1962 के युद्ध की कहानी फुंचुक अंगदोस की जुबानी, ऐसा था इनका अनुभव

अंगदोस ने इस युद्ध से जुड़े अपने उन दिनों के अनुभव को साझा किया है। वे बताते हैं कि किस तरह उन दिनों युद्ध लड़ा और चुनौतियों का सामना किया था।

Indo China War 1962

रिटायर्ड हवलदार फुंचुक अंगदोस

Indo-China War 1962: अंगदोस ने इस युद्ध से जुड़े अपने उन दिनों के अनुभव को साझा किया है। वे बताते हैं कि किस तरह उन दिनों युद्ध लड़ा गया था और उसमें क्या-क्या चुनौतियों को सामना करना पड़ा था।

भारत और चीन के बीच 1962 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में चीन ने भारत को बुरी तरह से हराया था। चीन से हार की कई वजहें थीं। सबसे बड़ी वजह भारतीय सेना का आधी-अधूरी तैयारी के साथ जंग के मैदान में उतरना। इस युद्ध में रिटायर्ड हवलदार फुंचुक अंगदोस ने भी हिस्सा लिया था। 80 साल के अंगदोस ने इस युद्ध से जुड़े अपने उन दिनों के अनुभव को साझा किया है। वे बताते हैं कि किस तरह उन दिनों युद्ध लड़ा गया था और उसमें क्या-क्या चुनौतियों को सामना करना पड़ा था।

वे बताते हैं कि ‘मैं जब इस युद्ध में शामिल हुआ था तो मेरी उम्र महज 23 साल की थी। 45 साल बीत जाने के बाद भी 80 साल की उम्र में मुझे युद्ध से जुड़ी बातें अब भी याद हैं। रिटायर्ड हवलदार बताते हैं ’26 अक्टूबर को हमें चुशूल से देमचोक जाने का आदेश मिला था। हमने आदेश के मुताबिक पोजीशन बदल दी थी।। हमारे पास गाड़ियां भी कम थीं। मैं क्वार्टर मास्टर था, तो मैंने पहले लड़ने वाले फौजियों को राइफल लेकर देमचोक भेज दिया था। फिर तीन बार में हम बाकी जवान पहुंच पाए। अगले दिन 27 अक्टूबर को जंग शुरू हो गई। हमें अचानक वायरलेस पर मैसेज आया था कि जंग शुरू हो गई है।’

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वे आगे बताते हैं ‘देमचोक पहुंचने पर पता चला कि चीन ने तो रास्ता ही ब्लॉक कर दिया है, इस दौरान आर्मी हेडक्वार्टर ने भी हमें आगाह किया। हाईकमान ने हमसे बोला कि अपनी-अपनी जान बचाकर वहां से निकल लो क्योंकि दुश्मन हमें घेर चुके हैं। चुनौतियों के बावजूद हम करीब 1 दिन तक दुश्मनों से लड़ते रहे थे। इस दौरान मेजर शैतान सिंह शहीद हुए थे। शहीदों के शव बर्फ में हथियार के साथ दब चुके थे। जब हम जरूरत पड़ने पर उन शवों से हथियार को खींचते तो शरीर के टुकड़े भी साथ चिपक आते थे।’

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