सच के सिपाही

14 फरवरी, 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में हमारे 40 जवान शहीद हुए थे। कई जवान जख्मी भी हुए थे। इस घटना से पूरे देश में रोष और संवेदना की लहर फैल गई थी।

एक जवान ने देखा कि नियंत्रण रेखा के करीब 8 किलोमीटर दूर हसमत पूरा क्षेत्र में कुछ आतंकवादी छिपे हुए हैं। सेना के जवानों ने इन आतंकियों को चारों तरफ से घेर लिया। खुद को घिरा महसूस करते ही आतंकवादियों ने पुलिस पर गोले बरसाने शुरू कर दिए।

दुश्मन की एक गोली आबिद के पैर में लग गई। असहनीय दर्द और बुरी तरह घायल होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत न हारते हुए आगे बढ़कर एक साथ 32 फायर झोंक दिए। आबिद के इस ताबड़तोड़ हमले में एक साथ 17 पाक सैनिकों की लाशें बिछ गईं।

अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अब्दुल हमीद ने अपनी "गन माउन्टेड जीप" को एक टीले के समीप खड़ा कर दिया और गोले बरसाते हुए शत्रु के तीन टैंक ध्वस्त कर डाले। वीर हमीद की शहादत ने यह सन्देश भी दिया कि केवल साधनों के बलबूते युद्ध नहीं जीता जाता।

जल्द ही घर आने वाले थे महादेव पाटिल, पर नियति को कुछ और ही मंजूर था।

मदनपाल सिंह साल 1986 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे और वे सीआरपीएफ में एसआइ के पद पर थे।

अपनी साफगोई और खरी-खरी सुनाने से सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) कभी बाज नहीं आते थे। चाहे फिर सामने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही क्यों न हों।

शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय (Captain Manoj Kumar Pandey), कारगिल युद्ध (Kargil War) में अपनी जान कुर्बान करने वाले इस वीर को परिचय की आवश्यकता नहीं है।

वीर शहीद जवान की मां ने कहा, 'आने वाले समय में भी हम अपने पुत्रों को पुलिस विभाग में भेजते रहेंगे'।

शहीद अपने पीछे अपनी पत्नी और 4 बेटों को छोड़ कर गए हैं। पहला बेटा सीताराम पुरतीजो 14 वर्ष के हैं वह सरायकेला में दसवीं कक्षा के छात्र हैं। जबकि दूसरे पुत्र राजेश पुरती 13 वर्ष के हैं जो राजनगर में नौवीं कक्षा में पढ़ाई करते हैं।

पत्नी और दिव्यांग बेटे का एकमात्र सहारा थे शहीद धनेश्वर महतो।

जिस तरह से शहीद के बेटे ने नक्सलियों को चेतावनी दी है इससे उनके माथे पर चिंता की लकीर थोड़ी तो जरूर खिंच गई होगी।

मजदूर से लेकर एएसआई तक का सफर किया शहीद मनोधन ने

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ के बाद अनिल घायल हो गए थे।

केतन और उनकी टीम ने मकान में घुसे दो आतंकवादियों को मौके पर मार गिराया। लेकिन एक आंतकवादी भागने लगा तो केतन और उनकी टीम ने उस पर फायरिंग की।

रानी पूरी तरह से फंस चुकी थीं। रानी अकेली थीं और सैकड़ों अंग्रेज सैनिक। सबने मिल कर रानी पर वार शुरू कर दिए। रानी घायल हो कर गिर पड़ीं। लेकिन अंग्रेज सैनिकों को जाने नहीं दिया।

सरायकेला में हुए नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के डिबरू पूर्ति भी शामिल हैं। वे मंझारी थाना के तेंतड़ा पंचायत के जावबेड़ा टोला पांडुसाई के रहने वाले थे।

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