कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन अमित भारद्वाज डायरी में लिखते थे ये बातें

शहीद होने के बाद इस जवान की एक डायरी पिता को मिली थी। इस शहीद के पिता ओम प्रकाश शर्मा ने उनकी डायरी के कुछ अंश साझा किए हैं।

Kargil War 1999: शहीद होने के बाद इस जवान की एक डायरी पिता को मिली थी। इस शहीद के पिता ओम प्रकाश शर्मा ने उनकी डायरी के कुछ अंश साझा किए हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में हमारे वीर सपूतों ने जीत के लिए अहम भूमिका निभाई थी। हमारे जवान दुश्मनों पर कहर बनकर टूट पड़े थे। दुश्मनों को हराने के लिए जवान सीने पर गोली खाने को तैयार रहते थे। युद्ध में यूं तो सभी जवानों की भूमिका अहम होती है लेकिन कुछ जवान ऐसे होते हैं जो कि शहादत के साथ ही अपनी एक अलग छाप छोड़कर जाते हैं। ऐसे ही एक जवान शहीद कैप्टन अमित भारद्वाज भी थे। इस जवान ने जंग के मैदान में दुश्मनों से डटकर मुकाबला किया था।

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शहीद होने के बाद इस जवान की एक डायरी पिता को मिली थी। इस शहीद के पिता ओम प्रकाश शर्मा ने उनकी डायरी के कुछ अंश साझा किए हैं। वे बताते हैं कि मेरे बेटा डायरी में सिर्फ देशभक्ति की ही बातें लिखता था। जब कारगिल से बेटे का सामान आया, हमें तो तब मालूम हुआ कि वो तो अपने हर लम्हे को डायरी में कैद कर रहा है। कौन जानता था आज वही लम्हे हमारे जीने का सहारा बन जाएंगे।

डायरी में उन्होंने लिखा था कि ‘1 अक्टूबर 1998, दशहरे का दिन है। युद्ध के दौरान कारगिल में पोस्टिंग मिली है। मैं और मेरी टीम तीनों तरफ से घिरी हुई है। दुश्मन ने 12 बजकर 5 मिनट पर जबरदस्त गोलाबारी शुरू कर दी। मैं अपने बंकर में बैठा हुआ अगले दिन की फायरिंग के लिए तैयार हो रहा हूं। दुश्मन ही पहला हमला कर रहा है। लेकिन मैं चाहता हूं कि यह पहल मैं शुरू करूं। लेकिन हमें हाईकमान का ऑर्डर है कि हम पहले हमला नहीं करेंगे बल्कि जवाबी हमला बोलेंगे।’

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