Indo-China War 1962: भारत को पहला झटका वालौंग में लगा था, फिर ला-पास भी हाथ से फिसला

साल 1962 का भारत-चीन युद्ध (Indo-China War 1962) दो ऐसी सेनाओं के बीच लड़ा गया, जिसमें से एक पूरी तैयार थी तो दूसरी बिल्कुल भी नहीं। युद्ध में हमारे जवानों ने संख्या में कम होने के बावजूद चीनी सैनिकों का डटकर सामना किया था। हथियार कम पड़ने पर हैंड टू हैंड फाइट तक की थी।

Indo-China War 1962

भारतीय सेना के जवान। (फाइल फोटो)

Indo-China 1962 War: युद्ध में भारत को पहला झटका वालौंग में लगा था और इसके बाद ला-पास भी हाथ से फिसल गया था। भारतीय क्षेत्र की जमीनों पर चीन आक्रमक तरीके से कब्जा कर रहा था।

भारत और चीन के बीच 1962 का युद्ध दो ऐसी सेनाओं के बीच लड़ा गया, जिसमें से एक पूरी तैयार थी तो दूसरी बिल्कुल भी नहीं। नतीजन जीत भी उसी सेना की हुई जो पूरी तैयार थी। भारतीय सेना (Indian Army) को चीनी सेना के खिलाफ हार का मुंह देखना पड़ा था।

युद्ध में हमारे जवानों ने संख्या में कम होने के बावजूद चीनी सैनिकों का डटकर सामना किया था। हथियार कम पड़ने पर हैंड टू हैंड फाइट तक की थी। इस युद्ध में भारत ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश की थी। युद्ध (Indo-China War 1962) में भारतीय सेना के पराक्रम के आगे दुश्मन थर-थर कांपने लगे थे।

Indo-China War 1962: 12 हजार भारतीय सैनिकों ने किया था 80 हजार चीनियों कड़ा मुकाबला

युद्ध (Indo-China War 1962) में भारत को पहला झटका वालौंग में लगा था और इसके बाद ला-पास भी हाथ से फिसल गया था। भारतीय क्षेत्र की जमीनों पर चीन आक्रमक तरीके से कब्जा कर रहा था। ला-पास के पूरे इलाके में तो हमारे दस हजार सैनिकों ने चीन के 20 हजार सैनिकों का सामना किया था।

हालांकि, इन सबके बावजूद चीन ने भारत की करीब 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर भी कब्जा कर लिया था। हमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अक्साई चिन को भी गंवाना पड़ा था। हमारे सैनिक प्रथम विश्व युद्ध के जमाने की ली इनफील्ड रायफलें चला रहे थे जबकि चीनी सैनिक बेहद ही एडवांस लेवल की रायफलें।

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यानी युद्ध में भारतीय सेना बिना तैयारी, हथियारों के लड़ रही थी। यहां तक कि सेना के पास बेहद कम तापमान के लिए कपड़े और जूते तक नहीं थे। इस युद्ध (Indo-China War 1962) में रक्षा और सियासी बलों के कारण भारत को हार का सामना करना पड़ा था। इसमें हमारे साढ़े तीन हजार सैनिक शहीद हुए थे। 

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