पति के मरने के बाद पड़ने लगी नक्सलियों की बुरी नजर, पढ़िए एक महिला नक्सली की भयानक आपबीती

नक्सलियों ने गन्दा काम करने का किया प्रयास, किसी तरह अपने बच्चे को लेकर की पुलिस के सामने किया आत्मसमर्पण।

Woman Naxali

नक्सलियों ने गन्दा काम करने का किया प्रयास, किसी तरह अपने बच्चे को लेकर की पुलिस के सामने किया आत्मसमर्पण।

बचपन में नक्सलियों की कहानी सुनकर नक्सली संगठन में भर्ती होने की जगी थी जिज्ञासा ।
जमीन के लिए रिश्तेदारों द्वारा मां बाप को सताए जाने की घटना बैठ गई थी दिमाग में।
बदला लेने के लिए हुई नक्सली संगठन में भर्ती।
नक्सलियों ने गन्दा काम करने का किया प्रयास, किसी तरह अपने बच्चे को लेकर की पुलिस के सामने किया आत्मसमर्पण।
पढ़िए एक महिला नक्सली (Woman Naxali) की भयानक आपबीती।

Woman Naxali
महिला नक्सली सुनैना (फाइल फोटो)

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूर ग्रामीण इलाके बुंडू की 13 साल की सुनैना ने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवन में इतना झकझोर देने वाला पल भी आएगा, जब अपने लोग ही पति के मरने के बाद बेगाने हो जाएंगे और उसके जिस्म के लोभी बन जाएंगे। जी हां, रोंगटे खड़े कर देने वाली यह कहानी है बचपन में ही नक्सली बनी (Woman Naxali) सुनैना की। 8 मार्च, 2004 का वह दिन था, जब सुनैना के गांव के पास ही नक्सलियों द्वारा महिला दिवस मनाया जा रहा था। सामाजिक बदलाव और नारी अधिकार की चर्चा चल रही। जिसे सुनकर वह भी प्रभावित हो गई और नक्सली संगठन में शामिल हो गयी। पर उसे क्या पता था कि यह सब उसे गुमराह करने की चाल थी।

कुछ दिनों में ही वह राइफल से लेकर एके-47 तक चलाना सीख गई। संगठन ने चांडिल प्लाटून की जिम्मेदारी इसे दे दी। बखूबी वह दायित्व निभाने के बाद उसे सेक्सन कमांडर का दायित्व दिया गया। इसी बीच वह पूरी तरह जवान हो चुकी थी। नक्सली आकाओं ने इसकी शादी जोनल कमांडर बंकिरा से करवा दिया। अपनी आपबीती बताते हुए सुनैना कहती है, ‘जैसी मेरी ख्वाहिश थी, मेरी शादी उसी तरह हुई। जोनल कमांडर की पत्नी होने के कारण संगठन में मुझसे सब डरते थे। 2007 में मैंने एक बेटे को जन्म दिया। इसी बीच पुलिस मुठभेड़ में मेरे पति की मौत हो गयी। 2009 में पुलिस छापेमारी के दौरान मैं भी पकड़ी गई।

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कुछ साल के बाद मैं जेल से छूटी और फिर से संगठन में गयी। लेकिन तब तक संगठन में मेरे लिए सब कुछ बदल चुका था। पति के मरने के बाद संगठन के लोगों की मुझ पर बुरी नजर पड़ने लगी। वे मेरे जिस्म के भूखे बन गए थे। किसी तरह मैं अपने परिवार के सम्पर्क में आई। मेरे परिजनों ने मुझे आत्मसमर्पण की सलाह दी। परिवार वालों ने रांची पुलिस कप्तान और उपायुक्त से इस विषय में बात की। दिसम्बर, 2011 में मैंने अपने बच्चे साथ आत्मसमर्पण कर दिया। उस दौरान मुझे पचास हजार रूपए प्रोत्साहन के रूप में प्रशासन से मिले। कुछ दिनों तक ओपन जेल में रहने बाद मुझे रिहा कर दिया गया।

अब मैं समाज की मुख्यधारा में रहकर मजदूरी करती हूं। अपने बेटा को पढ़ा-लिखा रही हूं। मेरा अपने बेटे को पुलिस में भर्ती करने का इरादा है। मेरा बेटा बहुत ही समझदार और भावुक है। आज वह रांची के एक उच्च-विद्यालय में 10वीं कक्षा में पढ़ रहा है। मैं खुश हूं। अब न मेरे पिता जिंदा हैं और न ही मां। पर, बहनों से समय-समय पर सहायता मिलता रहता है।’ सुनैना कहती है कि कोई भी महिला नक्सली (Woman Naxali) संगठन में सुरक्षित नहीं है। वहां सभी के साथ यौन शोषण होता है। नक्सलियों की विचारधारा बिल्कुल खोखली है। वे मासूम लोगों को बरगला कर संगठन में भर्ती करवाते हैं और फिर उनका शोषण करते हैं, जैसा उन्होंने मेरे साथ किया।

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