Kargil War: युद्ध की कहानी गोरखा रेजीमेंट के सिपाही कैलाश क्षेत्री की जुबानी, जानें कैसे दुश्मनों को किया था ढेर

भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी युद्ध 1999 में लड़ा गया था। यह कारगिल युद्ध (Kargil War) के नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान ने कारगिल के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई क्षेत्रों पर धोखे से कब्जा कर लिया था।

Kargil War

कारगिल युद्ध लड़ चुके सैनिक कैलाश क्षेत्री।

Kargil War: युद्ध में गोरखा रेजीमेंट के जवानों ने बेहद ही अहम भूमिका निभाई थी। गोरखा रेजीमेंट में तैनात सिपाही कैलाश क्षेत्री ने भी इस युद्ध में हिस्सा लिया था।

भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी युद्ध 1999 में लड़ा गया था। यह कारगिल युद्ध (Kargil War) के नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान ने कारगिल के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई क्षेत्रों पर धोखे से कब्जा कर लिया था। इन जगहों को पाकिस्तानी घुसपैठ से छुड़वाना ही इस युद्ध का मकसद था। अपने इस मकसद में भारतीय सेना (Indian Army) सफल भी हुई थी।

इस युद्ध में गोरखा रेजीमेंट के जवानों ने बेहद ही अहम भूमिका निभाई थी। गोरखा रेजीमेंट में तैनात सिपाही कैलाश क्षेत्री ने भी इस युद्ध में हिस्सा लिया था। उन्होंने जंग के मैदान में किस तरह दुश्मनों का सामना किया था, इसपर अपना अनुभवा साझा किया है।

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देहरादून के सेलाकुई में रहने वाले कैलाश क्षेत्री बताते हैं, “1999 के दौरान माहौल तनावपूर्ण था। मेरी युद्ध से पहले 1998 में जम्मू और कश्मीर के दराज सेक्टर में पोस्टिंग हुई थी। मुझे हथियारों की सप्लाई करने की जिम्मेदारी दी गई थी। युद्ध के दौरान ही मैंने दराज सेक्टर में हथियारों की सप्लाई की थी। यह बेहद चुनौतीपूर्ण था। इस दौरान कई बार मेरा सामना मौत से हुआ लेकिन देश सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता थी।”

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वे आगे बताते हैं, “जब-जब सेना को हथियारों की जरूरत पड़ती तो मुझे सप्लाई के लिए उन पहाड़ियों से होकर गुजरना पड़ता था जो कि पाकिस्तानी सेना के कब्जे में थी। मैं इस दौरान कई मौकों पर हथियारों से भरे वाहन की लाइट बंद कर आगे बढ़ता था ताकि दुश्मन को हमारी भनक भी न लग सके। लेकिन जब जब युद्ध खत्म हुआ तो सभी में जोश थे और साथ ही अपने खोए साथियों के गम के आंसू भी थे।”

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