हस्तक्षेप एपिसोड नंबर 6: कांग्रेस के अस्तित्व पर उठ रहे सवाल पर सियासी नजरिया

India China Clashes

बीबीसी के पूर्व संपादक संजीव श्रीवास्तव का भारत-चीन के मौजूदा हालात पर बेबाक राय। India China Border Tension

हस्तक्षेप एपिसोड नंबर 6:-  दिल्ली में अगले महीने होने वाले विधानसभा में पिछली बार की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस (Congress) के लिए करो या मरो की स्थिति है।

2019 लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी 7 सीटों पर वोट शेयर में कांग्रेस (Congress) बीजेपी के बाद दूसरे नंबर पर रही और दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर रही। लेकिन जब बात दिल्ली विधानसभा की हो रही है तो यहां पर 2015 के चुनाव में कांग्रेस को कुल वोट का 10 फीसदी ही वोट पड़ा था। जो कांग्रेस (Congress) की स्थिति को आगामी चुनाव के लिए और चिंताजनक बनाता है। कांग्रेस के पास दिल्ली में शीला दीक्षित जैसा कोई नेता नहीं है, बाकि जो हैं वो पार्टी के मतभेदों में मशगूल हैं। 

साल 2013 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी 33 फीसदी वोट शेयर के साथ 31 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, कांग्रेस अपने केंद्रीय सरकार के घोटालों के बावजूद भी शीला दीक्षित के कार्यों के कारण 25 फीसदी वोट शेयर के साथ 8 सीटें हासिल करने में सफल रही थी, लेकिन सबसे ज्यादा फायदा आंदोलनकारी से राजनीतिज्ञ बने अरविंद केजरीवाल की पार्टी को हुआ जिसने 30 फीसदी वोट शेयर के साथ 28 सीटें जीतकर दिल्ली की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी और कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में सरकार भी बनाने में सफल रही। 

साल 2015 का चुनाव कांग्रेस (Congress) के लिए बेहद निराशाजनक रहा। शीला दीक्षित के हटने के बाद अजय माकन के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को महज 9 फीसदी वोट शेयर मिला जिसका खामियाजा बीजेपी को भी अपनी सीटें गंवाकर चुकानी पड़ी। एंटी-बीजेपी वोटर्स ने कांग्रेस से मुह मोड़कर अरविंद केजरीवाल से अपना नाता जोड़ लिया। हालांकि बीजेपी पिछले चुनाव में मिले अपने वोट शेयर को यहां भी बचाये रखने में कामयाब रही लेकिन कांग्रेस के अधिकांश वोटर्स आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो गए। जिसका परिणाम ये हुआ कि दिल्ली से कांग्रेस की बोरिया बंद हो गई और बीजेपी 31 से 3 सीटों पर ही सिमट गई। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी दूसरे राज्यों की ही तरह दिल्ली में एंटी-बीजेपी बनकर एक स्थानीय पार्टी के छवि बनाने में सफल रही है। लेकिन कांग्रेस बाकि राज्यों की तरह ही दिल्ली में भी सिमटी जा रही है और उसके वोट शेयर्स स्थानीय पार्टियों में जुड़ते जा रहे हैं। जाहिर तौर पर कांग्रेस (Congress) के अस्तित्व को लेकर पार्टी आलाकमान को मंथन करने की जरूरत है। 

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