Indian Army की राजपूताना रेजीमेंट के नाम से थर्राता है PAK, जानें इसकी खासियत

वीर भोग्य वसुंधरा, यानी वीर अपने शस्त्र की ताकत से ही मातृभूमि की रक्षा करते हैं। इस रेजीमेंट की भारत-पाक युद्ध 1948, 1965,1971 और 1999 में भूमिका रही है।

Rajput Regiment

Indian Army की राजपूताना रेजीमेंट (Rajputana Regiment) की  द्वितीय विश्व युद्ध, ऑपरेशन पोलो, हैदराबाद (1948), सीआई ऑपरेशंस, नागा हिल्स (1958 से 1961), भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965), भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) और 1999 में अहम भूमिका रही है।

भारत और पाकिस्तान की आजादी के बाद से 1948, 1965, 1971 और 1999 में आमना-सामना हो चुका है। युद्ध में हमेशा भारत को एकतरफा जीत मिली है। पाकिस्तान हर बार बुरी तरह हारकर वापस लौटा है। युद्ध में जीत के लिए हमारे जवान किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। ‘वीर भोग्य वसुंधरा’ यानी ‘वीर अपने शस्त्र की ताकत से ही मातृभूमि की रक्षा रकते हैं।

इन युद्धों में राजपूताना रेजीमेंट ने भी अपना कहर बरपाया था। इस रेजीमेंट के नाम से ही पाकिस्तान थर्राता है। 1 अगस्त, 1940 को फैजाबाद में इसकी स्थापना की गई थी और 15 सितंबर 1941 को बटालियन को भारतीय सेना में रजिस्टर्ड यूनिट के तौर पर शामिल कर लिया गया था।

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राजपूताना रेजीमेंट (Rajputana Regiment) इंडियन आर्मी (Indian Army) की सबसे पुरानी और सम्मानित टुकड़ी मानी जाती है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय तक इसमें 50 फीसदी राजपूत और 50 फीसदी मुस्लिमों की भागीदारी थी। इस रेजीमेंट को विशेषकर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के लिए जाना जाता है।

देश की आजादी से लेकर मॉडर्न इंडिया तक अलग-अलग युद्ध और सफलतम ऑपरेशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस रेजीमेंट की द्वितीय विश्व युद्ध, ऑपरेशन पोलो, हैदराबाद (1948), सीआई ऑपरेशंस, नागा हिल्स (1958 से 1961), भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965), भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) और 1999 में अहम भूमिका रही है।

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राजपूताना रेजीमेंट ने अभी तक के चारों भारत-पाक युद्धों में सबसे आगे मोर्चा संभाला और न केवल मोर्चा संभाला, बल्कि दुश्मन को धूल चटाकर आत्मसमर्पण करवाया था। कश्मीर पहुंच इस रेजीमेंट ने मोर्चा संभाला है और दुश्मनों को भगा-भगाकर मारा है। 

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