मासूम बच्चे को जबरदस्ती बंदूक थमा बना दिया नक्सली, पढ़िए एक बाल नक्सली की खौफनाक कहानी

एक दिन इन्हीं जंगलों में कुछ नक्सलियों की नजर उस मासूम पर पड़ी। वह लड़का इन नक्सलियों से बिल्कुल अंजान था। लिहाजा जब उन्होंने एक दिन उसे खेलने के लिए बंदूक दिया तो बिना हिचकिचाए उसने वो बंदकू उठा ली और उससे खेलने लगा।

Naxali

इस मासूम को नक्सलियों ने जबरन अपने गिरोह में शामिल कर लिया।

झारखंड का खूंटी जिला हमेशा से ही नक्सली (Naxali) प्रभावित रहा है। यहां के सुदूर गांवों में नक्सलियों ने गांव वालों में हजारों जुल्म-ओ-सितम किये। यहां तक कि नक्सली (Naxali) लोगों के घरों में घुसकर जबरदस्ती घर के मासूम बच्चों को संगठन में भी शामिल करते रहे हैं।

आज हम एक ऐसे ही बच्चे की बात कर रहे हैं जिसे नक्सलियों ने जबरदस्ती अपने गुट में शामिल किया। यकीनन इस खौफनाक कहानी का अंत खौफनाक हो सकता था लेकिन पुलिस-प्रशासन की कोशिशों ने इस मासूम को बीहड़ों से निकालकर अच्छी जिंदगी देने में काफी मदद की।

वह लड़का खूंटी जिले के अड़की प्रखंड का रहने वाला है। उसके सिर से बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया। लेकिन उसके अकेलेपन को सहारा दिया उसकी मौसी ने। वह मौसी के घर ही पढ़ाई करता था और एक बेहतरीन भविष्य के सपने देखता था। वो अक्सर अपने मासूम दोस्तों के साथ इलाके के जंगलों में लकड़ियां काटने या फिर खेलने के लिए जाया करता था। लेकिन एक दिन इन्हीं जंगलों में कुछ नक्सलियों की नजर उस पर पड़ी। वह लड़का इन नक्सलियों से बिल्कुल अंजान था। लिहाजा जब उन्होंने एक दिन उसे खेलने के लिए बंदूक दिया तो बिना हिचकिचाए उसने वो बंदकू उठा ली और उससे खेलने लगा।

खेल-खेल में नक्सली (Naxali) धीरे-धीरे उसे बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने लगे। आखिरकार एक दिन नक्सलियों ने मासूम लड़के से कहा कि वो उनके गुट में शामिल हो जाए। लेकिन वह लड़का अपनी मां से पूछे बिना कोई काम नहीं करता था और उस वक्त उसकी मां हरियाणा में थी। लिहाजा उसने नक्सलियों के साथ जाने से इनकार कर दिया। नक्सलियों को उस मासूम का ना कहना बिल्कुल ही नागवार गुजरा। एक दिन नक्सलियों ने उसे उसकी मौसी के घर से जबरदस्ती उठा लिया और संगठन में शामिल कर लिया।

कुछ ही दिनों बाद खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम जिले के सीमा पर पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में वह लड़का भी शामिल था और एनकाउंटर के दौरान उसके पैर में गोली लग गई। मासूम लड़का दुबक कर झाड़ियों के पीछे छिप गया। उस वक्त वो दर्द से कराह रहा था और खून से लथपथ था। इत्तेफाक से उसी वक्त अचानक सीआरपीएफ के एक जवान की नजर इस बच्चे पर पड़ी और इस जवान ने बिना देरी किए उसे अपने कंधे में उठाकर जंगल से बाहर निकाला और अस्पताल पहुंचाया। वह लड़का चूंकि नक्सली (Naxali) संगठन से ताल्लुक रखता था लिहाजा कानूनी प्रक्रिया के तहत इलाज के बाद पुलिस ने उसे रिमांड पर लिया और बाल सुधार गृह में भेजा। हालांकि, कुछ दिनों के बाद न्यायालय ने इसे दोषमुक्त कर दिया ।

इसके बाद उसकी मौसी ने उसे एक दूसरे गांव में रखकर एक सरकारी विद्यालय में नामांकन करवाया और वह पढ़ाई करने लगा। परंतु नक्सली संगठन पीएलआई के दुर्दांत नक्सली दिन-रात उसकी खोज में लग गए। वह दिन था 28 जनवरी, 2019…इस दिन नक्सलियों को शिवा का पता चला गया और वो उसे एक बार फिर उठाकर अपने साथ ले गए। अगले ही दिन यानी 29 जनवरी, 2019 को फिर से पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई और वह फिर घायल हो गया।

सुरक्षाबलों ने दरियादिली दिखाते हुए एक बार फिर उसका इलाज कराया। इधर समाचार पत्रों में शिवा की खबर छपने के साथ उसकी मां को इस घटना के बारे में जानकारी हुई और वह हरियाणा में काम-धाम छोड़कर झारखंड अपने बेटे के पास चली आईं। उसकी मां ने प्रशासन के सामने अपनी लाचारी बताते हुए कहा कि उनके बेटे को नक्सली जबरदस्ती अपने साथ उठा कर ले गए थे वो कभी नक्सली नहीं बनना चाहता। मां की कोशिशें रंग लाई। लड़के पर कानूनी कार्रवाई हुई और उसे फिर से बाल सुधार गृह में भेजा गया है।

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