‘महिलाओं का होता है शोषण’, इनामी नक्सली ने यूं उगले संगठन के घिनौने राज़

नक्सली संगठनों की स्थिति ठीक नहीं है…संगठन अपने सिद्धांतों से भटक चुके हैं। वे अब कमजोर पड़ चुके हैं। लेवी के पैसों को लेकर संगठन के अंदर ही विवाद है…संगठन में महिलाओं का शोषण किया जाता है।

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‘नक्सली संगठनों की स्थिति ठीक नहीं है…संगठन अपने सिद्धांतों से भटक चुके हैं। वे अब कमजोर पड़ चुके हैं। लेवी के पैसों को लेकर संगठन के अंदर ही विवाद है…संगठन में महिलाओं का शोषण किया जाता है।’ खुद को गरीबों का मसीहा बताकर युवाओं को भटकाने वाले नक्सली संगठनों की यह हकीकत किसी और ने नहीं बल्कि संगठन के ही एक नक्सली ने बयां की है। नक्सलियों के खोखले दावे की पोल खोलने वाले इस नक्सली का नाम है दीपक उरांव उर्फ प्रकाश उरांव। दीपक उरांव वही नक्सली है जो कभी शीर्ष नक्सली नेता और करोड़ों के इनामी सुधाकरण का करीबी रहा। दीपक उरांव खुद भी संगठन का सब जोनल कमांडर रह चुका है और उस पर 10 लाख रुपए का इनाम रखा गया था।

अपने हुक्मरानों के इशारे पर दीपक उरांव ने करीब 20 साल तक ‘लाल आतंक’ का झंडा बुलंद किया। झारखंड के लोहरदगा, लातेहार और गुमला जैसे इलाकों में कभी दीपक उरांव का सिक्का चलता था। वजह यह थी कि वो भी दूसरे नक्सलियों की तरह ही बंदूक की नोंक पर अपनी बातें मनवाता और अपने मनमाफिक फैसले लेता था। माओवादियों के साथ जुड़कर उसने कई नक्सली वारदातों को अंजाम दिया। साल 2016 के सितंबर के महीने में उसने एक आरएमपी डॉक्टर की गला काटकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड को लेकर उस वक्त काफी हंगामा भी मचा था। कहा जाता है कि दीपक उरांव ने संगठन के लिए अपनी वफादारी दिखाने की खातिर हत्या, लेवी, डकैती और अपहरण जैसे कई संगीन अपराधों को अंजाम दिया। उस पर दर्जनभर से अधिक नक्सली घटनाओं को अंजाम देने का आरोप है।

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साल 2018 में इस खूंखार नक्सली ने अचानक रांची के डीआईजी अमोल वेणुकांत होमकार के सामने हथियार डाल दिए। लेकिन दीपक उरांव के हथियार डालने के बाद सबके मन में एक ही विचार था कि आखिर ऐसी कौन सी वो अहम वजह रही कि नक्सलियों के एक शीर्ष कमांडर ने यूं घुटने टेक दिए और समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए उसका मन बेचैन हो गया। इन सवालों के जवाब प्रदीप उरांव ने खुद दिए। प्रदीप ने बताया कि संगठन के बड़े नक्सली नकुल और मदन यादव के सरेंडर के बाद लोहरदगा इलाके में नक्सलियों की पैठ कमजोर हो चुकी है। इस वजह से उसने भी संगठन से अलग होने और बीहड़ों के घुप अंधेरे से निकलकर नए सवेरे की तरफ जाने का फैसला किया। नक्सली बनकर प्रदीप अपने परिवार से हमेशा के लिए बिछड़ चुका था। लेकिन अब वो अपने परिवार के साथ ही रहना चाहता है।

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लोहरदगा जिले के भंडारा थाना क्षेत्र के टोटो गांव के रहने वाले प्रदीप ने पुलिस के सामने अपनी कहानी बयां करते हुए बताया कि महज 17 साल की उम्र में मोरारी तोहन ने नक्सली संगठन में उसे शामिल कराया था। वह करीब 20 साल तक नक्सली संगठन से जुड़ा रहा। उसने इस दौरान संगठन में कई तरह के बदलाव देखे। उसने कहा कि अब संगठन कमजोर हो गया है। सैद्धांतिक रूप से भी संगठन सही नहीं है और इससे जुड़े सभी लोग भटक चुके हैं। नक्सलियों के शीर्ष नेताओं के बारे में जो राज प्रदीप ने उगले उससे पता चला कि सुधाकरण अक्सर लातेहार-लोहरदगा और गुमला सीमा पर अपने दस्ते के साथ घूमता रहता था। प्रदीप ने बताया कि बूढ़ा पहाड़ पर वह एक करोड़ रुपये के इनामी अरविंद व सुधाकरण के दस्ते के साथ रह चुका है। अरविंद की मौत के पहले ही वह वहां से भाग गया था।

उसका कहना है कि अरविंद की मौत की जानकारी मीडिया से ही मिली थी। सुधाकरण के बारे में उसने बताया था कि उसने भी बूढ़ा पहाड़ छोड़ दिया और पुलिस की गोलियों के डर से इधर-उधर भटकता रहा। बाद में सुधाकरण ने सरेंडर कर दिया। सरेंडर करने के बाद प्रदीप यादव को पुनर्वास नीतियों के तहत सरकार की तरफ से 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि और 10 लाख रुपए का चेक दिया गया। बता दें कि दक्षिणी छोटा नागपुर क्षेत्र में पुलिस कई दिनों से नक्सलियों के विरुद्ध लगातार अभियान चला रही है। इससे विवश होकर ही बड़े-बड़े नक्सली या तो आत्मसमर्पण कर रहे हैं या फिर पुलिस के डर से बीहड़ों में छिपे फिर रहे हैं। इस अभियान में नक्सलियों की न केवल गिरफ्तारी हो रही है, बल्कि उनके कैंप को भी ध्वस्त किया जा रहा है।

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