जंग का मैदान एक ऐसी जगह होती है जहां पर कब कौन किस पर भारी पड़ जाए पता नहीं चलता। जंग के मैदान में सैनिकों को बेहद ही अलर्ट रहना पड़ता है।

Kargil War: कारगिल युद्ध में राजपूताना राइफल्स की वीरता बेमिसाल रही थी। कारगिल युद्ध लड़ चुके पूर्व सैनिक दिनेश कुमार ने अपने अनुभव को साझा किया है।

बंकरों के माध्यम से किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए सेना अपना मोर्चा संभाल सकती है। दुश्मनों की संदिग्ध हरकतों पर इसके जरिए तीखी नजर रखी जाती है।

इस गांव का नाम पेनमुंडे है। बताया जाता है कि यहीं पर पहली मिसाइल विकसित हुई थी। इस गांव में मिसाइल टेक्नॉलजी पर रिसर्च और उन्हें दुश्मनों पर किस तरह इस्तेमाल करना है इसके लिए व्यापक स्तर पर प्रबंध किए गए थे।

हर देश तरह-तरह की मिसाइलें अपने हथियारों के जखीरे में रखता है ताकि दुश्मन को दूर से ही नेस्तनाबूद किया जा सके। भारत के पास भी, पास और दूर तक मार करने वाली कई तरह की मिसाइलें हैं। 

कारगिल युद्ध (Kargil War) में राजपूताना राइफल्स-टू ने अहम भूमिका अदा की थी। इस बटालियन के जवानों ने दुश्मनों से हर मोर्चे पर लोहा लिया और ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से शिकस्त का सामना करना पड़ा था।

दुश्मन की एक नजर पड़ते ही ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगती थी। दुश्मनों को रात में टारगेट किया जाता था ताकि उन्हें यह पता न चल सके कि आखिरकार अचानक हमला कहां से हो गया।

एक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके दूसरा भारत के कब्जे वाला कश्मीर। इसके बाद 1950 में भारत-पाक विषम परिस्थितियों में थे, तो मौके का फायदा उठाकर चीन ने पूर्वी कश्मीर पर धीरे-धीरे नियंत्रण कर लिया।

एक तरफ देश आजादी का जश्न मना रहा था तो साथ-साथ  बंटवारे के दर्द के बीच खून-खराबे का माहौल भी था। मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग को लेकर हिंसा भड़क गई थी।

साल 1950 के दौरान तिब्बत को लेकर भी चीन भारत के खिलाफ आक्रमक था लेकिन हिंदी-चीन भाई-भाई के नारे के चलते कभी ऐसा लगता नहीं था कि दोनों देशों में युद्ध होगा।

पाकिस्तान और भारत के बीच 1971 में युद्ध (War of 1971) लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) ने पाकिस्तान को बुरी तरह से हराया था। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था।

अंग्रेजों से आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच 1947-48 के दौरान युद्ध लड़ा गया था। पाकिस्तान कश्मीर (Kashmir) हड़पने की फिराक में था लेकिन भारतीय वीरों ने ऐसा नहीं होने दिया।

युद्ध के दौरान चौहान बॉम्बे इंजिनियरिंग रेजिमेंट में सूबेदार थे और जीरा सेक्टर में पोस्टेड थे। पंजाब के पास जीरा सेक्टर में दुश्मनों ने हवाई हमला बोल दिया था।

ऑपरेशन के दौरान चोटी पर पहुंचने के बाद राइफलमैन संजय कुमार पाकिस्तानी सेना के एक बंकर से की जा रही भारी गोलाबारी की चपेट में आ गए।

खतरों के बीच सेना इन आतंकियों के ठिकानों में सर्च ऑपरेशन को अंजाम देती है। सर्च ऑपरेशन काफी विश्वसनीय सूत्रों से हासिल इनपुट यानी सूचनाओं के आधार पर किए जाते हैं।

भारत के सैनिक सीमा पर देश की रक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते। अपनी जान की बाजी लगाकर सैनिकों ने कई मौकों पर इस बात को साबित भी किया है। सैनिकों के अंदर देश के लिए कुछ कर जाने का एक जज्बा होता है।

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