आतंक के मुंह पर जोरदार तमाचा, कश्मीर के डेढ़ सौ युवा सेना में भर्ती

पुलवामा आतंकी हमले को अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है और इस बीच जम्मू-कश्मीर के 150 से भी अधिक युवक देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती हुए हैं।

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पुलवामा आतंकी हमले को अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है और इस बीच जम्मू-कश्मीर के 150 से भी अधिक युवक देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती हुए हैं।

पुलवामा आतंकी हमले (Pulwama Terror Attack) को अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है और इस बीच जम्मू-कश्मीर के 150 से भी अधिक युवक देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती हुए हैं। कश्मीर के ये युवा जाति, धर्म, क्षेत्र और समुदाय की मानसिकता से ऊपर उठ कर जम्मू-कश्मीर की लाइट इंफेंट्री (JAKLI) यूनिट में भर्ती हुए हैं। श्रीनगर में 9 मार्च को 152 नए रंगरूटों की पासिंग आउट परेड का आयोजन किया गया था। इस पासिंग आउट परेड में करीब 600 अभिभावक और जवानों के रिश्तेदारों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा सेना के कई अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी भी इस समारोह में शामिल हुए।

जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेंट्री (JAKLI) का स्लोगन ‘बलिदानम् वीर लक्ष्यम्’ है। जिसका मतलब है, ‘बलिदान वीरों का मकसद है’। जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेंट्री (JAKLI) के ही नजीर अहमद वानी ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। उन्हें मरणोपरारंत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। सेना के जवान औरंगजेब भी लाइट इंफेंट्री से थे। जिनकी आतंकियों ने हत्या कर दी थी। इसके बाद साल 2018 में उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था।

सेना की 15वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल के जे एस ढिल्लन ने जवानों के अभिभावकों से अपील की कि वे अपने बच्चों को आतंकी संगठनों में शामिल होने से रोकें। उन्होंने कहा, ‘तहे दिल से, मैं व्यक्तिगत तौर पर कश्मीर की सभी मांओं से आग्रह करता हूं कि वे अपने बच्चों को आतंकी बनने से रोकें और गुमराह हो चुके बच्चों को वापस लाएं। मैं आपको उनकी सुरक्षा, संरक्षा और मुख्याधारा में उनको 100 फीसदी शामिल किए जाने की गारंटी देता हूं।’

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सुरक्षाबलों में भर्ती होने वाले कश्मीरी युवाओं और उनके परिवारों को हमेशा खतरा रहता है। क्योंकि आतंकी गुट नहीं चाहते कि यहां के युवा सेना में भर्ती होकर मुख्यधारा का रास्ता चुनें। पुलवामा के रहने वाले इश्फाक रसूल ने परेड के बाद अपने पिता को गले लगाकर उनकी दुआएं लीं। रसूल बताते हैं कि हमेशा से JAKLI में भर्ती होना चाहता था और आज एक सपना पूरा हो रहा है।

रसूल के भाई शब्बीर कहते हैं कि हम पुलवामा में रहते हैं और हमें कोई खतरा महसूस नहीं होता। रसूल का पूरा परिवार इस पासिंग आउट परेड में हिस्सा लेने श्रीनगर आया था। उनके पिता गुलाम रसूल ने बताया कि हां खतरा जरूर और चिंता की बात भी है, लेकिन इसकी फिक्र सरकार को करनी होगी, कैसे यहां अमन और शांति का माहौल बनाया जाए।

घाटी के एक अन्य युवा इश्फाक हुसैन दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले से आते हैं। जो आंतकियों का गढ़ माना जाता है। बावजूद इसके हुसैन को पुलवामा के बाद इलाके में कोई तनाव नहीं नजर आता। अपने अन्य साथियों के साथ बातचीत में हुसैन ने कहा कि जवानों का जोश सातवें आसमान पर है। उन्होंने कहा कि पहले वह यहां एक अभ्यर्थी थे लेकिन अब सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिए तैयार हैं।

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