कारगिल युद्ध के दौरान ऐसा था हवलदार मुश्ताक अली का अनुभव, आंखों के सामने साथियों ने तोड़ा था दम

‘मेरी आंखों के सामने राजपूत रेजीमेंट के तीन जवान शहीद हो गए। उन दिनों सिर्फ मौत का खतरा मंडराया रहता था लेकिन देशसेवा का इससे बड़ा मौका हमें नहीं मिलने वाला था।’

Mushtaq Ali

हवलदार मुश्ताक अली।

Kargil War: युद्ध में हिस्सा ले चुके हवलदार मुश्ताक अली (Mushtaq Ali) ने अपने अनुभव साझा किए हैं। वे बताते हैं कि युद्ध के दौरान उनकी आंखों के सामने ही साथियों ने दम तोड़ दिया था।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। कारगिल का युद्ध लड़कर पाकिस्तान को इंटरनेशल बेइज्जती का सामना करना पड़ा था। हालांकि, भारत को भी नुकसान झेलना पड़ा था। इस युद्ध में हमारे 527 सैनिक शहीद हो गए थे।

युद्ध में हिस्सा ले चुके हवलदार मुश्ताक अली (Mushtaq Ali) ने अपने अनुभव साझा किए हैं। वे बताते हैं कि युद्ध के दौरान उनकी आंखों के सामने ही साथियों ने दम तोड़ दिया था।

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अली कहते हैं, “जिस वक्त जंग छिड़ी तो मेरी तैनाती उरी सेक्टर में थी। उरी सेक्टर कारगिल की पहाड़ियों से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। युद्ध के दौरान दिन हो चाहे रात सिर्फ गोलीबारी की आवाजें गूंजती थी।”

वे आगे बताते हैं, “ऐसे हालात पैदा हो गए थे कि मानो मोर्टार नहीं, बल्कि मौत बरस रही हो। जो जवान आम दिनों में दो घंटे की ड्यूटी और चार घंटे आराम करता था, लेकिन कारगिल में यही जवान 12-12 घंटे की ड्यूटी करते थे।”

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अली कहते हैं कि मेरी आंखों के सामने राजपूत रेजीमेंट के तीन जवान शहीद हो गए। उन दिनों सिर्फ मौत का खतरा मंडराया रहता था लेकिन देशसेवा का इससे बड़ा मौका हमें नहीं मिलने वाला था। ऐसे में हमने भी हार नहीं मानी और अंत तक दुश्मनों के खिलाफ मोर्चा लिया और जीत दर्ज की।

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