दिव्यांग पिता और भाई की उम्मीद तोड़ गए शहीद पंकज दूबे

दुश्मनों की गोली लगने से गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद भी कन्नौज का वीर सपूत पंकज दूबे सात दिनों तक ज़िंदगी से जंग लड़ता रहा और अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ। पंकज की शहादत देशभक्ति की सच्ची मिसाल है। मातृभूमि को शहीद पंकज दूबे पर हमेशा नाज़ रहेगा।

पंकज दूबे

शहीद पंकज दूबे

दुश्मनों की गोली लगने से गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद भी कन्नौज का वीर सपूत पंकज दूबे सात दिनों तक ज़िंदगी से जंग लड़ता रहा और अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ। पंकज की शहादत देशभक्ति की सच्ची मिसाल है। मातृभूमि को शहीद पंकज दूबे पर हमेशा नाज़ रहेगा।

शहीद पंकज दूबे उत्तर-प्रदेश के कन्नौज जिले के ग्राम गंगधरापुर के निवासी थे। इनके पिता का नाम शांति स्वरूप दुबे है। पंकज दो वर्ष पूर्व भारतीय सेना में रेडियो-ऑपरेटर के पद पर तैनात हुए थे। अभी पिछले साल दिसम्बर में पंकज छुट्टी लेकर गांव आए थे और लगभग दो महीने घर पर बिता कर गए थे।

इनकी तैनाती इस वक़्त जम्मू-कश्मीर के तंगधार इलाके में थी। पुलवामा हमले (Pulwama Attack) के बाद भारतीय सेना ने आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज़ कर दिया। कश्मीर के सरहदी इलाकों में सेना का सर्च ऑपरेशन चलता रहा। इन्हीं सब के बीच 29 मार्च को सेना की एक सर्च ऑपरेशन टीम में पंकज दूबे भी शामिल थे।

सर्च ऑपरेशन के दौरान ही आतंकियों की तरफ से चली गोली पंकज दूबे के सर में लग गई। पंकज दूबे को तुरंत सेना के जम्मू स्थित कैम्प हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जहां उनका इलाज चल रहा था। लेकिन जख्म अधिक होने के कारण इनको बचाया नहीं जा सका। इलाज के दौरान 4 अप्रैल की शाम को पंकज दूबे ने अंतिम सांस ली।

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इधर पंकज दूबे ने अस्पताल में दम तोड़ा तो उधर कन्नौज में उनके परिवार की उम्मीदों का दम टूट गया। मुसीबतों का ऐसा पहाड़ टूटा, जिसे परिवार कभी भूल नहीं पाएगा। घर में मातम छा गया। खबर सुनकर रिश्तेदार आना शुरू हो गए। आस-पड़ोस के लोग इकट्ठा होने लगे। हर कोई नम आंखों से शहीद के परिवार को सांत्वना दे रहा था।

अस्पताल में उनके भाई राम दूबे और पिता शांति स्वरूप दोनों मौजूद थे। परिस्थितियों की मार देखिए कि इनके एक भाई और पिता दिव्यांग हैं। शहीद पंकज दुबे परिवार में सबसे छोटे थे। बड़े भाई जवाहर दूबे बेरोज़गार हैं। बहन रुचि की शादी अभी हाल ही में हुई थी। शहीद का परिवार आर्थिक तौर पर बहुत कमजोर है।

परिवार वाले शहीह पंकज की शादी कराने को लेकर सपने देख रहे थे। गोली लगने के चार दिन पहले ही शहीद पंकज दूबे ने घर वालों से बात करते हुए बड़े भाई को कहा था कि जल्द ही आकर मकान की छत का काम पूरा करा दूंगा, उसके बाद शादी करूंगा। पर शायद क़िस्मत को कुछ और ही मंजूर था। परिवार वाले बेटे को सेहरा पहनते देखना चाहते थे पर आज बेटे का पार्थिव शरीर घर आ रहा है।

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