सच के सिपाही

झारखंड के सरायकेला में 14 जून को नक्सली हमले में बिहार के भोजपुर जिले के वीर सपूत गोवर्धन पासवान भी शहीद हो गए थे। वे धोबहां ओपी के बाघी पाकड़ गांव के रहने वाले थे।

मनोधन अपनी बहनों सकोदी हांसदा और सनोदी हांसदा से काफी लगाव रखते थे

इस युद्ध में देश की खातिर सीने पर हंसते-हंसते गोली खाने वाले कई बहादुर जवानों के किस्से अक्सर दुनिया भर में बैठे भारतियों को खुद पर गौरव करने का एक बेहतरीन लम्हा देते हैं।

ड्यूटी पर जाने से पहले संदीप ने आख़िरी बार अपने एक दोस्त अर्जुन चौधरी से बात की थी।

महेश पांच माह पहले छुट्टी पर आए थे और इसी माह आने का वादा करके ड्यूटी पर गए थे।

जुम्मन अली की गरजती बंदूक का अंजाम यह हुआ कि इस मुठभेड़ में कई आतंकी उनकी गोली से घायल हो गए। जुम्मन अली ने मौके पर ही दो आतंकियों को ढेर भी कर दिया।

आगरा के वीर सपूत अमित चतुर्वेदी के परिवार के लिए यह दिन खुशियों वाला होता है। लेकिन देश की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले अमित का 3 जून को अंतिम संस्कार किया गया।

प्रवीण कुमार जम्मू के लेह में तैनात थे। प्रवीण वर्ष 1993 में रांची के बीआरओ के जरिये सेना की सेवा में आए। सेना में यह उनके बेहतरीन काम का ही परिणाम था कि वो प्रोमोशन पाकर नायाब सूबेदार बन गए थे।

ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से दुश्मन दनादन गोलियां बरसा रहे थे और भारत मां के वीर सपूत नीचे धरती की रक्षा के लिए दुश्मनों से लोहा ले रहे थे।

करीब 75 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली में ब्रिटिश इंडियन आर्मी की फ्रंटियर फोर्स राइफल के सिपाही रोहतक के झज्जर के गांव नौगांवा के हरिसिंह और नंगथला गांव के पालुराम भी शहीद हो गए थे।

भारतीय इतिहास में कुछ नाम पन्नों में दबे रह गए हैं। वो नाम जो इतिहास के पन्नों में तो दर्ज हैं लेकिन कभी लोगों की जुबान पर नहीं रहे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में रास बिहारी बोस एक ऐसा ही नाम है।

Kartar Singh Sarabha Birth Anniversary: करतार सिंह सराभा ने महज 19 साल की उम्र में ही फांसी के फंदे को चूम लिया था। लाहौर षड़यंत्र केस में इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी।

Field Marshal K M Cariappa: के एम करिअप्पा का पूरा नाम कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा (Field Marshal K M Cariappa)  है। वे स्वतंत्र भारत की सेना के 'प्रथम कमांडर इन चीफ़' थे।

अत्याचार, लगातार पिटाई और मानसिक टॉर्चर से वो परेशान हो गए थे और एकबार उन्होंने अपने दोस्त भगत सिंह से कहा मैं ये सब सह नहीं पा रहा, इससे अच्छा तो आत्महत्या कर लूं।

पोते की शहादत की सूचना पर दादा विश्वनाथ सिंह अपनी सुध-बुध खो बैठे हैं। परिवार वालों की चीत्कार से पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है।

ट्रेन सामने थी, जान दांव पर था फिर भी अपनी जान देकर बचा ली चार लोगों की जिंदगी। परिवार के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

शहादत के वक्त परिवार से बड़े-बड़े वादे किए गए थे। सरकारी नौकरी और तमाम तरह की सुविधाओं की भी बात कही गई थी। लेकिन वादे अधूरे रह गए। आज परिवार पर रोजी-रोटी का संकट है।

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