
(फाइल फोटो)
नाथु ला विवाद का केंद्र इसलिए है क्योंकि 1965 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध के दौरान चीन ने इस इलाके को खाली करने के लिए बोला था लेकिन भारतीय सेना वहां से पीछे नहीं हटी थी।
चीन की विस्तारवाद की नीति भारत के खिलाफ रही है। वह हमेशा से भारतीय सरजमीं को हड़पने की फिराक में रहता है। चीन की इस नीति का भारतीय सेना ने कई बार जवाब दिया है। 1962 में चीनी सेना ने हमें हरा दिया था लेकिन 1967 में सेना ने सीमा विवाद के चलते चीनी सैनिकों को हावी नहीं होने दिया। भारत माता के वीरों ने चीनी सैनिकों को भगा-भगाकर मारा।
दरअसल 1967 का टकराव तब शुरू हुआ जब भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर को परिभाषित किया। 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है, जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है।
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असल में नाथु ला विवाद का केंद्र इसलिए है क्योंकि 1965 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध के दौरान चीन ने इस इलाके को खाली करने के लिए बोला था लेकिन भारतीय सेना वहां से पीछे नहीं हटी थी। जिसके बाद से यह जगह सीमा विवाद में शामिल है। भारत ने जैसे ही इस इलाके पर सीमा को परिभाषित किया चीन भड़क उठा और फायरिंग शुरू कर दी। अक्टूबर 1967 में सिक्किम तिब्बत बॉर्डर के चो ला में चीनी सेना ने भारी हमला बोल दिया। फायरिंग के बावजूद भारतीय सेना पीछे नहीं हटी और डटकर मुकाबला किया गया।
इस टकराव में भारत ने चीन के करीब 400 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था जबकि भारत के करीब 80 सैनिक शहीद हो गए थे। भारतीय सेना नाथु ला दर्रे पर अपनी पोजिशन को बनाए रखने में कामयाब हुई।
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