‘परमवीर चक्र’ के डिजाइन की हर वो बात जो आपको पता होनी चाहिए, इस मेडल का वैदिक ऋषि से है कनेक्शन

वीरता पुरस्कारों में सबसे बड़ पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ होता है। असाधारण बहादुरी के लिए ये पुरस्कार दिया जाता है। अबतक कुल 21 सैनिकों को यह दिया जा चुका है।

Param Vir Chakra

Param Vir Chakra

वीरता पुरस्कारों में सबसे बड़ पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ (Param Vir Chakra) होता है। असाधारण बहादुरी के लिए ये वीरता पुरस्कार दिया जाता है। अबतक कुल 21 सैनिकों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है।

भारतीय सेना जब-जब युद्ध के मैदान में उतरती है दुश्मन पर कहर बनकर टूट पड़ती है। आजादी के बाद से अबतक जितने भी युद्ध भारत ने लड़े हैं उसमें हमारे सैनिकों ने शौर्य, बलिदान और देश सेवा का परिचय दिया है। जवानों के देश प्रेम और खुद की जान को न्योंछावर करने के कई पल भारत महसूस कर चुका है।

सेना के बलिदान के लिए उन्हें सैन्य सम्मान से नवाजा जाता है। सैनिकों और शहीदों के शौर्य और बलिदान को कभी नहीं भूलाया जा सकता। सैनिकों की वीरता के लिए उन्हें अलग-अलग वीरता पुरस्कार दिए जाते हैं।

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वीरता पुरस्कारों में सबसे बड़ पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ (Param Vir Chakra) होता है। असाधारण बहादुरी के लिए ये वीरता पुरस्कार दिया जाता है। अबतक कुल 21 सैनिकों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है। यह सम्मान सेना के उन जाबांजों को दिया जाता है, जिन्होंने वीरता, आत्म-बलिदान के साहसी कार्य और दुश्मन की उपस्थिति  में बहादुरी दिखाई हो।

यह चक्र युद्ध के समय में विपरीत परिस्थितियों में साहसी प्रदर्शन करने के लिए दिया जाता है। मेजर सोमनाथ शर्मा को देश का पहला परमवीर चक्र मिला था। अधिकतर सैनिकों को मरणोपरांत यह सम्‍मान मिला है।

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26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा परम वीर चक्र की शुरुआत एक शौर्य पदक के रूप में की गई जो 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी हुआ।

इस पदक का अर्थ है ‘सर्वोत्कृष्ट (परम) शूरवीर का चक्र’ और इसे ‘शत्रु से युद्ध के दौरान सर्वोच्च वीरता’ प्रदर्शित करने के लिए प्रदान किया जाता है। इस पदक का डिजाइन  सावित्री खानोलकर द्वारा तैयार किया गया था। डिजाइन निर्माता ने ऋषि दधीचि से प्रेरणा ली जो एक वैदिक ऋषि थे जिन्होंने अपना शरीर त्याग कर सर्वोच्च बलिदान दिया था ताकि देवता उनकी हड्डियों से वज्र अथवा ‘थंडरबोल्ट’ नामक घातक हथियार बना सकें।

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यह पदक कांसे का बना हुआ है। इसके मध्य में उभरे हुए वृत्त पर राष्ट्रीय चिह्न है जिसके चारों ओर शिवाजी की तलवार से घिरे इंद्र के वज्र की चार प्रतिकृतियां हैं। यह पदक एक सीधी पट्टी से लटका हुआ होता है और इसमें 32 मिमी. का बैंगनी रिबन लगा होता है।

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