सच के सिपाही

'दंतेश्वरी लड़ाके' दल  (Danteshwari Fighters) में शामिल महिला कमांडो जितनी खास हैं उतनी ही खास है इस दल का नाम दंतेश्वरी देवी के नाम पर रखे जाने के पीछे की कहानी।

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 1 मई को हुए नक्सली हमले में शहीद जवानों की कहानियां दिल को झकझोर देने वाली हैं। इस हमले में 15 पुलिसकर्मी और एक ड्राइवर शहीद हो गए थे। इन्हीं शहीदों में शाहू मदावी और तोमेश्वर सिंघत भी शामिल थे। शाहू मदावी पुलिस के जवान थे जबकि तोमेश्वर सिंघत उस वाहन के ड्राइवर थे जिस पर नक्सलियों ने हमला किया था।

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 1 मई को हुए नक्सली हमले में शहीद 16 जवानों में बीड जिले के तौसिफ शेख भी हैं। तौसिफ ने हमले से कुछ देर पहले ही अपनी मां से फोन पर बात की थी।

यह तीनों जब एक साथ रणभूमि में खड़ी हो जाती हैं तो नक्सलियों के पसीने छूटने लगते हैं। खासकर उस वक्त जब इनके हाथों में बंदूक हो तो वो नक्सलियों के लिए काल बन जाती हैं।

आग बुझाने के दौरान कमांडर चौहान के फेफड़ों में धुंआ और गैस भर जाने से वह बेहोश होकर गिर गए। उन्हें वहां से निकालकर तुरंत कारवाड़ स्थित नेवी हॉस्पिटल ले जाया गया। पर, उन्हें बचाया नहीं जा सका।

जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में 14 अप्रैल को सर्च ऑपरेशन के दौरान मेजर विकास सिंह शहीद हो गए। मेजर विकास अंबुश लगाते समय खाई में गिर गए थे।

आज जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं बरसी है। इस मौके पर हम आपको ले चलते हैं अतीत की उन गलियों में जिनसे बहुत कम ही लोग परिचित होंगे। ठीक सौ साल पहले आज ही के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में वो दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी जिसे इतिहास का काला अध्याय कहा जाता है।

मध्य प्रदेश के महू में सैन्य प्रशिक्षण के दौरान हुई दुर्घटना में देवबंद के अरूण राणा जख्मी हो गए थे। 11 अप्रैल की रात अरूण को दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।

शहीद दंतेश्वर मौर्य एक महीने पहले ही छुट्टियों में घर आए थे। 12 अप्रैल को उनकी भतीजी की शादी है, जिसके लिए उन्हें दो दिन बाद ही घर जाना था। पर शादी के मौके पर घर में मातम का माहौल है।

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में अदम्य साहस का परिचय देते हुए हिमाचल प्रदेश के अजय कुमार शहीद हो गए थे। अजय कुमार (Martyr Ajay Kumar) सिरमौर जिले के कोटला पंजोला पंचायत के रहने वाले थे। वे 42 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे।

दुश्मनों की गोली लगने से गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद भी कन्नौज का वीर सपूत पंकज दूबे सात दिनों तक ज़िंदगी से जंग लड़ता रहा और अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ। पंकज की शहादत देशभक्ति की सच्ची मिसाल है। मातृभूमि को शहीद पंकज दूबे पर हमेशा नाज़ रहेगा।

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में भोपाल के जवान हरीश चंद्र पाल शहीद हो गए थे। वह सीआरपीएफ की 211 वीं बटालियन में हवलदार थे।

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 4 अप्रैल को एयरफोर्स की एक गाड़ी में ब्लास्ट हो गई। इसमें वायु सेना के दो जवान शहीद हो गए हैं। शहीद होने वाले जवानों में एक जवान अजय कुमार थे। अजय रेवाड़ी के जैनाबाद गांव के रहने वाले हैं। 32 साल के अजय अपनी टीम के साथ गश्त पर निकले थे। इसी दौरान गाड़ी में विष्फोट हो गया।

अक्षय पालमपुर के पास कंडबाड़ी क्षेत्र के स्पैडू के रहने वाले थे। वह सिर्फ 23 साल के थे। पिछले चार सालों से अक्षय सेना में थे। अक्षय ने शुरू से ही भारतीय सेना में जाने का मन बना लिया था। सेना में जाना उनका बचपन का ख़्वाब था।

4 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के कांकेर में हुए नक्सली हमले में शहीद होने वाले बीएसएफ के 4 जवानों में झारखंड के धनबाद के लोधना के रहने वाले इशरार खान भी हैं। शहीद मोहम्मद इशरार खान बीएसएफ के 114वीं बटालियन में थे।  उनका परिवार लोधना के साउथ गोलकडीह में रहता है। परिवार में सब उन्हें टिंकू कह कर बुलाते थे।

फांसी से ठीक पहले लिखे अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने लिखा, ‘मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं।'

भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेम्बली के अंदर बम फेंका। बम फेंकने के अपराध में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्तूबर, 1930 को फांसी की सजा सुना दी गई।

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