24 की उम्र में तिरंगे की शान बचाने के लिए इस शहीद ने दिया था बलिदान, इंटरव्यू में दिए जवाब से आर्मी के दिग्गज हो गए थे हैरान

Kargil War 1999: मनोज पांडे जंग के मैदान में अपनी एक अलग ही कहानी लिखकर शहीद हुए। उन्होंने इस युद्ध में हमेशा आगे बढ़कर नेतृत्व किया था।

Indian Army

Indian Army: मनोज पांडे जंग के मैदान में अपनी एक अलग ही कहानी लिखकर शहीद हुए। उन्होंने इस युद्ध में हमेशा आगे बढ़ कर नेतृत्व किया था। करीब दो महीने तक चले ऑपरेशन में कुकरथांग, जूबरटॉप जैसी कई चोटियों पर दोबारा कब्जा किया गया था।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में  लड़े गए कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन मनोज पांडे ने शहादत दी थी। देश के लिए कुर्बानी देने वाले इस जवान का बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा। मनोज पांडे जंग के मैदान में अपनी एक अलग ही कहानी लिखकर शहीद हुए। उन्होंने इस युद्ध में हमेशा आगे बढ़कर नेतृत्व किया था। करीब दो महीने तक चले ऑपरेशन में कुकरथांग, जूबरटॉप जैसी कई चोटियों पर दोबारा कब्जा किया गया था।

जंग के मैदान में मनोज कुमार पांडे, 1/11 गोरखा राइफल्स ने एक-एक कर तीन बंकर ध्वस्त कर दिए थे। लेकिन जब वो चौथे बंकर में ग्रेनेड फेंकने की कोशिश कर ही रहे थे, तभी दुश्मनों की गोलियों का शिकार हो गए। 24 की उम्र में तिरंगे की शान बचाने के लिए उन्होंने जो बलिदान दिया है वह हमेशा याद रखा जाएगा।

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आर्मी (Indian Army) में भर्ती से पहले उन्हें एक इंटरव्यू से गुजरना पड़ा था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि वे आर्मी इसलिए ज्वाइन करना चाहते हैं क्योंकि सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ हासिल करना चाहते हैं। कारगिल युद्ध में लड़कर उन्होंने इसे सच भी साबित किया।

कैप्टन मनोज पांड के पिता गोपी चंद पांडे के मुताबिक जब मनोज पांडे समेत चार बच्चों को पालने के लिए वह एक छोटा सा बिजनेस करते थे तो अक्सर पैसों की कमी रहती थी। हालांकि इस दौरान मनोज मेरे हालातों को समझता था और अपनी पढ़ाई मेरा ज्यादा पैसा खर्च नहीं होने देता था। मुश्किल वक्त में वो मेरा सहारा बनकर खड़ा रहता था। वह स्कॉलरशिप हासिल कर खुद ही अपना इंतजाम कर लेता था।

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