Garhwal Rifles का हर युद्ध में बजा है डंका, जानें इस बटालियन के बारे में सबकुछ

चाहे वह 1948 का युद्ध हो या फिर 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 और 71 में पाकिस्तानी सेना के साथ लोहा लेना हो। Garhwal Rifles के जवानों ने हमेशा अपनी छाप छोड़ी है।

Garhwal Rifles, Indian Army

गढ़वाल राइफल्स के जवान बेहद ही फुर्तीले और दुश्मनों को ढेर करने के लिए जाने जाते हैं।

चाहे वह 1948 का युद्ध हो या फिर 1962 का चीन के साथ युद्ध और 1965 और 71 में पाकिस्तानी सेना के साथ लोहा लेना हो। गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने हमेशा अपनी छाप छोड़ी है। देश के लिए शहादत भी दी।

गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles) भारतीय सेना (Indian Army) की एक पैदल सेना रेजिमेंट है। शुरुआत में यह ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा थी और भारत की स्वतंत्रता के बाद, इसे भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया था। गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles) का सैन्य इतिहास साल 1814-15 से शुरू हुआ। साल 1814 में खलंगा युद्ध में गोरखा रेजिमेंटों के साथ गढ़वाली सैनिकों ने भी हिस्सा लिया था। गढ़वाल राइफल्स में गढ़वाल के केवल सात जिलों से आने वाले नौजवानों की भर्ती होती है।

गढ़वाल राइफल्स के जवान बेहद ही फुर्तीले और दुश्मनों को ढेर करने के लिए जाने जाते हैं। दुश्मनों को ढेर करने के साथ-साथ गढ़वाल राइफल्स के जवान देश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। समय-समय पर देश के लिए शहादत देकर गढ़वाल राइफल्स के जांबाजों ने एक मिसाल कायम की है।

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चाहे वह 1948 का युद्ध हो या फिर 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 और 71 में पाकिस्तानी सेना के साथ लोहा लेना हो। गढ़वाल राइफल्स के जवानों ने हमेशा अपनी छाप छोड़ी है। देश के लिए शहादत भी दी। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में गढ़वाल राइफल्स के जवानों नें दुश्मनों को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। चीन से हार के दौरान भी चीनी सेना को रोककर हजारों सैनिकों को पीछे हटने का समय दिया था।

इनकी वीरता का लोहा तो दुश्मन भी मानते हैं। गढ़वाल राइफल्स के सबसे ज्यादा जवान 1965 में पाकिस्तान से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे। 1948 से अब तक के 13 युद्धों और अन्य आपरेशनों में गढ़वाल राइफल्स के 734 जवान शहीद हुए हैं।

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