
सांकेतिक तस्वीर।
Dantewada Naxal Attack 2010: हमले को प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया था। नक्सलियों ने हमारे जवानों को अपने जाल में फंसाया था और वह मुख्य सड़क से जवानों की पूरी टीम को 400 मीटर दूर ले गए थे। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि स्थानीय लोगों को इस हमले में नुकसान न पहुंचे।
नक्सली इस देश के सबसे बड़े दुश्मन कहे जाएं तो कम नहीं होगा। नक्सलियों ने कई मौकों पर हमारे जवानों को भारी नुकसान पहुंचाया है। नक्सलियों को मौत के घाट उतारने और नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए सीआरपीएफ और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं।
साल 2010 के अप्रैल महीने के 6 तारीख को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा हमला हुआ था। नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों पर हमला किया था जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे। यह हमला तब हुआ जब स्थानीय पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 80 से अधिक जवान एक टीम के तहत बस्तर आदिवासी क्षेत्र में सर्च ऑपरेशन में जुटे थे।
इसी दौरान हमला कर जवानों को बेरहमी से मार दिया गया था। दंतेवाड़ा के जंगलों में हुई खूनी भिड़ंत में नक्सलियों की तरफ से 3000 राउंड गोलियां चलाई गई थीं। हमले को प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया था।
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नक्सलियों ने हमारे जवानों को अपने जाल में फंसाया था और वह मुख्य सड़क से जवानों की पूरी टीम को 400 मीटर दूर ले गए थे। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि स्थानीय लोगों को इस हमले में नुकसान न पहुंचे।
नक्सलियों ने तय प्लानिंग के तहत ऐसा ही किया और हमारे जवान उनके जाल में फंसते चले गए थे। जवाबी कार्रवाई में सीआरपीएफ के जवानों की गोलियों से नक्सलियों के 9 नेता ढेर हुए। नक्सलियों ने पहले जवानों की गाड़ी पर फायरिंग की और फिर आईईडी से उड़ा दिया था।
करीब एक हजार नक्सलियों ने हमले को अंजाम दिया था। नक्सलियों ने पहले बारूदी सुरंग का विस्फोट किया और जब गाड़ी रुक गई तो उन्होंने एक पहाड़ी से जवानों पर हमला बोल दिया। हमारे ज्यादातर जवान हमले से पहले एंटी लेंडमाइन व्हीकल में सवार थे। हमला इतना जबरदस्त था जिससे जवानों को नुकसान झेलना पड़ा था।
मारे गए 76 जवानों में से उत्तर प्रदेश के 42, उत्तराखंड और बिहार के छह-छह, राजस्थान के चार, तमिलनाडु के तीन, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के दो-दो थे। वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली, असम, केरल, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश के एक-एक जवान थे। शहीदों में डिप्टी कमांडेंट और असिसटेंट कमांडेंट भी शामिल थे।
यह हमला इतना बड़ा था कि उस समय मुठभेड़ स्थल में रिपोर्टिंग करने गए एक पत्रकार ने ऑन कैमरा ही जमीन से गोलियां के दर्जनभर खांचे हाथ में एकत्रित कर लिए थे। एक स्थानीय चश्मदीद के मुताबिक हमला इतना भयंकर था कि चारों ओर से गोलियों की गूंज सुनाई दे रही थी। विस्फोट की आवाज बंद होने के नाम नहीं ले रही थी।
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