शहीद होने से पहले इस ‘स्टील मैन’ ने हजारों जिंदगियां बचाईं, 256 बमों को अकेले ही किया था डिफ्यूज

सिपाही नरेंद्र सिंह चौधरी (Narendra Singh Chaudhary) अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन लोग आज भी उनकी बहादुरी के किस्से याद करते हैं।

Narendra Singh Chaudhary

नरेंद्र सिंह चौधरी (फाइल फोटो)

नक्सली इलाकों में नरेंद्र सिंह चौधरी (Narendra Singh Chaudhary) ने अकेले ही 256 बम डिफ्यूज किए थे लेकिन एक ग्रेनेड की चपेट में आने से वह शहीद हो गए। 

क्या कोई शख्स अपनी बहादुरी से 256 बमों को अकेले ही डिफ्यूज कर सकता है? क्या कोई शख्स 50 किलोमीटर तक बिना खाए पिए चल सकता है? तो इसका जवाब है- हां, ये सब हो सकता है, अगर उस शख्स का नाम नरेंद्र सिंह चौधरी हो।

सिपाही नरेंद्र सिंह चौधरी (Narendra Singh Chaudhary) अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन लोग आज भी उनकी बहादुरी के किस्से याद करते हैं। देश उन्हें ‘स्टील मैन’ के नाम से याद करता है, वह इसी नाम से जाने जाते थे।

छत्तीसगढ़ के कांकेर में जंगल वारफेयर कॉलेज में तैनात 48 साल के नरेंद्र सिंह चौधरी इतने एक्टिव थे कि बिना खाए पिए 50 किलोमीटर की दूरी आराम से तय कर लेते थे। उनकी खासियत ये थी कि वह जल्दी बीमार नहीं होते थे।

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नक्सली इलाकों में नरेंद्र सिंह चौधरी ने अकेले ही 256 बम डिफ्यूज किए थे लेकिन एक ग्रेनेड की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई। दरअसल नरेंद्र सिंह, कांकेर के जंगल वारफेयर कॉलेज में बम डिफ्यूज करने की ट्रेनिंग दे रहे थे।

इस दौरान उन्होंने एक ग्रेनेड फेंका, कुछ देर बार भी जब वो ग्रेनेड नहीं फटा, तो वह उस ग्रेनेड को देखने के लिए उसके पास गए और अचानक धमाका हो गया। इस धमाके में बम का एक टुकड़ा उनकी दाहिनी आंख के अंदर घुस गया और वह 11 मई 2016 को शहीद हो गए।

कई बम डिफ्यूज करने की वजह से नरेंद्र नक्सलियों के निशाने पर रहते थे क्योंकि उनकी वजह से नक्सली विस्फोट नहीं कर पाते थे। 2008 में नरेंद्र के नाम कोंडे के पास नक्सलियों ने पर्चे भी फेंके थे।

नरेंद्र को बम डिफ्यूज करने वाले स्पेशलिस्ट के तौर पर जाना जाता था। नरेंद्र मूल रूप से राजस्थान के नागौर के रहने वाले थे और जाट रेजिमेंट के बाद 2005 में जंगलवार कॉलेज, कांकेर में उनकी तैनाती हुई थी। बाद में उनका प्रमोशन हो गया और वह प्लाटून कमांडर बन गए।

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