जंग की कहानी, 1962 के योद्धा की जुबानी; हड्डियां गला देने वाली ठंड में भी चीनी सैनिकों को नहीं बढ़ने दिया एक इंच आगे

भारत और चीन के बीच 1962 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) को हार का मुंह का देखना पड़ा था। सेना पूरी तैयारी के साथ इस युद्ध में नहीं उतरी थी, जबकि चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ आई थी।

Indian Army

पूर्व सैनिक हरिहर सिंह।

साल 1950 में आर्मी (Indian Army) ज्वॉइन करने वाले हरिहर सिंह आगे बताते हैं, “मेरी तैनाती उन दिनों सिक्किम के नाथुला बार्डर के गैलेप ला पोस्ट पर थी। हड्डियां गला देने वाली ठंड के बीच भी हमने दुश्मनों को एक इंच आगे नहीं बढ़ने दिया था।”

भारत और चीन के बीच 1962 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) को हार का मुंह का देखना पड़ा था। सेना पूरी तैयारी के साथ इस युद्ध में नहीं उतरी थी, जबकि चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ आई थी। युद्ध सियाचिन की हड्डियां गला देने वाली ठंड के बीच लड़ा गया था।

इस युद्ध में शामिल होने वाले बिहार के छपरा (सारण) जिले के रहने वाले हरिहर सिंह ने अपना अनुभव साझा किया है। उन्होंने एक मीडिया चैनल से बातचीत में उस अनुभव को साझा किया जिसमें वह भारी मुश्किलों के बीच दुश्मनों की गोलियों को सामना कर रहे थे।

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मांझी प्रखंड के चांदपुरा गांव के रहने वाले हरिहर बताते हैं, “मेरे बगल से गोलियां गुजर रही थीं। पर मेरे कदम नहीं डगमगाए थे। मैंने खुद भी कई चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था। दुश्मन की गोलियां कान के छूकर गूजर रही थीं, लेकिन कदम पीछे नहीं हट रहे थे।”

साल 1950 में आर्मी (Indian Army) ज्वॉइन करने वाले हरिहर सिंह आगे बताते हैं, “मेरी तैनाती उन दिनों सिक्किम के नाथुला बॉर्डर के गैलेप ला पोस्ट पर थी। हड्डियां गला देने वाली ठंड के बीच भी हमने दुश्मनों को एक इंच आगे नहीं बढ़ने दिया था।”

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90 वर्षीय हरिहर सिंह ने बताया, “मैं मौत की परवाह किए बगैर 22 दिन तक दुश्मनों के सामने टिके रहा था। इसी बीच अरुणाचल प्रदेश में सैनिकों की संख्या कम होने पर हमें वहां भेज दिया गया था।”

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