ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, 1948 के युद्ध में  निभाई थी अहम भूमिका

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान (Brigadier Mohammad Usman) को बेहद ही बहादुर माना जाता था। कहा जाता है कि उनमें ऐसी काबिलियत थी कि वे थल सेना (Indian Army) के अध्यक्ष बन सकते थे।

Brigadier Mohammad Usman

Brigadier Mohammad Usman

India Pakistan War 1948: करियर की शुरूआत में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान (Brigadier Mohammad Usman) सैंडहर्स्ट में चुने गए थे, 1 फरवरी, 1934 को वो सैंडहर्स्ट से पास होकर निकले थे। वो इस कोर्स में चुने गए 10 भारतीयों में से एक थे, जिनमें जनरल सैम मानेकशॉ भी एक थे।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान (Brigadier Mohammad Usman) को बेहद ही बहादुर माना जाता था। कहा जाता है कि उनमें ऐसी काबिलियत थी कि वे थल सेना (Indian Army) के अध्यक्ष बन सकते थे। निष्पक्षता, ईमानदारी और न्यायप्रियता उनके संकल्प थे। अगर ऐसा होता तो वे भारत की थल सेना के पहले मुस्लिम अध्यक्ष होते।

अपने करियर की शुरूआत में वे सैंडहर्स्ट में चुने गए थे, 1 फरवरी, 1934 को वो सैंडहर्स्ट से पास होकर निकले थे। वो इस कोर्स में चुने गए 10 भारतीयों में से एक थे, जिनमें जनरल सैम मानेकशॉ भी एक थे।

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भारत और पाकिस्तान बंटवारे के बाद सभी को ऐसी उम्मीद थी कि मोहम्मद उस्मान पाकिस्तानी सेना में शामिल हो जाएंगे, लेकिन उन्होंने सबकी उम्मीदों के उलट भारतीय सेना (Indian Army) में शामिल होने का फैसला लिया था। साल 1947 तक वो ब्रिगेडियर बन चुके थे। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने कई कोशिशें की थीं कि वे पाकिस्तानी सेना में शामिल हो जाएं। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था।

अक्तूबर, 1947 में पाकिस्तानी सेना की मदद से कबायलियों ने कश्मीर पर हमला बोला तो इसमें ब्रेगेडियर मोहम्मद उस्मान ने अहम भूमिका निभाई थी। उस समय ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान (Brigadier Mohammad Usman) 77वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे।

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जनवरी-फरवरी, 1948 में घुसपैठियों ने नौशेरा और झांगर पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने तीन महीने की मशक्कत के बाद इसे आजाद करवाया था, लेकिने वे इस दौरान शहीद हो गए थे। इसके बाद से ही उन्हें नौशेरा के शेर की उपाधि दी गई थी। भारतीय सैनिक इस लड़ाई में बेहद कम संख्या में थे जबकि पाकिस्तानी सैनिक भारी तादाद में थे। इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब 1000 सैनिक मारे गए और 1000 जख्मी हुए थे।

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