
शहीद छोटू सिंह।
वह भारतीय सेना (Indian Army) की सिख रेजिमेंट में शामिल थे। दरअसल, युद्ध के दौरान ही वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। बात 11 नवंबर, 1962 की है। उस दौरान छोटू सिंह अपने साथियों के साथ जंग के मैदान में थे।
भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध लड़ा गया था। युद्ध में चीन ने भारत को हराया था। चीन युद्ध में पुरी तैयारी के साथ उतरा था। भारतीय सेना (Indian Army) के पास युद्ध में न तो पूरे हथियार थे और न ही हड्डियां गला देने वाली ठंड में पहनने वाले कपड़े। युद्ध में पूरी तैयारी के साथ उतरने वाला ही जीत का बड़ा दावेदार होता है।
युद्ध में हार के बावजूद कई सैनिकों ने अपने शौर्य और पराक्रम के जरिए अपनी छाप छोड़ी थी। चीन के खिलाफ सीना छलनी होने के बाद भी कई जवानों ने आखिरी दम तक दुश्मनों के खिलाफ मोर्चा संभाले रखा था।
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इनमें से एक हरियाणा के सिरसा जिले के डबवाली के गांव लोहगढ़ निवासी छोटू सिंह भी थे। जिन्होंने इस युद्ध में शहादत देकर अपनी बहादुरी का परिचय दिया था। उन्होंने ऐसी मिसाल पेश की थी जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरण स्रोत है।
वह भारतीय सेना (Indian Army) की सिख रेजिमेंट में शामिल थे। दरअसल, युद्ध के दौरान ही वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। बात 11 नवंबर, 1962 की है। उस दौरान छोटू सिंह अपने साथियों के साथ जंग के मैदान में थे। वे और उनके साथ दुश्मनों को हर मोर्चे पर घेरे हुए थे। लेकिन इसी दौरान चीनी सेना ने घेराबंदी कर उन्हें धोखे से मार गिराया था।
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इस दौरान उनका शरीर गोलियों से छलनी हो गया था, लेकिन वह दुश्मनों का डटकर सामना करते रहे थे। इस दौरान परिवार को सूचना दी गई कि वे शहीद हो गए हैं। उनके परिवार के पास वर्दी और बिस्तर लेकर सेना के जवान पहुंचे थे।
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