पैंगोंग झील इलाके में शहीद हो गए थे नीमा तेंजिन, नहीं पूरा हो सका बच्चों को हिमालय घुमाने का वादा

भारतीय सेना (Indian Army) के गोपनीय रेजिमेंट के लिए काम करने वाले कई तिब्बती सैनिकों ने अपना बलिदान दिया है। भारत के स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के कमांडो नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) उनमें से एक थे।

Nyima Tenzin

शहीद नीमा तेंजिन का परिवार।

SFF में तैनात नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) की पैंगोंग झील क्षेत्र के पास 29-30 अगस्त, 2020 की रात एक बारूदी सुरंग पर पैर पड़ जाने से मौत हो गई थी।

भारतीय सेना (Indian Army) के गोपनीय रेजिमेंट के लिए काम करने वाले कई तिब्बती सैनिकों ने अपना बलिदान दिया है। भारत के स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के कमांडो नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) उनमें से एक थे। बता दें कि स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) की स्थापना साल 1962 में चीन से युद्ध के बाद हुई थी। इसे ‘विकास रेजिमेंट’ भी कहा जाता है। इस खास फोर्स में अधिकतर तिब्बती शरणार्थी सैनिक के रूप में शामिल हैं।

पैंगोंग झील इलाके में हुए थे शहीद

बता दें कि SFF में तैनात 51 साल के नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) की पैंगोंग झील क्षेत्र के पास 29-30 अगस्त, 2020 की रात एक बारूदी सुरंग पर पैर पड़ जाने से मौत हो गई थी। बता दें कि भारत-चीन के बीच पिछले 5 महीनों से तनाव चल रहा है और सीमा पर कई स्तर की वार्ताओं के बाद भी कोई परिणाम निकले नहीं हैं।

‘ब्लैक टॉप’ पर कब्जा करने के बाद थे पेट्रोलिंग पर

लेह के बाहरी इलाके के तिब्बती शरणार्थी कॉलोनी वहां से 125 मील की दूरी पर है, जहां नीमा तेंजिन शहीद हुए थे। नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) के परिवार के एक सदस्य के मुताबिक, उन्होंने ‘ब्लैक टॉप’ को कब्जे में ले लिया था और अगले मोर्चे को फतह करने के लिए पेट्रोलिंग में लगे हुए थे, उसी में उनकी मौत हो गई। 

घर में मनाया जा रहा है 49 दिनों का शोक 

शहीद की पत्नी नायमा ल्हामो और 14 साल के बेटे तेंजिन दौड रोज की प्रार्थनाओं और अंतिम-संस्कार के बाद होने वाली प्रक्रियाओं में व्यस्त रहते हैं। उनके घर में 49 दिन का शोक मनाया जा रहा है। बता दें कि तिब्बती आस्था के अनुसार, अगर अप्राकृतिक मृत्यु होने पर 49 दिनों के कर्मकांड का विधान है और इस दौरान लोग प्रार्थनाएं करते हैं। आसपास के लोग भी जुटते हैं और उन्हें खिलाया-पिलाया जाता है।

शहीद होने से पहले किया था मां और पत्नी को फोन

परिवार का कहना है कि साल 1962 में खोए ‘ब्लैक टॉप’ पर फिर से कब्जा जमाने के क्रम में वो बलिदान हुए। उसी सुबह उन्होंने अपनी मां और पत्नी को फोन कर उन्हें खास ‘श्लोक’ पढ़कर प्रार्थना करने को कहा था। उन्होंने तभी बताया था कि कुछ खतरे हैं और उन्हें एक खास मिशन के लिए जाना है।

अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे थे भाजपा नेता

इसके बाद 30 अगस्त को भारतीय सैन्य अधिकारियों ने तिब्बती प्रतिनिधियों के साथ नीमा के घर जाकर परिजनों को उनके शहादत की सूचना दी थी। इसके 3 दिन बाद भारतीय तिरंगे में लिपटा हुआ उनका शव घर पहुंचा। बता दें कि उनके अंतिम दर्शन के लिए भाजपा के नेता और स्थानीय सांसद भी पहुंचे थे।

भारत और तिब्बत के झंडे दिखे थे साथ-साथ 

बता दें कि शहीद नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) की अंतिम विदाई में भारत और तिब्बत के झंडे साथ-साथ दिखे थे और इस मौके पर लेह में तिब्बत की आजादी का भी नारा गूंजा था। इस दौरान लेह में तिब्बती नागरिकों ने वहां के स्थानीय गीत गाए थे और ‘भारत माता की जय’ के नारे भी लगे थे।

5 साल का बेटा है पिता की शहादत से बेखबर

तेंजिन के 5 साल का छोटा बेटा इन सब बातों से बेखबर है। उसे यह एहसास भी नहीं है कि वह अब अपने पिता को कभी नहीं देख पाएगा। उनकी 17 साल की बेटी तेंजिन जम्पा ने बताया कि उनके पिता ने 36-37 सालों तक भारतीय सेना में सेवाएं दी हैं। वो हमेशा कहा करते थे कि वो भारत और तिब्बत से इतना प्यार करते हैं कि इसके लिए जान भी दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता अगले साल ही रिटायर होने वाले थे।

परिवार को कराने वाले थे हिमालय की सैर

बेटी तेंजिन जम्पा ने बताया कि वो डॉक्टर बनना चाहती हैं और अगले साल रिटायरमेंट के बाद उनके पिता उनकी शिक्षा के लिए योजना बनाने वाले थे। हाल ही में परिवार ने एक कार खरीदा था और नीमा तेंजिन के वापस आने के बाद उस कार से हिमालय की सुंदरता को देखने की योजना भी बनाई गई थी।

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उनके बेटे ने बताया कि नीमा तेंजिन हमेशा कहा करते थे कि न कभी झूठ बोलो और न ही कोई बुरा काम करो। उनके बेटे ने बताया कि पिता जब भी घर आते थे, वो उसकी पसंदीदा चीजें खरीद कर दिया करते थे। तेंजिन की 76 साल की मां कमरे में बैठी रहती हैं।

चीनी सेना के दमन के बाद भारत में ली थी शरण

शहीद नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) की पत्नी नायमा ल्हामो ने बताया कि जब वो लोग तिब्बत से हनले स्थित चैंथल आए थे, तब वो गर्भवती थीं और महज 22 साल की थीं। वो उन 1 लाख शरणार्थियों में से एक हैं, जो माओ के आदेश से चीन की सेना द्वारा तिब्बत पर कब्जा के लिए दमनकारी अभियान शुरू किए जाने के बाद भारत आ गए थे।

पत्नी पर है पूरे परिवार की जिम्मेदारी

वो लेह की 11 तिब्बती शरणार्थी कॉलनियों में से एक में रहते हैं। पत्नी ने बताया कि घर-परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाले उनके पति अब नहीं रहे। उन पर अभी बच्चों सहित पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई है। उन्होंने कहा कि वो हमेशा अपने बच्चों को कभी हार न मानने और अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने की सलाह देती हैं।

शहीद की पत्नी ने PM मोदी से मांगी मदद

शहीद नीमा तेंजिन (Nyima Tenzin) की पत्नी ने कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बस इतना ही निवेदन करती हैं कि वो उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पूरी करने में परिवार की सहायता करें। वो चीन को राक्षस बताते हुए कहती हैं कि उस देश में अब जरा भी मानवता नहीं बची है।

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