सरायकेला नक्सली हमला: पश्चिमी सिंहभूम का जवान डिबरू पूर्ति भी शहीद

सरायकेला में हुए नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के डिबरू पूर्ति भी शामिल हैं। वे मंझारी थाना के तेंतड़ा पंचायत के जावबेड़ा टोला पांडुसाई के रहने वाले थे।

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झारखंड के सरायकेला में 14 जून को नक्सली हमले में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के डिबरू पूर्ति भी शहीद हो गए

सरायकेला में हुए नक्सली हमले में शहीद हुए जवानों में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के डिबरू पूर्ति भी शामिल हैं। वे मंझारी थाना के तेंतड़ा पंचायत के जावबेड़ा टोला पांडुसाई के रहने वाले थे। 14 जून की रात को जैसे ही सरायकेला पुलिस के जवान का फोन घर पर आया और घटना की जानकारी मिली, घर में कोहराम मच गया। हर किसी का रो-रो कर बुरा हाल था। सभी को रोते देखकर शहीद की बूढ़ी मां को किसी अनहोनी का एहसास हो रहा था। लेकिन घटना के बारे में उनसे कोई कुछ नहीं कह पा रहा था। अंत में बड़े भाई बहादुर पूर्ति ने रोते हुए कहा कि अब घर को संभालने वाला कभी नहीं आयेगा। डिबरू गोली लगने से शहीद हो गया है।

इसके बाद मां ननिका पूर्ति एकदम चुप हो गईं। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि घर का सबसे चहेता बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। कुछ देर शांत रहने के बाद वह जोर-जोर से दहाड़ मार कर रोने लगीं। वह रात भर रोती रहीं। सुबह से आंगन में इमली के पेड़ के नीचे बैठ कर बस बेटे के शव का इंतजार करने लगीं। आंख से ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन वह बेटे की एक झलक के लिए रास्ते पर ही नजर गड़ाए हुए थीं। जैसे ही दोपहर में गाड़ियों का काफिला गांव में प्रवेश किया, बरबस ही मां की आंखों से आंसू बरसने शुरू हो गए। उसके बाद बेटे के शव के पास बैठ कर देर तक रोती रहीं।

शहीद डिबरू पूर्ति के घर में लोगों को हुजूम लगा हुआ था। शहीद डिबरू पूर्ति परिवार में अपने पीछे पत्नी लेम्बोती पूर्ति, चार बेटे सीता राम पूर्ति (15 साल), राजेश पूर्ति 13 (साल), रितेश पूर्ति (10 साल) और घनश्याम पूर्ति (3 साल), मां ननिका पूर्ति, बड़े भाई बहादुर पूर्ति और मंझले भाई रामजा पूर्ति को छोड़ गए हैं। पत्नी लेम्बोती पूर्ति रोते-रोते बेहोश हो रही थीं। रात में फोन से जब से डिबरू की शहादत की खबर मिली, तब से वह पागलों की तरह दहाड़ें मार कर रो रही थीं। उनके रोने की आवाज से हर किसी का दिल दहल उठा था। बार-बार बच्चों से लिपट कर बस यही कह रही थीं- तुम्हारे भविष्य अब क्या होगा?

इसी दौरान वह बार-बार बेहोश भी हो रही थीं। डिबरू पूर्ति कुछ दिन पहले ही सरायकेला पुलिस का डाक लेकर चाईबासा आए थे। उसी दौरान वह परिवार से मिलने के लिए घर पर भी आए। रात में रुकने के बाद अगले दिन सुबह सरायकेला ड्यूटी के लिए चले गए। डिबरू ने अपनी पत्नी से कहा था, ‘जल्द ही छुट्टी लेकर कुछ दिन के लिए घर आयेंगे। घर का कुछ काम बाकी है उसे पूरा करवाएंगे। बच्चों को ठीक से पढ़ाना है, समय-समय में उनकी पढ़ाई को देखते रहना है। इस बार बड़ा बेटा सीताराम पूर्ति मैट्रिक की परीक्षा देगा, उसकी तैयारी भी ठीक से करनी होगी उसे।’ पर डिबरू पूर्ति की सारी बातें अधूरी ही रह गईं।

शहीद के बड़े भाई बहादुर पूर्ति हैं, डिबरू सबसे छोटे थे, जबकि बीच के भाई रमजा पूर्ति हैं। शहीद के बड़े भाई ने बताया कि घर की माली हालत ठीक नहीं थी, इसलिए हम लोग पढ़ नहीं सके। पिता ने कहा कि छोटे भाई को कभी मत छोड़ना। वह जब पढ़ाई कर रहा था तो उसके खर्च के लिए घर में पैसे नहीं थे। इसलिए हम दोनों भाइयों ने मजदूरी कर जो पैसा मिला, उसी से छोटे भाई डिबरू की पढ़ाई पूरी कराई। पढ़ाई में वह बहुत अच्छे थे। मैट्रिक तक पढ़ने के बाद पुलिस में नौकरी के लिए तैयारी करने लगे। 2008 में पुलिस विभाग में उन्हें नौकरी मिल गई। पूरा परिवार बहुत खुश था। नौकरी से पहले ही डिबरू की शादी हो चुकी थी।

अतीत के दिनों को याद करते हुए बड़े भाई कहते हैं, ‘आज भी हमें याद है, नौकरी के बाद जब पहली बार डिबरू घर आया था तो दोनों भाईयों के पैर छूकर कहा था कि आप लोगों की मेहनत रंग लाई। अब मैं परिवार को किसी चीज की परेशानी नहीं होने दूंगा। इसके बाद परिवार धीरे-धीरे संभल गया। नौकरी के 11 साल हो गए थे। गांव जब भी आता तो सभी से मिल कर जाता था। साथ ही गांव में बच्चों को ठीक से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करता था। अचानक डिबरू के इस तरह चले जाने से घर को चलाने वाला अब कोई नहीं रहा।’

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