कारगिल युद्ध: थर-थर कांप उठता था पाक, जब 27 किलोमीटर तक गोले दागने वाली बोफोर्स तोपों का हुआ था इस्तेमाल

सेना के पास जितने ज्यादा मजबूत और मॉर्डन हथियार होंगे दुश्मन उतना ही कमजोर नजर आएगा। कारगिल में भी भारतीय सेनाओं के हथियारों ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिसको याद कर आज भी पाकिस्तान थर-थर कांप उठता है।

Kargil War 1999

फाइल फोटो।

कारगिल युद्ध (Kargil War) को हर साल 26 जुलाई के दिन विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भारतीय सेना (Indian Army) ने पाकिस्तानी को कारगिल में हराकर अपना पराक्रम दिखाया था। पूरा देश एकबार फिर कारगिल दिवस के लिए तैयारी शुरू कर रहा है। कारगिल में भारतीय जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी और कई जवान शहीद हुए थे। एक युद्ध में जितना महत्व जवानों का होता है उतना ही हथियारों का भी होता है।

सेना के पास जितने ज्यादा मजबूत और मॉर्डन हथियार होंगे दुश्मन उतना ही कमजोर नजर आएगा। कारगिल में भी भारतीय सेनाओं के हथियारों ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी जिसको याद कर आज भी पाकिस्तान थर-थर कांप उठता है। 1999 में करीब दो महीने चले इस युद्ध में 27 किलोमीटर तक गोले दागने वाली बोफोर्स तोपों को बखूबी इस्तेमाल किया गया था। इसका बैरल 70 डिग्री तक घूम सकता है।

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ये तोपें कारगिल युद्ध (Kargil War) में अहम हथियार बनकर उभरी थीं। पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन तोलोलिंगा में इन तोपों का बखूबी इस्तेमाल किया गया। बोफोर्स के जरिए सेना ने काउंटर अटैक किया और पहाड़ों में छिपकर बैठे घुसपैठियों को मार भगाया। तोलोलिंगा श्रीनगर लेह राजमार्ग के ऊपर स्थित है और यह रणनीतिक तौर पर बेहद अहम इलाका है।

युद्ध में तोपखाने से 2,50,000 गोले और रॉकेट दागे गए थे। 300 से अधिक तोपों, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चरों ने रोज करीब 5,000 बम फायर किए थे। बोफोर्स तोपों की गिनती दुनिया की सबसे घातक और स्मार्ट तोपों में की जाती है। बोफोर्स कारगिल युद्ध (Kargil War)  में सेना को मजबूत बनाया। इसने हमारे सैनिकों के बाजुओं को मजबूत किया तो वहीं पाक सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए। द्रास की माउंटेन रेंज में दुश्‍मन का छिपना काफी आसाना है। यह जमीन के अंदर बंकर में बैठे दुश्मन को भी मार गिराती है।

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