Kargil War: 22 ग्रेनेडियर के सूबेदार रहे बोदूलाल मीणा का ऐसा रहा अनुभव, जानें क्या थीं चुनौतियां

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़ा गया कारगिल का युद्ध (Kargil War) भारतीय सेना (Indian Army) की बहादुर की कहानी है। इस युद्ध में भारतीय जवानों ने दुश्मनों को जो सबक सिखाया था, उसे यादकर पाकिस्तान आज भी थर-थर कांप उठता होगा।

Kargil War 1999: युद्ध से जुड़े अपने अनुभवों को 22 ग्रेनेडियर के सूबेदार बोदूलाल मीणा ने साझा किया है। उन्होंने बताया है कि उन दिनों क्या-क्या चुनौतियां थीं?

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़ा गया कारगिल का युद्ध (Kargil War) भारतीय सेना (Indian Army) की बहादुर की कहानी है। इस युद्ध में भारतीय जवानों ने दुश्मनों को जो सबक सिखाया था, उसे यादकर पाकिस्तान आज भी थर-थर कांप उठता होगा। पाकिस्तानी सैनिकों को एक-एक कर मार गिराकर सेना ने 1999 में कारगिल फतह किया। इस युद्ध में भारत के भी जवान शहीद हुए, जैसा कि हर युद्ध में होता है।

इस युद्ध में 22 ग्रेनेडियर के सूबेदार बोदूलाल मीणा ने भी हिस्सा लिया था। युद्ध (Kargil War) से जुड़े अपने अनुभवों को 22 ग्रेनेडियर के सूबेदार बोदूलाल मीणा ने साझा किया है। उन्होंने बताया है कि उन दिनों क्या-क्या चुनौतियां थीं?

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वे बताते हैं, “युद्ध से पहले हमारी यूनिट की हैदराबाद में तैनाती थी। हमें अचानक ही युद्ध का बुलावा आया और श्रीनगर पहुंचने के लिए कहा गया। हमने भी झटपट पैकिंग की और निकल पड़े। जैसे ही जंग के मैदान में पहुंचे तो पाया कारगिल में ऑक्सीजन की बहुत कमी है। हमें यह बेहद चुनौतीपूर्ण लगा, क्योंकि हम हैदराबाद जैसे मैदानी क्षेत्र से आए थे।”

वे आगे बताते, “पाकिस्तान ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर कब्जा जमाए बैठा था, जबकि हम नीचले इलाकों से उन तक पहुंचते थे। चढ़ाई करते वक्त बेहद परेशानी हुई, क्योंकि ऑक्सीजन की बहुत कमी महसूस हो रही थी। रात को आगे बढ़ते हुए मेरी कंपनी सुबह ऐसी जगह पहुंच गई, जिसके चारों ओर दुश्मन थे।”

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22 ग्रेनेडियर के सूबेदार बोदूलाल मीणा के मुताबिक, “दुश्मनों के बीच फंसा देख हमें नागा रेजीमेंट की कंपनी ने कवर फायर दिया था। इसके बाद देखते ही देखते हमने भी दुश्मनों पर हमला बोल दिया था। कुछ ही घंटों के बाद खालूबार से सटी जुबैर हिल को दुश्मन से मुक्त कराया। सही मायने में यह अब तक की सबसे कठिन लड़ाई थी जिसे हमने जीता।”

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