कारगिल ‘हीरो’ योगेंद्र सिंह यादव, 17 गोलियां खाकर भी पाक सेना को किया ढेर, जानें पूरी कहानी

युद्ध के दौरान वह सेक्टर द्रास की टाइगर हिल पर लहूलुहान पड़े थे। चारों तरफ से दुश्मन पाकिस्तान की गोलियां बरस रही थीं। 17 गोलियां शरीर में लग चुकी थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी जिस वजह से शरीर ने भी उनका साथ दिया।

Kargil

परमवीर चक्र सुबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव।

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल के बेहद अहम तीन दुश्मन बंकरों पर कब्ज़ा करने का दायित्व सौंपा गया था। जिसका दायित्व योगेन्द्र सिंह यादव ने आगे बढ़कर खुद लिया था।

कारगिल: पाकिस्तान के खिलाफ 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। कारिगल युद्ध में भारतीयों जवानों ने पाकिस्तान को ऐसी धूल चटाई थी जिसको याद कर दुश्मन आज भी थर-थर कांपता है। इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध करीब दो महीने तक चला था। ये युद्ध सेना के साहस और जांबाजी का नायाब उदाहरण है।

युद्ध में ऐसे कई चेहरे थे जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश को जीत दिलाई। खुद गोलियां खाईं पर देश का सिर नहीं झुकने दिया। इन वीर जाबाजों में से एक जवान ऐसे भी हैं जिनका दुश्मन की 17 गोलियां भी कुछ नहीं बिगाड़ पाई। हम बात कर रहे हैं परमवीर चक्र सुबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव की। उन्होंने कई मौकों पर कारगिल युद्ध में अपनी बहादुरी के बारे में बताया है।

वह बताते हैं कि युद्ध के दौरान वह सेक्टर द्रास की टाइगर हिल पर लहूलुहान पड़े थे। चारों तरफ से दुश्मन पाकिस्तान की गोलियां बरस रही थीं। 17 गोलियां शरीर में लग चुकी थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी जिस वजह से शरीर ने भी उनका साथ दिया। वह गिरते और उठते, गिरते और फिर उठते। उनकी बहादुरी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया था तो यादव ने दूसरे हाथ से बंदूक की गोलियां दुश्मन पर दागीं। 19 साल की उम्र में ट्रेनिंग के बाद ही उन्होंने जंग की तैयारी शुरू कर दी। यादव घातक प्लाटून का हिस्सा थे।

दरअसल 15 हजार फीट से ज्यादा की चढ़ाई पर द्रास के टाइगर हिल को फतह करने के लिए सेना ने जी तोड़ मेहनत की। यादव भी घातक प्लाटून का हिस्सा थे। 21 जवानों की टुकड़ी जब द्रास के टाइगर हिल पर चढ़ाई कर रही थी तभी दुश्मन देश ने हमला बोल दिया था। हमले में कई जवान शहीद हुए। हमला होने के बावजूद बचे हुए जवानों ने चढ़ाई करने का फैसला लिया।ऊपर पहुंचते ही दुश्मन के पहले बंकर को नष्ट कर दिया गया।

21 जवानों की टुकड़ी में सिर्फ 7 जवान ही बचे थे इनमें मेजर योगेंद्र सिंह यादव भी थे। दूसरे बंकर पर धावा बोलने से पहले बचे हुए जवानों ने साहस दिखाया और चतुराई से काम लिया। सभी सैनिक छिप गए। इसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों को लगा कि भारतीय सेना के सभी सैनिक मारे गए हैं तो वे बाहर निकल आए। जैसे ही वे बाहर निकले यादव और अन्य 6 जवानों ने उनपर हमला बोल दिया। इस दौरान भारतीय सेना के सभी जवान शहीद हो गए और यादव को भी गोलियां लगीं। हालांकि वे मरने का नाटक करते रहे। जैसे ही पाकिस्तानी जवान वहां से जाने लगे तभी योगेंद्र यादव ने अकेले ही सभी को मार गिराया।

यादव एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताते हैं ‘मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि मैं 16 साल 5 महीने की उम्र में सेना में भर्ती हुआ और 19 साल की उम्र में कारगिल का युद्ध लड़ पाया। मैं ये सब इसलिए कर पाया क्योंकि मेरे पिता जी और दादा जी फौज में थे और उनसे प्रेरणा लेकर ही मैं ये इतना कुछ कर पाया।’

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