कारगिल के नायक कर्नल जेके चौरसिया ने पेश की है मिसाल, देश प्रेम इनके लिए सबसे बड़ा

Kargil War 1999: वह चाहते तो लखनऊ में हो रही नियुक्ति स्वीकार कर आराम से बिना किसी खास खतरे के काम कर सकते थे लेकिन उन्होंने खतरों को स्वीकार किया।

Kargil War

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Kargil War 1999: वह चाहते तो लखनऊ में हो रही पोस्टिंग स्वीकार कर आराम से बिना किसी खतरे के काम कर सकते थे। लेकिन उन्होंने खतरों को स्वीकार किया।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हराया गया था। कश्मीर जीतने आई पाकिस्तानी सेना बुरी तरह अपनी बेइज्जती करवाकर कारगिल से खदेड़ी गई थी।

इस युद्ध (Kargil War) में कर्नल जेके चौरसिया ने भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने इस जंग में अपना पैर गंवा दिया था। इसके बावजूद वह वतन पर सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। उन्होंने पैर गंवाने के बाद जो किया वह देशप्रेम की सबसे बेहतर मिसाल माना जा सकता है।

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दरअसल, सेवानिवृत्ति के वर्षों बाद जब रक्षा मंत्रालय ने उन्हें फिर से देश की सेवा का न्योता दिया, तो उन्होंने लखनऊ में हो रही नियुक्ति ठुकराकर कश्मीर में तैनाती मांगी। अब वे वहां कृत्रिम पैर के सहारे घुसपैठियों और आतंकियों के आगे डटकर खड़े हैं। एक पैर गंवाने के बाद भी खतरों से लड़ने में वह पीछे नहीं है।

वे मराठा लाइट इंफेंट्री के साथ सरहद पर पर दुश्मनों को नेस्तनाबुद कर रहे हैं। उन्होंने हाल में कठुआ और सांबा में आतंकियों की घुसपैठ रोकने में अहम भूमिका निभाई है।

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वह चाहते तो लखनऊ में हो रही नियुक्ति स्वीकार कर आराम से बिना किसी खतरे के काम कर सकते थे। लेकिन उन्होंने खतरों को स्वीकार किया और देश की रक्षा को सर्वोपरि माना। उनकी इस बहादुरी को हर भारतीय को सलाम करना चाहिए।

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