सियाचिन: जहां सांस लेनी भी बहुत मुश्किल, विजिबिलिटी शून्य से भी नीचे; फिर भी डटे रहते हैं जवान

Siachen: करीब 23000 फीट की ऊंचाई पर 75 किलोमीटर लंबे और करीब दस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सियाचिन ग्लेशियर के कई इलाके बेहद ही दुर्गम हैं।

Siachen

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Siachen: करीब 23000 फीट की ऊंचाई पर 75 किलोमीटर लंबे और करीब दस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सियाचिन ग्लेशियर के कई इलाके बेहद ही दुर्गम हैं। ऊंचाई पर होने की वजह से यहां पर ऑक्सीजन भी कम मात्रा में उपलब्ध रहती है।

दुनिया का सबसे खतरनाक युद्धस्थल रूस के टुंड्रा को माना जाता है। भारतीय सीमा पर मौजूद सियाचिन (Siachen) भी दुनिया के उन चुनिंदा युद्धस्थल में सर्वोपरि माना जाता है जो कि बेहद ही खतरनाक है। ये वह जगह है जहां सांस लेना भी बहुत कठिन माना जाता है और इस इलाके में विजिबिलिटी भी शून्य से नीचे रहती है।

ऐसा इसलिए क्योंकि सियाचिन (Siachen) दुनिया के सबसे ठंडे इलाकों में से एक है। यहां पर दुश्मनों से लड़ाई की नहीं बल्कि डेली किस तरह से जीना है यह सबसे बड़ी चुनौती होती है। अत्यधिक खराब मौसम यहां सबसे बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही कई मौके ऐसे आए हैं जब सैनिकों को समय पर रसद भी नहीं पहुंच सके हैं।

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करीब 23000 फीट की ऊंचाई पर 75 किलोमीटर लंबे और करीब दस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सियाचिन ग्लेशियर के कई इलाके बेहद ही दुर्गम हैं। ऊंचाई पर होने की वजह से यहां पर ऑक्सीजन भी कम मात्रा में उपलब्ध रहती है।

सियाचिन में तैनाती से पहले जवानों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वह विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में जिंदा रह सकें। यहा शून्य से 30-40 डिग्री नीचे तापमान में टिके रहना अपने आप में सबसे बड़ी चुनौती होती है।

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भारत और चीन के बीच 1962 में भीषण युद्ध सियाचिन की हड्डियां गला देने वाली ठंड के बीच लड़ा गया था। चीन पूरी तैयारी के साथ यहां आया था और भारतीय सेना की कोई खास तैयारी नहीं थी। हार से सबब लेते हुए हमने वक्त के साथ खुद को सियाचिन के मौसम के तहत ढाला है। बर्फ और ठंड में किस तरह युद्ध लड़ा जाता है सैनिकों को बिना इसकी ट्रेनिंग दिए सियाचिन नहीं भेजा जाता है।

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