‘बाबा’ हरभजन सिंह: एक ऐसा सिपाही जिसके नाम का है मंदिर, ‘देवता’ मानकर पूजती है सेना

इलाके के लोगों और जवानों का मानना है कि बीते 45 साल से पंजाब रेजिमेंट में बतौर सिपाही बाबा हरभजन सिंह मरणोपरांत भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 

baba harbhajan singh

कैप्टन 'बाबा' हरभजन सिंह की मूर्ति।

जवानों का मानना है कि बीते 45 साल से पंजाब रेजिमेंट में बतौर सिपाही बाबा हरभजन सिंह (Baba Harbhajan Singh) मरणोपरांत भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 

भारतीय सेना के जवान सरहद पर हर चुनौती का सामना कर देश की रक्षा करते हैं। भारतीय जवान भारत मां की रक्षा के लिए अपने परिवार से दूर रहते हैं ताकि देशवासी सुकून की नींद लें सकें। भारतीय सेना के कई जवानों ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्योंछावर किए हैं।

कई लोग अंधविश्वास में यकीन करते हैं तो कई नहीं। लेकिन अगर आप पूर्वी सिक्किम में मौजूद नाथू ला पास के पास में तैनात जवानों से यह पूछेंगे कि वे अंधविश्वास में यकीन करते हैं या नहीं तो जवाब हां में होगा।

ऐसा इसलिए क्योंकि इस इलाके के लोगों और जवानों का मानना है कि बीते 45 साल से पंजाब रेजिमेंट में बतौर सिपाही ‘बाबा’ हरभजन सिंह मरणोपरांत भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यहां पर तैनात जवानों का मानना है कि इस जवान की आत्मा इलाके की रक्षा में आज भी लगी हुई है जिस तरह मरने से पहले शरीर लगा हुआ था।

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दरअसल 30 अगस्त 1946 को पंजाब के जालंधर जिले में जन्मे बाबा हरभजन सिंह की 4 अक्टूबर, 1968 को हादसे में मौत हो गई थी। दरअसल खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। खाई में बहने वाली नदी उनके शरीर को बहाकर 2 किलोमीटर दूर ले गई।

बताया जाता है कि मृत्यु के बाद वे अपने साथी जवान के सपने में आए थे और उन्होंने अपने मृत शरीर की जानकारी दी थी और समाधि बनवाने की इच्छा जताई थी। यही वजह है कि भारतीय सेना इस सिपाही को मंदिर बनाकर पूजती है बल्कि उन्हें वेतन और प्रमोशन भी लगातार दिया जाता रहा है।

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