Arun Khetarpal: एक भी पाकिस्तानी टैंक पार नहीं जा पाया, जानें परिवार को कैसे मिली थी शहीद होने की खबर

भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1971 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को भारत ने धूल चटा दी थी। पाकिस्तान को एक पल भी ऐसा महसूस नहीं होने दिया गया था कि वो भारत के खिलाफ जीत भी सकता है।

Arun Khetarpal

Second Lieutenant Arun Khetarpal

War of 1971: एक भी पाकिस्तानी टैंक अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) के टैंक के पार नहीं जा पाया था। वे युद्ध में लड़ते-लड़ते दुश्मन के हमले में टैंक के अंदर ही शहीद हो गए थे।

भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1971 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को भारत ने धूल चटा दी थी। पाकिस्तान को एक पल भी ऐसा महसूस नहीं होने दिया गया था कि वो भारत के खिलाफ जीत भी सकता है। यह युद्ध बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था।

भारत को मिली इस बड़ी जीत के पीछे हमारे वीर सपूतों का बलिदान और शौर्य ही था। युद्ध में यूं तो सभी जवानों की भूमिका अहम होती है लेकिन कुछ जवान ऐसे होते हैं जिनकी वीरता के किस्से सालों-साल सुनाए जाते हैं। इनकी वीरता की कहानी हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत होती हैं।

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इस लड़ाई में 17 पूना हॉर्स के सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) को ऐसे ही अद्मय साहस का परिचय देने को लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ मिला था। युद्ध में महज 21 साल की उम्र में दुश्मनों के टैंक को धवस्त कर दिया था। उन्होंने ऐसा पराक्रम दिखाया था कि एक भी पाकिस्तानी टैंक उनके टैंक के पार नहीं जा पाया था। वे युद्ध में लड़ते-लड़ते दुश्मन के हमले में टैंक के अंदर ही शहीद हो गए थे।

परिवार को ऐसे मिली थी शहादत की जानकारी: परिवार को खेत्रपाल (Arun Khetarpal) की शहादत की जानकारी एक टेलिग्राम के जरिए मिली थी। जिसमें लिखा था, “हमें यह सूचित करते हुए बेहद दुख हो रहा है कि सेकेंड लेफ्टिनेंट खेत्रपाल (आई सी 25067) ने पाकिस्तान के खिलाफ टैंक युद्ध में 16 दिसंबर को देश के लिए शहादत दे दी है।”

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जब यह टेलिग्राम परिवार को मिला तो उन्हें लगा था कि खेत्रपाल (Arun Khetarpal) जल्द घर वापस लौटेगा। पिता ने तो उनकी बाइक भी पानी से धो दी थी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। खेत्रपाल हमेशा-हमेशा के लिए भारत मां की गोद में सोने चले गए थे।

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