी के एरिया कमांडर के रूप में काम कर रहा था।

झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है। ताजा मामला रामगढ़ थाना क्षेत्र के बांसडीह खुर्द पंचायत गांव के कोयल नदी पुल का है।

गिरिडीह जिले के पारसनाथ क्षेत्र को पहले नक्सलियों का अभेद किला माना जाता था। यहां के बीहड़ों की आड़ में नक्सलियों को ट्रेनिंग दी जाती थी।

कहा जा रहा है कि ये नक्सली, संगठन की विचारधारा से परेशान हो गया था। इसलिए सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर उसने सरेंडर किया।

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