मौत को मात देकर वापस लौट आया चीता, 9 गोलियां लगने के बाद भी छुड़ा दिए दुश्मनों के छक्के

अपनी साहस और बहादुरी के बूते चीता आज युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं। उनके जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब 2 महीने कोमा में रहने के बाद मौत के मुंह से निकलकर आए।

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चेतन कुमार चीता: 9 गोलियां खाकर भी जिसने मौत को दे दी मात

ऑपरेशन आर्मी और सीआरपीएफ का साझा था। एक तरफ से आर्मी ने मोर्चा संभाल रखा था, तो दूसरी तरफ से सीआरपीएफ का वह पैराट्रूपर अकेले ही आतंकियों से भिड़ गया। आतंकियों की गोलियों से छलनी था, फिर भी डटा रहा, गरजता रहा। चीता तो आखिर चीता होता है। ये कहानी ऐसे ही एक चीता की है, जो वर्दी पहनकर मादरे वतन हिंद की हिफाजत के लिए दुश्मनों से लोहा लेता है। यह चीता कोई और नहीं बल्कि सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर चेतन कुमार चीता (Chetan Kumar Cheeta) हैं।

तारीख थी 14 फरवरी, 2017। कश्मीर के बांदीपोरा हाजिन क्षेत्र में रात के 3.30 बजे सूचना मिली कि 4 आतंकवादी घुसपैठ करने वाले हैं। सीआरपीएफ की ओर से सर्च-ऑपरेशन शुरू किया गया। पर आतंकियों को सीआरपीएफ, सेना और पुलिस के मूवमेंट की खबर पहले ही लग गई। वे घात लगाकर बैठे थे। टुकड़ी के पहुंचते ही आतंकियों ने एके-47 से बर्स्ट-फायर कर दिया।

एनकाउंटर में आतंकियों ने चीता पर 30 राउंड गोलियां चलाईं, जिसमें से 9 गोलियां उन्हें लगीं। उनके दिमाग, दाईं आंख, पेट, दोनों बांहों, बाएं हाथ, हिप्स में गोलियां लगीं। पूरी तरह छलनी होने और आंख में गोली लगने के बावजूद चेतन चीता ने 16 राउंड गोलियां चलाईं और लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर अबू हारिस को ढेर कर दिया। चीता के काउंटर अटैक की वजह से सुरक्षा-टुकड़ी को संभलने का मौका मिल गया और जवानों ने तीन आतंकियों को मार गिराया। आतंकियों के पास काफी खतरनाक हथियार थे जिसमें एके-47 के अलावा यूबीजीएल यानी अंडर बैरेल ग्रेनेड लॉन्‍चर्स भी शामिल थे। चेतन चीता कई गोलियां लगने के बावजूद मौके पर डटे रहे। उन्होंने अपनी टीम के साथ आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उनके मंसूबे को नाकाम कर दिया।

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जख्मी चीता को श्रीनगर के आर्मी अस्तपाल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उनकी गंभीर हालत को देखते हुए बाद में दिल्ली के एम्स लाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें कोमा की हालत में लाया गया था, उनके सिर पर गोली लगी थी और शरीर का ऊपरी हिस्सा बुरी तरह फ्रैक्चर था। दाईं आंख में भी गोली लगी थी। आम तौर पर इतनी गोलियां लगने पर बचना नामुमकिन होता है, लेकिन चीता की बात ही अलग थी।

इस बहादुरी के लिए चीता को दूसरे सबसे बड़े वीरता पदक ‘कीर्ति चक्र’ से सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि युवा अपना 100 फीसदी देश को दें। वही जो मैंने किया, जो मेरी ड्यूटी थी।’

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चेतन कुमार चीता : 9 गोलियां खाकर भी जिसने मौत को दे दी मात

चेतन चीता राजस्थान के कोटा के रहने वाले हैं। उनके पिता रिटायर्ड आरएएस अफसर हैं, जो कोटा में ही रहते हैं। चेतन की पत्नी और दोनों बच्चे दिल्ली रहते हैं। जब उनसे पूछा गया कि चीता सरनेम कहां से आया? तो बोले- यह हमारा गोत्र है। मेरे पिता का नाम रामगोपाल चीता है। हमारी मीणा कम्युनिटी में रामगंजमंडी-मोड़क आदि जगहों पर चीता सरनेम होता है।

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अपनी साहस और बहादुरी के बूते चीता आज युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं। उनके जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब 2 महीने कोमा में रहने के बाद मौत के मुंह से निकलकर आए। 45 साल के चीता से जब पूछा गया कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं, तो व्हीलचेयर पर बैठे चेतन ने तपाक से कहा- इट्स रॉकिंग। उन्होंने कहा कि वे कोबरा बटालियन में शामिल होना चाहते हैं। बता दें कि सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशंस का अहम हिस्सा होती है।

अधिकारियों ने कहा कि घायल अधिकारी को पहले की तरह सामान्य होने में अभी एक से दो साल लग सकता है, लेकिन देश सेवा का उनका जज्बा युवाओं को प्रभावित करने वाला है। उनका कहना है, ‘मेरी फिजियोथिरेपी चल रही है और मैं फाइटिंग फिट हूं। अगर मेरी फोर्स और मेरा देश चाहता है कि मैं फील्ड में जाऊं और ऑपरेशन में हिस्सा लूं तो मेरी तरफ से कोई हिचक नहीं होगी।’

आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन में एक आंख खो चुके चेतन चीता अपने हाथ में सेंसेशन दोबारा लाने के लिए भारी फिजियोथिरेपी ट्रीटमेंट ले रहे हैं। उनके हाथ में गोली का निशान साफ देखा जा सकता है जहां से मांस कट कर अलग हो गया था। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि मुझे जिंदगी में क्या चाहिए? मैंने ज्यादा कुछ नहीं किया, सिर्फ इतना किया कि अपनी ड्यूटी को बेहतर ढंग से निभाया।

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इस जांबाज अधिकारी का वापस ड्यूटी पर लौटना किसी चमत्कार से कम नहीं है। चेतन चीता ने कहा- मेरा परिवार चिंतित है, मेरी पत्नी चिंतित है। लेकिन मैं जानता हूं कि मैं जितनी जल्दी अपना काम दोबारा शुरू करूंगा, उतनी जल्दी ही रिकवर करूंगा। ये वर्दी ही मेरी जिंदगी है।

चेतन ने न केवल मौत को मात दी बल्कि आज वापस अपने फोर्स और अपने देश की सेवा करने के लिए पहुंच चुके हैं। जांबाज कमांडेंट चेतन चीता जो आज सीआरपीएफ ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लोगों के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। खुद भारत के गृह मंत्री भी चेतन की तारीफ करते नहीं थकते। चेतन कुमार चीता की इस बहादुरी को सलाम।

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