पोखरण परमाणु परीक्षण: ‘स्माइलिंग बुद्धा’ ने दुनियाभर में मचा दिया था हड़कंप

18 मई, ये वह तारीख है जो भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इस दिन भारत का स्माइलिंग बुद्धा खुद तो स्माइल कर रहा था, लेकिन कई देशों की स्माइल छिन चुकी थी।

Pokhran: पोखरण परमाणु परीक्षण

Pokhran: तीस साल की लंबी मेहनत के बाद भारत की झोली में एक परमाणु बम परीक्षण के लिए तैयार था।

18 मई, ये वह तारीख है जो भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। हिन्दुस्तान ने इस दिन परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को हिला दिया था। पोखरण में हुए इस परीक्षण के बाद भारत दुनिया के ताकतवर देशों की कतार में खड़ा हो गया। उस वक्त भारत से पहले इस तरह का परमाणु परीक्षण सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य देशों ने ही किया था। इस ऑपरेशन का नाम रखा गया था- स्माइलिंग बुद्धा (Smiling Buddha)। 1974 में आज ही के दिन राजस्थान के पोखरण में अपने पहले भूमिगत परमाणु बम परीक्षण के साथ भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश बना था। भारत को परमाणु विकसित देश बनाने की यात्रा 1944 में शुरू की गई और इसका पहला परिणाम साल 1974 में मिला। जब इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनीं और उन्होंने देखा कि चीन ने एक और परमाणु परीक्षण कर लिया है तो 1967 में परमाणु हथियारों के निर्माण की ओर बढ़ने के लिए भारत को निर्णय लेना पड़ा।

होमी भाभा ने भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना के साथ परमाणु कार्यक्रम पर काम करना शुरू किया। इसके बाद कई और बड़े वैज्ञानिक इस मुहिम से जुड़े और देश ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण ‘स्माइलिंग बुद्धा’ किया। भारत के परमाणु टेस्ट को यह नाम देने के पीछे भी एक काफी ठोस वजह थी। जिस दिन परमाणु बम का परीक्षण होना था उसी दिन बुद्ध पूर्णिमा थी। इसी को देखते हुए वैज्ञानिकों ने परमाणु टेस्ट को स्माइलिंग बुद्धा का नाम दिया। इतना ही नहीं, कहते हैं कि मिसाइल पर स्माइलिंग बुद्धा की फोटो भी अंकित की गई। भारत के पहले परमाणु बम की सफलता की ख़बर पूरी दुनिया में फैल गई। इंदिरा गांधी ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) का दौरा करते हुए वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की इजाजत दी थी, लेकिन गांधी की ये इजाजत मौखिक थी।

परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय रखा गया था। यहां तक कि अमेरिका को भी इसकी भनक नहीं लग पाई। इस गोपनीय प्रोजेक्ट पर काफी वक्त से एक पूरी टीम काम कर रही थी। 1967 से लेकर 1974 तक 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने सात साल कड़ी मेहनत की। इस प्रोजेक्ट की कमान बीएआरसी के निदेशक डॉ. राजा रमन्ना के हाथ में थी। रमन्ना की टीम में उस वक्त एपीजे अब्दुल कलाम भी शामिल थे जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण की टीम का नेतृत्व किया था। जिसे पोखरण-II कहा जाता है। भारत को परमाणु विकसित देश बनने का सफ़र बहुत जल्द नहीं तय किया गया। परमाणु बम हासिल करने और उसके सफल परीक्षण के लिए भारतीय वैज्ञनिकों ने एक लंबा सफ़र तय किया था। भारत को एटॉमिक बॉम्ब देने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने आज़ादी से चंद साल पहले ही काम करना शुरू कर दिया था।

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इसकी शुरुआत साल 1944 में ही हो गई थी, जब होमी जहांगीर भाभा ने इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी। लेकिन सही मायनों में इस दिशा में भारत की सक्रियता 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बढ़ी। इस युद्ध में भारत को शर्मनाक तरीके से अपने कई इलाके चीन के हाथों गंवाने पड़े थे। इसके बाद 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर महाद्वीप में अपनी धौंसपट्टी और तेज कर दी। दुश्मन पड़ोसी की ये हरकतें भारत को चिंतित व विचलित कर देने वाली थीं। लिहाजा, सरकार के निर्देश पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने प्लूटोनियम व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सोचना शुरू किया। भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया और 1972 में इसमें दक्षता प्राप्त कर ली। 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण के लिए हरी झंडी दे दी। इसके लिए स्थान चुना गया राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित छोटे से शहर पोखरण के निकट का रेगिस्तान।

भारत के सफल भौतिक वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में परमाणु शक्ति से भारत को जोड़ने का काम शुरू हुआ था। उन्होंने भारत को परमाणु ताक़त बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। भारतीय वैज्ञनिकों की छोटी सी टीम परमाणु कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये दशकों पहले जुट गई थी। भारतीय वैज्ञानिकों की टीम ने एक बहुत छोटे से लैब में भारत के पहले परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की थी। आज तो भारत के वैज्ञानिकों के पास बहुत बड़ी-बड़ी लैब्स हैं मगर उस समय तो एक छोटी सी जगह पर ही काम करना पड़ा था।

भारत को परमाणु विकसित देश बनाने की यात्रा 1944 में शुरु की गई और इसका पहला परिणाम साल 1974 में मिला। इन सब के बीच करीब तीस साल का लंबा सफ़र गुज़र चुका था। इन तीस सालों में भारत ने काफी उतार चढ़ाव देखे। इन सब के बावजूद परमाणु विकास कार्यक्रम निरंतर चलता रहा। परमाणु कार्यक्रम ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में रफ़्तार पकड़ी थी। जब यह सफल कार्यक्रम अंत तक पहुंचा तब भारत देश की बागडोर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों में थी। दोनों ने ही पूरा समर्थन इसे दिया। वैज्ञानिकों ने भी इसे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

तीस साल की लंबी मेहनत के बाद भारत की झोली में एक परमाणु बम परीक्षण के लिए तैयार था। वैज्ञानिकों की टीम ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को परमाणु बम के तैयार होने की अपनी उपलब्धि के बारे में भी बता दिया था। सेना से विचार विमर्श करने के बाद बम के सफल परीक्षण के लिए 18 मई, 1974 का दिन चुना गया।

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राजस्थान के पोखरण में भारतीय सेना बेस में 75 वैज्ञनिकों की टीम ने स्माइलिंग बुद्धा टेस्ट का सफल परीक्षण किया। सुबह आठ बज कर पांच मिनट पर भारत ने अपने पहले परमाणु बम पोखरण का सफल टेस्ट कर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया था। उस बम की गोलाई करीब 1.2 मीटर थी और वजन 1400 किलोग्राम था। इसके इतने बड़े आकार से ही साबित हो जाता है कि यह आखिर कितना घातक रहा होगा। कहते हैं कि जब यह फटा था तो 8 से 10 किलोमीटर दूर तक धरती हिल गई थी। इस एक परीक्षण ने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा दिया था। रेडियो के माध्यम से अन्य देशों ने जाना कि भारत ने अपने पहले परमाणु बम का सफल परीक्षण कर लिया है। बस फिर क्या था, इस ख़बर के बाद कई देशों को तो जैसे सांप सूंघ गया।

असल में किसी भी देश ने यह नहीं सोचा था कि इतने साल गुलामी की ज़ज़ीरों में जकड़े रहने वाला भारत इतने कम समय में परमाणु बम हासिल कर लेगा। न सिर्फ हासिल कर लेगा बल्कि उसका परीक्षण भी कर डालेगा। भारत का स्माइलिंग बुद्धा खुद तो स्माइल कर रहा था, लेकिन कई देशों की स्माइल छिन चुकी थी। सबसे पहले अमेरिका ने भारत के परमाणु टेस्ट की शिकायत यूएन में की। अमेरिका का कहना था कि भारत ने बिना यूएन को सूचित किए परमाणु बम का टेस्ट कर लिया, जिससे दूसरे देशों में असुरक्षा और भय का माहौल बनेगा। वहीं भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिकों ने सटीक जवाब देते हुए कहा कि उनका परमाणु बम परीक्षण शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए था

हर देश अपनी ताक़त के अनुसार भारत के परमाणु परीक्षण को ग़लत साबित करने में लगा था। अमेरिका ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान, चीन वगैरह भी भारत के परमाणु परीक्षण को ग़लत ठहराने में लगे हुए थे। हालांकि, इन सब बातों का भारत पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा और भारत विश्व में एक मज़बूत राष्ट्र बनकर उभरा। बाद के दिनों में भारत की परमाणु ताकत और बढ़ी!

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