जान पर खेल कर किया साथी जवानों की मरहम-पट्टी, पढ़ें लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह सेखों की जांबाजी की दास्तां

आज भारतीय सेना (Indian Army) के लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह सेखों (LT Surinderpal Singh Sekhon) की पुण्यतिथि है। इस वीर ने घायल हालत में भी दुश्मनों से दो-दो हाथ किए थे।

LT Surinderpal Singh Sekhon

उम्र में छोटे होने के बावजूद सेखों (LT Surinderpal Singh Sekhon) ने खुद के बड़े कार्यों के योग्य होने का सुबूत दिया। लेफ्टीनेंट सेखों की योग्यता को देखते हुए उन्हें डेरा बाबा नानक में तैनात किया गया था।

आज भारतीय सेना (Indian Army) के लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह सेखों (LT Surinderpal Singh Sekhon) की पुण्यतिथि है। इस वीर ने घायल हालत में भी दुश्मनों से दो-दो हाथ किए थे। पंजाब के जिला संगरूर के कस्बा दिड़बा के पास उभिया गांव के रहने वाले थे शहीद लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह सेखों। इनकी मां का नाम गुरनाम कौर और पिता का नाम निरंजन सिंह था।

घर में उन्हें प्यार से शिंदी के नाम से बुलाया जाता था। सुरिंदरपाल सिंह (LT Surinderpal Singh Sekhon) बचपन से ही वीर सैनिकों की जीवनी पढ़ा करते थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की। इसके बाद नौंगोंग मध्य प्रदेश के जार्ज स्कूल में दाखिला लिया। वे खेल-कूद में अव्वल थे। इसके बाद वह एनडीए में चुने गए।

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साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सुरिंदरपाल सिंह सेखों (LT Surinderpal Singh Sekhon) राजपूताना राइफल्स की 2 बटालियन में ऑफिसर बने। उम्र में छोटे होने के बावजूद सेखों ने खुद के बड़े कार्यों के योग्य होने का सुबूत दिया। लेफ्टीनेंट सेखों की योग्यता को देखते हुए उन्हें डेरा बाबा नानक में तैनात किया गया था।

साल 1965 में 5-6 सितंबर की रात को दुश्मन की फौजों ने डेरा बाबा नानक के पास रावी नदी पर हमला कर दिया। भारतीय फौज भारत-पाक की सीमा पर बहादुरी से डटी हुई थी। दुश्मन की ओर से भारी गोलाबारी होने के कारण हमारे बहुत सारे सैनिक घायल हो गए। संकट के समय में सेखों अपनी पलटन के सैनिकों को हौसला दे रहे थे।

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अपनी जान जोखिम में डालकर सुरिंदरपाल अपने घायल सैनिकों की मरहम पट्टी कर रहे थे। एक जवान का मरहम-पट्टी करने के दौरान सेखों दुश्मन की गोलियों से बुरी तरह जख्मी हो गए और आखिर में वीरगति को प्राप्त हुए। शहीद लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह सेखों को फौज में सेवा करने की शिक्षा अपने पड़दादा जय सिंह और दादा कै. दयाल सिंह से मिली थी।

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शहीद लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह (LT Surinderpal Singh Sekhon) की कुर्बानी को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वह देश की रक्षा करते हुए अपनी जान न्यौछावर कर गए। साल 1966 में 26 जनवरी के मौके पर जांबाजी के लिए शहीद लेफ्टिनेंट सुरिंदरपाल सिंह को मरणोपरांत ‘वीर चक्र’ से नवाजा गया।

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