Para Commandos: दुनिया की टॉप कमांडो फोर्सेज में शामिल हैं ये पैरा कमांडोज, 33 हजार फीट से छलांग लगाते हैं इसके जवान

पैरा कमांडोज (Para Commandos) की ट्रेनिंग कितनी कड़ी होती है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ट्रेनिंग के दौरान दुश्मनों के हमले से बचने के लिए उनपर असली गोलियां चलाई जाती है।

Para Commandos

Para Commandos (File Photo)

पैरा कमांडो (Para Commandos) का सबसे खतरनाक इम्तिहान होता है जब सैनिकों को डुबोया जाता है। दरअसल, यह उनके दिमाग से मौत का डर निकालने के लिए किया जाता है।

भारतीय सेना (Indian Army) के इतिहास में 29 सितंबर, 2016 की तारीख हमेशा के लिए दर्ज हो गई। इस दिन भारतीय सेना के स्पेशल पैरा कमांडोज (Para Commandos) ने जम्मू-कश्मीर में एलओसी के पार जाकर PoK में घुसकर आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया और उनके लॉन्चिंग पैड तबाह कर दिए। इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि पैरा कमांडोज ने न तो पाकिस्तान सरकार को इसकी भनक लगने दी और ना ही पैरा कमांडोज के यूनिट को कोई नुकसान पहुंचा।

ऑपरेशन को अंजाम देने के बाद ये पैरा कमांडोज पूरी तरह सुरक्षित भारतीय सीमा में लौट आए। इनकी बहादुरी की मिसालें दी जाती हैं। भारतीय सेना के इन्हीं 700 पैरा कमांडोज ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में लड़ाई का रुख ही बदल दिया था। पैरा कमांडोज भारतीय थल सेना का सबसे ताकतवर दस्ता है। ये स्‍पेशल फोर्स देश ही नहीं, विदेशों में भी कई बड़े ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी है।

ट्रेनिंग के दौरान पैरा कमांडोज (Para Commandos) को भारी वजन अपनी पीठ पर लादकर दौड़ना होता है, इन जवानों को बिना ऑक्सीजन के आसमान से छलांग लगानी पड़ती है। इनकी ट्रेनिंग कितनी कड़ी होती है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ट्रेनिंग के दौरान दुश्मनों के हमले से बचने के लिए उनपर असली गोलियां चलाई जाती है।

भारतीय नौसेना की मैरीन कमांडो फोर्स की ये हैं खासियतें, नाम सुनकर ही कांप उठता है दुश्मन

ट्रेनिंग के दौरान इन जवानों को कई-कई हफ्तों तक सोने नहीं दिया जाता। इन्हें कई दिनों तक भूखे रखा जाता है ताकि जंगली इलाकों में भी ये कई दिनों तक बिना खाए और सोए लड़ सकें। पैरा कमांडोज की तैनाती कब और कहां होगी इसका कभी खुलासा नहीं किया जाता है और न ही इनकी सही संख्या कभी बताई जाती है।

पैरा कमांडोज (Para Commandos) को सबसे खतरनाक और अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराए जाते हैं ताकि दुश्मनों पर ये कहर बनकर टूट पड़ें। इन्हें विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से भी ट्रेनिंग दी जाती है। घाटी और पहाड़ों में अलग ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि रेगिस्तानी इलाकों में मिशन को अंजाम देने के लिए अलग प्रशिक्षण दिया जाता है।

10 हजार सैनिकों में एक बनता है पैरा कमांडो

पैरा स्पेशल फोर्स (एसएफ) अपने अभियान के दौरान सैन्य मुख्‍यालय (डीजीएमओ) से ही निर्देश प्राप्त करते हैं। पैरा स्पेशल फोर्स में जाने के लिए चयन सेना की विभिन्न रेजिमेंट्स में से ही होता है। इसमें अधिकारी, जवान, जेसीओ सहित विभिन्न रैंकों से सैनिक चुने जाते हैं। इनका अनुपात 10 हजार में से एक का होता है।

यानि, पैरा कमांडो बनने के लिए 10 हजार में से एक सैनिक का चयन होता है। पैरा स्पेशल फोर्स ज्वॉइन करने के लिए आवेदन ऐच्छिक होता है या कमान अधिकारी इसकी अनुशंसा करता है। और फिर शुरू होता है कठिनतम प्रशिक्षण। एक पैरा कमांडो की ट्रेनिंग साढ़े तीन साल तक चलती रहती है। इनकी पहचान इनके सिर पर लगी महरून बैरेट (गोल टोपी) और ध्येय वाक्य ‘बलिदान’ से होती है।

ऐसी होती है ट्रेनिंग

पैरा कमांडो बनने के लिए बेहद मुश्किल प्रशिक्षण को पूरा करना होता है। पैरा स्पेशल फोर्स का सेलेक्शन 90 दिनों में किया जाता है। जिसमे कैंडिडेट को बहुत टफ फिजिकली तथा मेंटली टेस्ट से गुजरना पड़ता है इस 90 दिन के पीरियड को प्रोबेशन टाइम कहा जाता है।

90 दिनों के पैरा कमांडोज (Para Commandos) के इस शुरूआती प्रशिक्षण को दुनिया के सबसे मुश्किल प्रशिक्षणों में से माना जाता है और इसमें भाग लेने वाले कुछ ही सैनिक इसे सफलतापूर्वक पूरा कर पाते हैं। इस प्रशिक्षण में मानसिक, शारीरिक क्षमता और इच्छाशक्ति का जबरदस्त इम्तिहान लिया जाता है। इन तीन महीनों में एक फौजी को शारीरिक और मानसिक रूप से फौलाद बना दिया जाता है।

जो इस 90 दिन के प्रोबेशन पीरियड को सफलतापूर्वक कम्पलीट करता है उसे पैराशूट रेजिमेंट में भेज दिया जाता है। शुरुआत में प्रोबेशनर को फिजिकल तथा स्किल ट्रेनिंग कराई जाती है। इस दौरान प्रोबेशनर को एक स्थान से दूसरे स्थान जाना, कम्युनिकेशन टेक्निक, मैप रीडिंग, विभिन्न भाषाएं सीखना, हथियार की ट्रेनिंग, मेडिकल ट्रेनिंग इत्यादि स्किल्स की ट्रेनिंग दी जाती है।

पैरा कमांडो स्पेशल फोर्स की फिजिकल ट्रेनिंग और मेन्टल ट्रेनिंग सबसे ज्यादा मुश्किल होती है। पहले एक महीने की कठोर फिजिकल तथा मेन्टल एक्सरसाइज के बाद शुरू होती है असली ट्रेनिंग। इस प्रशिक्षण में सबसे मुश्किल होते हैं ये 36 घंटे।

इस दौरान पैरा कंमांडोज (Para Commandos) का 36 घंटे का टेस्ट होता है। यह टेस्ट शुरू होता है 10 किलोमीटर स्पीड मार्च के साथ जिसमे ट्रेनीज के पास 30 किलोग्राम वॉर लोड होता है जैसे वेपन, पानी, बैग, जरूरी सामान तथा इसके अतिरिक्त 40 किलोग्राम वेट भी दिया जाता है। इस पूरे समान के साथ प्रोबशनर को 10 किलोमीटर स्पीड मार्च करना होता है।

स्पीड मार्च खत्म होने के बाद वेट शिफ्टिंग टेस्ट होता है जैसे अपने साथी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाना तथा काफी समय तक उसे उठाकर रखना, पानी की टंकी शिफ्ट करना, गाड़ी के बड़े बड़े टायर एक स्थान से दूसरे ले जाना या लकड़ी के ब्लॉक शिफ्ट करना। वेट शिफ्टिंग टेस्ट में 40 से 85 किलोग्राम तक वेट दिया जाता है जिसे काफी देर तक उठाकर रखना होता है या एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाना होता है।

इसके बाद प्रोबेशनर का ऑपरेशनल एक्सरसाइज टेस्ट होता है जिसमे उसे लड़ाई के दौरान होने वाली रियल सिचुएशन दी जाती है और उसे प्रत्येक वस्तु को याद रखना होता है। इस ऑपरेशनल एक्सरसाइज को सफलतापूर्वक कम्पलीट करना होता है। जिनमें बिना सोए, बिना खाए-पीए एक मिशन को अंजाम देना होता है।

ली जाती है कड़ी परीक्षा

इस मिशन में सैनिक की हर तरह से परीक्षा ली जाती है। असली गोलियों और बमों के धमाकों के बीच उन्हें दिए गए मिशन को अंजाम देना होता है। यदि कोई सैनिक सोता या खाता-पीता पकड़ा जाता है तो उसे या तो तत्काल निकाल दिया जाता है या पूरा कोर्स फिर से करवाया जाता है। इन 36 घंटों के दौरान उन्हें दुश्मन पर हमला करना, दुश्मन के हमले का सामना करना और किसी बंधक को छुड़वाने जैसे खतरनाक कामों को अंजाम देना पड़ता है।

इन सबके साथ ही उन्हें इन कामों के दौरान हुई मामूली घटनाओं का भी बारीकी से ध्यान रखना पड़ता है। जैसे- बंधक ने किस रंग के कपड़े पहने थे या जिस रास्ते से वे आए हैं, वहां कितने दरवाजे-खिड़की थे। इसका सबसे खतरनाक इम्तिहान होता है जब सैनिकों को डुबोया जाता है। दरअसल, यह उनके दिमाग से मौत का डर निकालने के लिए किया जाता है।

जब सैनिक थककर चूर हो जाते हैं तो उन्हें एक कुंड में ले जाकर सांस टूटने तक बार-बार पानी में डुबोकर यह देखा जाता है कि कौन कितना सहन कर सकता है। जो भी इस परीक्षा में खरा नहीं उतर पाता, उसे प्रशिक्षण से निकाल दिया जाता है।

कई बार तो उन्हें हाथ-पैर बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है। अधिकतर सैनिक इन 36 घंटों के दौरान इस प्रशिक्षण से बाहर हो जाते हैं। इसके पश्चात दोबारा 10 किलोमीटर स्पीड मार्च होता है तथा उसके बाद 6 घंटे तक लगातार एक्सरसाइज कराई जाती है। 36 घंटे के लगातार टेस्ट स्पीड मार्च के बाद कैंडिडेट की कॉम्बैट स्किल का परीक्षण लिया जाता है जिसमें प्रोबेशनर को एम्बुश लगाना, कैम्प बनाना, स्ट्रेचर बनाना, आपरेशन के एरिया में घुसना तथा बाहर निकलना इत्यादि कराया जाता है। 

33 हजार फीट की ऊंचाई से लगानी होती है छलांग

इसके बाद आता है एक ऐसा इम्तिहान जो किसी पेशेवर मैराथन धावक के लिए भी बेहद मुश्किल है। इन्हें 100 किमी की ‘इंड्युरेन्स रन’ में भाग लेकर उसे पूरा करना होता है। 30 किमी के 2 और 10 किमी के चरणों में 16-17 घंटे में पूरी करनी होती है। इससे उनकी दृढ़ता और सहनशक्ति की परीक्षा ली जाती है। इस दौड़ को पूरा करने के बाद भी सैनिकों को कई तरह के प्रशिक्षणों से गुजरना पड़ता है।

90 दिन के बाद प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सदस्यों में से कुछ बिरले ही पैरा स्पेशल फोर्स की मेहरून बैरेट पहनने का हकदार होता है। इनका पूरा जीवन अपनी रेजिमेंट के ध्येय वाक्य ‘बलिदान’ पर आधारित होता है। हालांकि इस कठोर प्रशिक्षण की कसौटी पर 25 फीसदी सैनिक ही खरे उतर पाते हैं। इनका सबसे अहम हथियार पैराशूट होता है।

ट्रेनिंग के दौरान इन्हें 33 हजार फीट ऊंचाई से 50 बार छलांग लगानी होती है। आसमान में हजारों फीट की ऊंचाई पर एक पैरा कमांडो की जिंदगी पैराशूट के सहारे होती है। पैराशूट को लेकर छोटी सी गलती का मतलब मौत है। इनके पास दो पैराशूट होते हैं। पहला पैराशूट जिसका वजन 15 किलोग्राम होता है जबकि दूसरा रिजर्व पैराशूट जिसका वजन 5 किलोग्राम होता है। अगर किसी ऊंची बिल्डिंग के अन्दर आतंकी छुपे हों तो कैसे उन्हें खत्म करना है, पैरा कमांडोज (Para Commandos) ये बात भली भांति जानते हैं।

विश्व की टॉप कमांडो फोर्स में है शामिल

पैरा कमांडो स्पेशल फोर्स को विश्व की टॉप कमांडो फोर्स में गिना जाता है। यही कारण है कि यूनाइटेड स्टेट्स स्पेशल ऑपरेशन कमांड तथा यूनाइटेड किंगडम स्पेशल फोर्स ने भी इंडियन पैरा कंमांडो स्पेशल फोर्स के साथ ज्वॉइंट एक्सरसाइज की है और इंडियन पैरा स्पेशल फोर्स के साथ स्किल्स ट्रेनिंग एक्सचेंज भी की है। इंडियन आर्मी की इस इकाई की स्थापना 1966 में की गई थी।

नौवीं बटालियन, द पैराशूट रेजीमेंट (कमांडो) सेना की पहली विशेष ऑपरेशन्स इकाई थी। सबसे पहले 1971 के भारत-पाक युद्ध में इन्हें लगाया गया था। इस युद्ध में 9 पैरा कमांडो ने जम्मू-कश्मीर के मेंढर, पुंछ में हैवी गन बैटरी पर कब्जा कर लिया था। इसने 1984 के ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार में भी भाग लिया था। 80 के दशक में इसे श्रीलंका के गृहयु्द्ध में भी तैनात किया गया था और इसकी कार्रवाई का कोडनेम ऑपरेशन पवन था। वर्ष 1988 के ‘ऑपरेशन कैक्टस’ में मालदीव्स और 1999 के कारगिल युद्ध में भी इसने हिस्सा लिया था। थल सेना के पैरा कमांडोज की तरह नौसेना (Navy) के पास मारकोस तो एयरफोर्स (Air Force) के पास गरुड़ कमांडोज हैं।

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें