पाकिस्तान सैनिक भारी मात्रा में गोला बारूद लेकर आए थे लेकिन हाजीपीर पर भारतीय सैनिकों के नियंत्रण के बाद वे वहां से भाग खड़े हुए थे।

Kargil War: 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई सैन्य संघर्ष होते रहे। दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण की वजह से भी तनाव और बढ़ गया था।

पाकिस्तान जिन पोस्टों पर था वहां से सैनिकों के मूवमेंट और स्ट्रैटजी को पहले ही जाना जा सकता था। पाकिस्तान ने कारगिल के ऊंचाई वाले सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों पर धोखे से कब्जा किया हुआ था।

सेना के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती थी कि वे इन पोस्टों को अपने कब्जे में वापस कैसे ले। पाकिस्तान जिन पोस्टों पर था वहां से सैनिकों के मूवमेंट और स्ट्रैटजी को पहले ही जाना जा सकता था।

बोफोर्स तोपें 27 किलोमीटर की दूरी तक गोले दाग सकती हैं। हल्के वजन के वजह से इसे युद्धभूमि में कही भी तैनात करना और यहां-वहां ले जाना आसान होता है।

युद्ध के दौरान बतरा टॉप, टाइगर हिल, तोलोलिंग टॉप पर करगिल युद्ध के दौरान की ऊंची बर्फीली चोटियों पर छुपकर बैठे दुश्मन को भारतीय सेना के वीर जवानों ने अपनी जान पर खेलकर मार भगाया था।

सेना ने 13 दिन के भीतर ही पाक सैनिकों को घुटनों पर ला दिया था। जब पाकिस्तान सेना सरेंडर कर रही थी तो पाकिस्तानी जनरल नियाजी की आंख में आंसू थे।

पूर्वी हिस्से (आज का बांग्लादेश) को पश्चिम में बैठी केंद्र सरकार अपने तरीके से चला रही थी। उन पर भाषाई और सांस्कृतिक पांबदियां थोप दी गई थीं।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में भीषण युद्ध (War of 1971) लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। इसके साथ ही पाकिस्तानी सेना के 93 हजार सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया था।

हथियारों के साथ ही साइिकल की मदद से सेना ने यह लड़ाई जीती थी तो कहना गलत नहीं होगा। जंग के मैदान में हथियारों के अलावा दिमाग के घोड़े भी दौड़ाने होते हैं।

Indian Army: कुछ सैनिक ऐसे थे जो जंग के मैदान में शहीद हो गए थे। ऐसे ही एक जवान सुरेंद्र भी थे। सुरेंद्र ने अपने साथियों के साथ ऐसा हमला किया कि पाक के करीब 20 जवान मौके पर ही ढेर हो गए थे।

किसी भी युद्ध में वायुसेना की अहम भूमिका होती है, पर उनके युद्धबंदी बनने का भी खतरा ज्यादा होता है क्योंकि पायलट दुश्मन की जमीन पर जाकर बमबारी करते हैं।

अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के एकमात्र ऐसे अधिकारी रहे जो पांच सितारा रैंक तक पदोन्नत हुए थे। यह पद भारतीय थलसेना के फील्ड मार्शल के बराबर है।

Kargil War: कई तस्वीरें तो ऐसी थीं जिसमें जवान कंधों पर हथियार और सामान लादकर कई-कई किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करते नजर आए थे।

युद्ध में यह पनडुब्बी भारत की आईएनएस राजपूत से लोहा लेते हुए स्वतः नष्ट हो गई थी। हालांकि बताया यह भी जाता है कि अपने खानों में हुए आकस्मिक विस्फोट के कारण पीएनएस गाजी खुद ही नष्ट हो गई थी।

कारगिल की लड़ाई में तोलोलिंग की जीत बहुत जरूरी थी तो गलत नहीं होगा। यह सामरिक रूप से बेहद ही महत्वपूर्ण जगह थी। सेना इस पर लगातार फतेह की कोशिश कर रही थी।

Siachen: करीब 23000 फीट की ऊंचाई पर 75 किलोमीटर लंबे और करीब दस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सियाचिन ग्लेशियर के कई इलाके बेहद ही दुर्गम हैं।

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