“हमें सरहद पर लड़ने भेज दो, मर गए तो शहीद का दर्जा देना, लौट आए तो जेल में डाल देना”

जो लोग खुद कैद में हों, अपने किसी गुनाह की सजा काट रहे हों, लेकिन अगर देश पर आंच आए तो वे भी उठ खड़े हो जाएं। देश के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विपदा में ढाल बन जाएं। ऐसा तो हिंदुस्तान में ही हो सकता है।

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Gopalganj jail

पुलवामा हमले (Pulwama Attack) में शहीद हुए शहीदों के परिजनों की मदद के लिए पूरा देश एकजुट है। चारों ओर लोग आतंकियों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। आम इंसान हो या सेलिब्रिटी, सरकारी संस्थान हों या निजी, बैंक हों या एनजीओ सभी इस मुश्किल वक्त में शहीदों के परिवार के साथ खड़े हैं। भारत वह देश है जहां के जर्रे-जर्रे में देशभक्ति है और किसी को इसका सुबूत देने की जरूरत नहीं है। वक्त आने पर दुनिया को हर बार इसका प्रमाण खुद-ब-खुद मिला है।

जो लोग खुद कैद में हों, अपने किसी गुनाह की सजा काट रहे हों, लेकिन अगर देश पर आंच आए तो वे भी उठ खड़े हो जाएं। देश के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विपदा में ढाल बन जाएं। ऐसा तो हिंदुस्तान में ही हो सकता है। ऐसा ही कुछ बिहार के गोपालगंज जिले में हुआ है। प्रदेश के गोपालगंज जेल के कैदियों ने पुलवामा अटैक के बाद अपनी कमाई में से 50 हजार रुपये शहीद के परिजनों के लिए दान किया है। इतना ही नहीं, कैदियों ने जेल प्रशासन को पत्र लिखकर देश की सीमा पर सेना के साथ दुश्मनों से लड़ने की इच्छा जताई है। साथ ही उन्होंने ने यह भी मांग की है कि दुश्मन से लड़ने के बाद अगर वे जिन्दा बचकर वापस आ गए तो उन्हें दोबारा जेल भेज दिया जाए। कैदियों की इस देशभक्ति को देख कारा प्रशासन भी अचंभित है।

गोपालगंज मंडल कारा के कैदियों की इस देशभक्ति को जेल प्रशासन सार्थक प्रयास को लेकर चलाये जा रहे मुहिम से जोड़कर देख रहा है। जेल प्रशासन के मुताबिक उनके द्वारा जेल में लगातार कैदियों के व्यवहार परिवर्तन के लिए कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जिसका नतीजा है कि कैदियों की सोच में इस तरह का बदलाव देखने को मिल रहा है।

जेल अधीक्षक संदीप कुमार ने बताया कि जेल में बंद कैदियों ने अपनी रोजाना की कमाई से पैसे बचाकर शहीद के परिजनों की मदद के लिए आर्मी रिलीफ फंड में पैसे भेजे हैं। वहीं जेल अधीक्षक सहित जेल के तमाम अधिकारियों और कर्मियों ने भी अपने वेतन के पैसे निकालकर आर्मी रिलीफ फंड में जमा किया है।

जेल अधीक्षक के अनुसार, जेल में बंद 200 कैदियों ने उन्हें एक पत्र सौंपा है जिसमें उन्होंने देश की सीमा पर जाकर सेना के साथ दुश्मनों के छक्के छुड़ाने की अपील की है। कैदियों ने पत्र में यह भी लिखा है कि जब वे दुश्मनों के साथ लड़ाई में मारे जाएं तो उन्हें भी शहीद का दर्जा दिया जाए और अगर बचकर वापस आ गए तो उन्हें दोबारा जेल भेज दिया जाए।

वहीं सेंट्रल जेल फर्रुखाबाद के कैदी भी इसमें पीछे नहीं रहे। सेंट्रल जेल के कैदियों ने 19 फरवरी को अपने पारिश्रमिक फंड से 1.25 लाख रुपये शहीदों के परिजनों को दिया है।

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