1971 का युद्ध: …जब भारतीय जवान ने पत्र लिखकर दुश्मन देश के सैनिक को मरणोपरांत दिलवाया था सैन्य सम्मान!

रजा इस युद्ध में सबसे आगे होकर लड़ रहे थे। भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के 250 से अधिक सैनिक मार गिराए। 17 दिसंबर की रात युद्ध खत्म हुआ।

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(फाइल फोटो)

रजा इस युद्ध में सबसे आगे होकर लड़ रहे थे। भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के 250 से अधिक सैनिक मार गिराए। 17 दिसंबर की रात युद्ध खत्म हुआ।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में युद्ध लड़ा गया था। युद्ध में पाकिस्तान की बुरी तरह हार हुई थी। युद्ध के दौरान एक भारतीय जवान ने बहादुरी के साथ-साथ मानवता की मिसाल पेश की थी। सैनिक का नाम है कर्नल वीपी एरी। एरी ने युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना के कर्नल मोहम्मद अकरम रजा की बहादुरी की जानकारी एक पत्र के जरिए पाकिस्तान तक पहुंचाई थी। रजा युद्ध के दौरान ढेर कर दिए गए थे।

दरअसल जम्मू सेक्टर की शक्करगढ़ सीमा पर 1971 में 15 से 17 दिसंबर के दौरान युद्ध की अगुवाई थ्री ग्रेनेडियर बटालियन के लेफ्टिनेंट कर्नल वीपी एरी कर रहे थे। सेन ने शक्करगढ़ सीमा से सटे एक गांव जरपाल पर कब्जा कर लिया था।

वहीं इसके जवाब में पाक सेना हरकत में आई और फिर 17 दिसंबर को पाक फ्रंटियर पोस्ट की 35वीं बटालियन के कमांडर कर्नल मोहम्मद अकरम रजा की अगुवाई में मोर्चा संभाला गया। मकसद था जरपाल पर दोबारा कब्जा करना। इसके लिए दुश्मनों ने गांव को तीन तरफ से घेरकर हमला बोल दिया।

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रजा इस युद्ध में सबसे आगे होकर लड़ रहे थे। भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के 250 से अधिक सैनिक मार गिराए। 17 दिसंबर की रात युद्ध खत्म हुआ। 18 दिसंबर की सुबह रजा का शव गोलियों से छलनी मिला। एरी, रजा की बहादुरी से प्रभावित हुए। उन्होंने इसके लिए पाकिस्तान को शव सौंपने के साथ ही एक पत्र भी भेजा।

इसमें युद्ध के दौरान रजा ने किस तरह साहस का परिचय दिया गया उसका जिक्र था। इस पत्र को पढ़ने के बाद पाकिस्तान सरकार ने कर्नल रजा को मरणोपरांत निशान-ए-हैदर के सम्मान से नवाजा था। कर्नल एरी द्वारा लिखा पत्र आज भी पाकिस्तान की इस बटालियन के मुख्यालय में रखा है।

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