Kargil War: जंग के वक्त सैनिक को मदद कैसे मिल पाती है? नायक दीपचंद की जुबानी जानें उनका अनुभव

युद्ध में नायक दीपचंद ने भी हिस्सा लिया था। उन्होंने युद्ध से जुड़े उन दिनों के अपने अनुभव को साझा किया है। उन्होंने यह भी बताया था कि जंग के दौरान सैनिकों को खाने पीने की मदद कैसे मिल रही थी।

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Kargil War: इस युद्ध में नायक दीपचंद ने भी हिस्सा लिया था। उन्होंने युद्ध से जुड़े उन दिनों के अपने अनुभव को साझा किया है। उन्होंने यह भी बताया था कि जंग के दौरान सैनिकों को खाने पीने की मदद कैसे मिल रही थी।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तान को इस युद्ध से भारी नुकसान हुआ था। भारतीय सेना (Indian Army) ने हर मोर्चे पर दुश्मनों को विफल साबित किया और हर वह पोस्ट पर तिरंग फहराया जहां पर पाकिस्तानी सेना ने धोखे से कब्जा कर लिया था।

इस युद्ध में नायक दीपचंद ने भी हिस्सा लिया था। उन्होंने युद्ध से जुड़े उन दिनों के अपने अनुभव को साझा किया है। उन्होंने यह भी बताया था कि जंग के दौरान सैनिकों को खाने पीने की मदद कैसे मिल रही थी और उस दौरान खान-पान किस तरह हुआ था।

प्राचीन काल में ऐसे होते थे युद्ध, नियम और कायदों के तहत ही किया जाता था दुश्मनों पर हमला

वे बताते हैं, “उस वक्त हमें कुछ भूख नहीं लग रही थी। सैनिकों को बस खाना नहीं चाहिए था, हम चाहते थे, सिर्फ गोली दे दो जिससे हम सामने वाले को मार दें। युद्ध के दौरान जब हम किसी पोस्ट पर कब्जा कर लेते थे तो तब अच्छा खाना खा लेते थे लेकिन इससे पहले हमें भूख कम ही लगती थी। जंग के वक्त तो ताजा खाना मिलने का तो सवाल ही नहीं होता लेकिन हम अपने साथ पैक्ड फूड आइटम लेकर जाते थे ताकि किसी तरह कुछ खाकर शरीर में ऊर्जा डाली जा सके।”

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नायक दीपचंद आगे बताते हैं, “हम पैक का खाना अपने साथ हमेशा रखते थे। इसके साथ ही हम बादाम-काजू की चीजें, बिस्कुट और कुछ ऐसी चीजें भी साथ रखते थे। इन्हें खाने से हम काफी ताकत मिलती थी। कई फूड तो ऐसे थे जिसे हम पतीले में गर्म करके खा लिया करते थे। पोस्ट पर तिरंगा लहराने के बाद जो थोड़ा बहुत समय मिलता था तो उसमें हम कहीं से ताजा खाना बनवाकर खाते थे। हालांकि ज्यादात्तर समय हथियारों की साफ-सफाई आदि में निकल जाता था।”

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