पेट में गोली लगने के बावजूद नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे शहीद दीपक भारद्वाज, पुलिस अधिकारी ने बताई पूरी कहानी

बीजापुर में तैनात डीएसपी अभिषेक सिंह ने नक्सली हमले में शहीद हुए दीपक भारद्वाज (Deepak Bhardwaj) की जांबाजी का किस्सा साझा किया है।

Martyr Sub-Inspector Deepak Bhardwaj

शहीद सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज (Deepak Bhardwaj) की बहादुरी की कहानी को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में डीएसपी के पद पर तैनात अभिषेक सिंह ने साझा किया है ।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में 3 अप्रैल को सुरक्षाबलों और नक्सलियों (Naxalites) के बीच भीषण मुठभेड़ (Naxal Encounter) हुई थी। इस मुठभेड़ में सुरक्षाबल के 22 जवान शहीद हो गए और 31 घायल हुए थे। नक्सलियों के इस खूनी खेल ने पूरे देश को दहलाकर रख दिया था।

इस मुठभेड़ में हमारे जांबाज जवान अपनी जान की परवाह न करते हुए नक्सलियों से भिड़ गए थे। अब इन बहादुर जवानों के साहस और शौर्य की कहानियां लगातार सामने आ रही हैं। ये कहानियां देश के युवाओं को जोश से भर देंगी और इस बात का एहसास कराएंगी कि ये जवान कैसे अपने और अपने परिवार से ऊपर अपनी मातृभूमि को रखते हैं। देश की सुरक्षा के लिए वे मुश्किल से मुश्किल हालातों से टकराने को तैयार रहते हैं।

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मुठभेड़ के दौरान की ऐसे ही शौर्य ही एक दास्तां है शहीद सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज (Deepak Bhardwaj) की। उनकी इस कहानी को साझा किया है बीजापुर में तैनात छत्तीसगढ़ पुलिस के डीएसपी अभिषेक सिंह ने।

अभिषेक सिंह ने इस नक्सली हमले (Naxal Attack) में शहीद हुए सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज (Deepak Bhardwaj) की जांबाजी का किस्सा हैश टैग #AkhirKabTak के साथ फेसबुक पर साझा किया है।

यहां अभिषेक सिंह के शब्दों में पढ़ें …मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज  (Deepak Bhardwaj) के पराक्रम की कहानी-

“अरे दीपक भाई आप तो तुलावी साब की टीम में हो ना,मेरी टीम में कैसे आ गए?”- दीपक को देख कर सब इंस्पेक्टर संजय पाल ने पूछा ।

“पाल साब आज तो आपकी ही टीम में चलूंगा,आपसे बहुत कुछ सीखना है”- जिंदादिल दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा ।

“ठीक है तब मेरे ही पास रहना,कोर इलाके में जा रहे हैं”- संजय पाल ने कहा ।

संजय पाल बस्तर के सबसे अनुभवी कमांडर्स में से एक हैं, नक्सलियों से कई बार लोहा लिया है उन्होंने और कई बार धूल चटाई है। उनके मुकाबले दीपक अभी बिलकुल ही नया था, DRG में आए उसे 2 महीने ही तो हुए थे। उसके पहले थाना कुटरू में प्रभारी था। उसका पहला ही बड़ा ऑपरेशन था, उसे रिज़र्व फ़ोर्स में रखा गया था लेकिन दीपक ने बोल कर स्ट्राइक फ़ोर्स में अपना नाम लिखवाया।

उसने अपने एक साथी से रास्ते में जाते हुए कहा- “नक्सलियों को हमसे डरना चाहिए, हम पुलिसवाले हैं, संविधान के रक्षक… वो बंदूक के बल पर खूनी क्रांति लाना चाहते हैं और हम शांति।”

अचानक से जब ताबड़तोड़ बम आसमानों से गिरने लगे तो सबने अपनी अपनी पोजीशन ली। इतने बम गिर रहे थे कि जैसे बारिश हो रही हो। संजय पाल को तुरंत दीपक का खयाल आया, उसने पलट कर देखा तो दीपक एक छिंद पेड़ की आड़ लेकर फायर किए जा रहा था और संजय पाल के देखते-देखते ही 2 नक्सलियों को गोली मारी उसने।

संजय पाल देख कर दंग रह गए कि क्या शेर लड़का है! पहली गोली चलने में जहां बड़े-बड़े सूरमाओं के हाथ पैर जड़ हो जाते हैं, ये नया लड़का बमों के बीच में बिना डरे नक्सलियों को नाकों चने चबवा रहा है। थोड़ी देर बाद संजय पाल अपनी टीम को कवरिंग फायर देकर निकाल रहे थे तो उन्होंने दीपक को भी आवाज़ दी, मगर धमाकों के बीच उनकी आवाज़ जा नहीं रही थी।

दीपक ने फिर भी उनकी ओर देखा और इशारे में कहा कि आप चलो मैं अपनी टीम लेकर आता हूं। संजय पाल अपनी टीम को निकालने लगे। उसके बाद उन्होंने दीपक को नहीं देखा।

इधर, दीपक के हाथ में एक गोली लगी तो मनीष नाम के सिपाही ने उन्हें कहा- “साहब आप इधर आ जाओ,आप घायल हो…हम लोग आपको निकाल लेंगे।”

“अबे तुम लोग घायल होकर गोली चला सकते हो तो मैं क्यों नहीं चला सकता, कवरिंग फायर देते हुए पीछे बढ़ो…मैं भी साथ में चल रहा हूं, तुम लोगों को कुछ नहीं होगा मेरे रहते”- दीपक ने कहा।

तभी दूसरी गोली दीपक के पेट में आकर लगी। दीपक गिरा लेकिन फिर से उठा और फायर किया और एक और नक्सली को गोली मारी, उसके टीम वाले भी नक्सलियों को जवाब देते रहे। नक्सलियों को समझ में आ गया कि इस लड़के को हराना होगा वरना उनका और नुकसान हो जाएगा। इस बार उन्होंने ग्रेनेड लंचर दीपक की तरफ मारा जो सीधा दीपक के पैरों के पास आकर गिरा। दीपक बच नहीं पाया।

मनीष ने ग्रेनेड लांचर वाले पर चिल्लाते हुए ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं और मार गिराया, मगर दीपक के पार्थिव शरीर को उठाने गया तो फिर से ताबड़तोड़ गोलियां चलने लगीं और वो लोग किसी तरह वापस हुए। इन सब से अनजान संजय पाल इधर थोड़ी दूर पर हेलीकॉप्टर बुला कर शहीदों और घायलों को उसमें लोड करवा रहे थे।

जवान लौट कर कैम्प की तरफ आए। संजय पाल अभी पहुंचे ही थे और खड़े थे डी एस पी आशीष कुंजाम के साथ। तभी मनीष आया एक घायल जवान को लिए हुए और संजय पाल को देखते ही रोने लगा और कहा- “भारद्वाज साहब की बॉडी नहीं ला पाए साहब।” संजय पाल और आशीष कुंजाम को जैसे काठ मार गया हो।

सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज ने मादरेवतन के लिए अपनी आहुति दे दी 21 और जवानों के साथ। उसकी शादी दिसंबर, 2019 में हुई थी। तिरंगे में लिपटा उसका पार्थिव शरीर इतना क्षत विक्षत था कि उसकी फोटो तक नहीं डाल सकते। उसके पिता शिक्षक हैं और दीपक खुद एक मेधावी छात्र था और नवोदय से पढ़ा था।

उसके परिवार पर क्या बीत रही होगी उसकी मात्र कल्पना कर के देखिए। दीपक के बैचमेट्स ने अभी तक पांच लाख की राशि उसके परिवार के लिए जुटा ली है। सरकार भी 80 लाख का मुआवजा दे रही है लेकिन उसकी कमी को कभी पूरा नहीं कर पाएंगे।

“शहीदों की चिंताओं पर आखिर कब तक लगेंगे मेले??,
वतन पर मरने वालों का क्या यही बाकि निशां होगा ??”
#AkhirKabTak

 

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