
शहादत से 6 महीने पहले ही हुई थी शादी।
‘देखें आज किसकी गोली से ज्यादा आतंकवादी मरते हैं।’ जब भारत मां का यह लाल देश के दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए निकला तो उसकी जुबान से आखिरी शब्द यही निकले थे। इसके बाद तो घंटों तक सिर्फ उसकी बंदूक ही गरजती रही। कहर बनकर वो आतंकियों पर इस कदर टूटा कि आतंकी नाकों चने चबाने लगे। 25 अक्टबूर, 2018 को जम्मू-कश्मीर के बारामूला सेक्टर में सीआरपीएफ की एक टीम ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ पर थी। दरअसल सुरक्षा बलों को सूचना मिली थी कि भारत-पाक सीमा पर कुछ आतंकी नापाक इरादे लेकर छिपे बैठे हैं। सूचना पर आतंकियों के खात्मे के लिए निकली सीआरपीएफ की इस टीम में शामिल थे जुम्मन अली। जुम्मन अली ने अपने साथियों से पहले ही कह दिया था कि देखते हैं कि किसकी गोली से ज्यादा आतंकी मरते हैं। लिहाजा, आतंकियों की मांद में घुसकर वो चुन-चुन कर उन पर निशाना लगाने लगे।
जुम्मन अली की गरजती बंदूक का अंजाम यह हुआ कि इस मुठभेड़ में कई आतंकी उनकी गोली से घायल हो गए। जुम्मन अली ने मौके पर ही दो आतंकियों को ढेर भी कर दिया। उनके इस अदम्य साहस को देख उनकी टीम के हौसले और बुलंद हो गए और टीम के सदस्य आतंकियों पर टूट पड़े। इधर सुरक्षा बलों की इस भयंकर कार्रवाई से आतंकियों के हाथ-पैर फूलने लगे और वो किसी तरह छिप कर वहां से निकलने की फिराक में लग गए। तभी आतंकियों द्वारा चली एक गोली जुम्मन अली को लगी और वो जख्मी हो गए। सीआरपीएफ की टीम ने उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया जहां 2 दिनों के इलाज के बाद भारत का यह वीर सपूत शहीद हो गया।
शहीद जुम्मन अली मूल रूप से झारखंड के गंगा तट पर बसे साहिबगंज जिला के सदर प्रखंड अंतर्गत छोटी कोदरजन्ना रेंजा नगर के रहने वाले थे। इनका पूरा परिवार इसी गांव में रहता है तथा खेती-बाड़ी कर अपना जीवन बसर करता है। घर के चिराग के शहीद होने की सूचना पाकर सारा परिवार स्तब्ध रह गया। उस वक्त शहीद के पिता, मां पत्नी और इनकी चारों प्यारी बहनों के आंखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। शहीद जवान जुम्मन अली की शादी साल 2018 के ही मार्च महीने में फरहा निशा के साथ हुई थी। लेकिन शादी के महज 6 महीने बाद ही सुहाग के शहीद हो जाने की खबर जब उन तक पहुंची तो उन पर गमों का सैलाब टूट पड़ा। 27 अक्टूबर, 2018 को भारी जनसैलाब के बीच शहीद जुम्मन अली को अंतिम विदाई दी गई। कहते हैं कि शहीदों के जाने के बाद उनकी यादें हमेशा जेहन में जिंदा रहती हैं। शहीद होने से ठीक एक दिन पहले जुम्मन अली ने अपनी पत्नी से कहा था कि ‘मैं ठीक हूं तुम मां बनने वाली हो तुम अपना ख्याल रखना और समय पर दवा खाते रहना।’
शहीद जुम्मन अली का बचपन गरीबी में गुजरा था। जब वो काफी छोटे थे तब उनके पिता का देहांत हो गया था। पिता का साया सिर से उठने के बाद जुम्मन अली ने ही पूरे परिवार को संभाला था। साल 2012 में उन्होंने सीआरपीएफ ज्वॉइन किया था। साल 2013 से वो कश्मीर के बारामूला सेक्टर में बतौर कांस्टेबल तैनात थे। मुठभेड़ के दिन अंतिम बार उन्होंने अपनी मां बीवी कालो से बात करते हुए कहा था कि मैं 2 महीने के बाद घर आऊंगा तब घर का प्लास्टर का काम शुरू करेंगे। पहले दोनों भाइयों के रूम का काम होगा तब हम अपना रूम का काम लगाएंगे। उन्होंने कहा था कि मैं बकरीद की छुट्टी में घर आऊंगा।
शहीद की मां कहती है कि मैं अपने पुत्र के शहीदी पर गर्व करती हूं। परंतु सरकार से मैं नाखुश हूं क्योंकि शहीद हो जाने के बाद शहीद परिवार के प्रति सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं रहता। हालांकि, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने शहीदों के परिवार के प्रति जो संवेदनाएं व्यक्त की हैं उससे मैं काफी आश्वस्त हूं। जुम्मन अली की मां का कहना है कि सरकार के ऐलान के तहत शहीद के 1 पुत्र के लालन-पालन में हमें सहयोग मिलेगा।
वहीं, पत्नी निशा का कहना है की सरकार शहीद के बच्चों के बारे में सोचे तथा हमारी जीविका कैसे चले इस पर भी योजनाएं बनाएं ताकि शहीद हो जाने के बाद शहीद परिवार को कोई दिक्कत ना हो। फिलहाल शहीद की पत्नी निशा ग्रेजुएट हो चुकी हैं और उन्होंने राज्य सरकार से नौकरी की अपील भी की है।
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